एक बच्चे की ‘खुराफात’ से पूरा स्कूल और मोहल्ला परेशान था। कभी इलेक्ट्रिक शार्पनर से स्कूल की लाइट गुल कर देता। तो कभी उसका बनाया प्लेन प्रिंसिपल ऑफिस में धमाका कर देता। बच्चा बड़ा हुआ तो क्लीनिंग रोबोट और लाइफ सेविंग ड्रोन बनाए। डॉ कलाम ने उसे ‘ड्रोनमैन’ कहा। कोरोना में उसके ड्रोन से गली-मोहल्ले सैनिटाइज किए गए। उत्तराखंड की सिल्क्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बचाने में उसने ड्रोन बड़े काम आए। लखनऊ के इस बंदे की कहानी 3 इडियट्स फिल्म के रैंचो जैसी ही है। बिजली का जो भी सामान इसके हाथ आता उसे खोल देता था। आज उसकी कंपनी करोड़ों के ड्रोन और रोबोट्स देश ही नहीं दुनियाभर में सप्लाई कर रही है… साल 1992, लखनऊ का एक स्कूल। 6-7 साल का एक बच्चा क्लास में सिर झुकाए खड़ा है। “किसकी है ये करतूत? मिलिंद, तुमने किया है ये? पूरा स्कूल तुमसे परेशान है।” टीचर ने गुस्से में कहा। क्लास में सन्नाटा छा गया। सबकी नजरें मिलिंद पर टिक गईं। टीचर ने डेस्क पर हाथ मारा- “खड़े हो जाओ। बताओ, क्या किया है?” मिलिंद खड़ा हुआ और बड़ी मासूमियत से बोला- “मैम… मैंने कुछ नहीं किया।” “तो फिर ये धुआं कहां से आया? पूरे स्कूल की लाइट क्यों चली गई?” मिलिंद ने नजरें झुका लीं- “मैम, वो मैं इलेक्ट्रिक शार्पनर चला रहा था।” टीचर हैरान रह गईं। “इलेक्ट्रिक शार्पनर…? तुम्हारी खुराफात ने कितना नुकसान किया है, कुछ पता है तुम्हें?” मिलिंद- “पहले ठीक चल रहा था मैम।” टीचर भड़क गईं। “पहले? मतलब पहले से कर रहे हो ये सब? प्रिंसिपल ऑफिस चलो, अभी।” ऑफिस में प्रिंसिपल मैम ने सख्त आवाज में पूछा-“तुमने किया ये सब?” मिलिंद- “इलेक्ट्रिक शार्पनर बनाया था। उसकी बैटरी घर पर ही छूट गई इसलिए सॉकेट में लगा दिया।” प्रिंसिपल की आवाज तेज हो गई- “220 वोल्ट में?” मिलिंद- “जी, मुझे लगा शार्पनर और तेज चलेगा।” प्रिंसिपल भी हैरान थीं। “तुम सेकेंड क्लास में हो। आखिर ये सब बनाना तुम्हें सिखाया किसने?” मिलिंद- “मैम, घर में टीवी का रिमोट खराब पड़ा था। उससे सर्किट निकाला। मोटर खिलौने वाली कार की थी।” प्रिंसिपल कुछ सेकेंड चुप रहीं, फिर बोलीं- “तुम्हें पता है ये खतरनाक हो सकता था?” मिलिंद चुपचाप खड़ा रहा। प्रिंसिपल- “तुम क्लास में शांत रहते हो, लेकिन दिमाग में उधम चलती रहती है।” प्रिंसिपल ने मिलिंद के घर फोन किया और उसकी मम्मी को पूरी कहानी बता दी। साथ ही ये भी बताया कि उसे पांच दिन के लिए सस्पेंड किया जा रहा है। घरवाले परेशान थे लेकिन मिलिंद को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसके लिए ये पांच दिन कुछ नई ‘खुराफात’ करने के थे। दिन बीते, साल भी गुजर गए। मिलिंद अब पांचवीं क्लास में था। उम्र कुछ बढ़ गई थी और दिमागी कीड़ा भी थोड़ा तेज दौड़ने लगा था। इलेक्ट्रिक शार्पनर वाला कांड पीछे छूट चुका था, लेकिन एक्सपेरिमेंट चालू थे। उसके मन में नया सवाल कुलबुलाने लगा था। मोटर से अगर पेंसिल कटर चल सकता है, तो क्या उड़ने वाली कोई चीज भी बनाई जा सकती है? आखिर एरोप्लेन में भी तो पंखा ही लगा होता है। मिलिंद ने बिना किसी किताब या गाइड के अपने आसपास पड़ी चीजों को देखकर काम शुरू कर दिया। मोहल्ले में जो भी कबाड़ीवाला आता, मिलिंद उसके पीछे पड़ जाता। जेबखर्च के लिए मिलने वाले पैसों से टूटे खिलौने, जली हुए मोटर, तारों के गुच्छे वगैरह खरीद लेता। मिलिंद का कमरा कबाड़खाना बन गया था, जिसमें दुनिया को ‘खुराफात’ लगने वाले ‘एक्सपेरिमेंट’ होते थे। स्कूल से लौटते ही मिलिंद अपने एक्सपेरिमेंट में लग जाता। दिमाग में सिर्फ एक ही चीज चलती रहती, “पंखा किस एंगल पर लगाऊं तो हवा पकड़ने लगेगा?” “कहीं मोटर का वेट ज्यादा तो नहीं हो जाएगा?” “पंखों की चौड़ाई कितनी रखी जाए?” हर सवाल का जवाब मिलता एक प्रयोग से। कभी प्लेन जमीन से उठता ही नहीं या उठते ही गिर जाता था। कभी मोटर जल जाती तो कभी पंख टूट जाते और कभी तो पूरा प्लेन ही टूट जाता। मिलिंद हर फेलियर से एक चीज सीख जाता कि क्या गलत हुआ और अगली बार क्या बदला जाए। करीब 400 कोशिशों के बाद मेहनत रंग लाई। एक दोपहर मिलिंद ने जैसे ही मोटर ऑन की, प्लेन धीरे-धीरे हवा में उठा और फिर उड़ने लगा। कुछ सेकेंड के लिए नहीं, बल्कि इतनी देर कि मिलिंद की नजरों से ओझल हो गया। प्लेन कहां गया, ये पता ही नहीं था। पूरे मोहल्ले में ढूंढ़ा। आखिरकार एक चौराहे के पास पड़ा मिला। मिलिंद को जो खुशी हुई वो किसी इनाम से कम नहीं थी, लेकिन असली ‘उधम’ तो अब होने वाला था। अगले ही दिन मिलिंद वो प्लेन लेकर स्कूल पहुंच गया। मिलिंद ने बैग से प्लेन निकाला। दोस्त फुसफुसाए- “आज फिर कुछ नया?” मिलिंद बोला- “बस छोटा सा टेस्ट है।”
एक लड़के ने पूछा- “मोटर लगा दी?”
मिलिंद ने कहा- “इस बार ज्यादा पावर है।” लंच ब्रेक में सारे बच्चे अपने खेलकूद में मस्त थे। उधर मिलिंद अपने दो-तीन दोस्तों के साथ प्लेन को ‘टेकऑफ’ कराने की जुगत में लगा हुआ था। मिलिंद ने स्विच ऑन किया, मोटर घूमी और प्लेन हवा में…। लेकिन इस बार भी वही हुआ प्लेन मिलिंद के कंट्रोल से बाहर चला गया। मिलिंद चिल्लाया- “अरे, अरे… रुक जा।” प्लेन तेजी से ऊपर गया और सीधा बिल्डिंग की तरफ मुड़ गया। मिलिंद अब भी रिमोट लेकर उसके पीछे भाग रहा था। देखते ही देखते प्लने प्रिंसिपल ऑफिस की खिड़की से अंदर गया। ऑफिस में पैरेंट-टीचर मीटिंग चल रही थी। प्लेन सीधे अंदर जाकर दीवार से टकराया और अगले ही पल जोरदार धमाका हुआ। डर की वजह से प्रिंसिपल चीख पड़ीं- “ये क्या था?” एक बच्चे के पिता बोले- “शायद बम फेंका है किसी ने…” एक टीचर बोलीं- “प्लेन जैसा था कुछ…” पूरे स्कूल में अफरा-तफरी मच गई। प्रिंसिपल ने सोच लिया, एलियन ने अटैक कर दिया है। दुनियाभर की चुहलबाजी के बाद पता चला ये मिलिंद का नया कारनामा था। फिर क्या था, इस बार मिलिंद 15 दिन के लिए स्कूल से बाहर। घर पहुंचा तो किसी ने कुछ नहीं पूछा। प्रिंसिपल का फोन पहले ही आ चुका था। मिलिंद के घरवाले ज्यादा रोक-टोक नहीं करते थे, लेकिन चाहते थे स्कूल में कोई ‘खुराफात’ न हो। मिलिंद को जिस भी चीज की जरूरत होती, वो मिल जाती। मिलिंद की तो जैसे लॉटरी ही लग गई थी। उन 15 दिनों में उसने अपने प्लेन को बिल्कुल नए सिरे से बनाया। इस बार एक पुराने रेडियो से एंटीना निकाला था। किसी पुराने खिलौने से मोटर और जूते के डिब्बे से प्लेन का ढांचा बनाया। इन सबकी खिचड़ी से जो नया प्लेन बना वो एकदम परफेक्ट था। मतलब प्लेन का कंट्रोल अब पूरी तरह से मिलिंद के हाथ में ही था। वो सीख गया था कि उड़ने और कंट्रोल में रहने वाला प्लेन कैसे बनता है। वक्त के साथ मिलिंद के एक्सपेरिमेंट और तेज हो गए। अब उसने घर के काम की चीजों पर भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया। मिलिंद ने जुगाड़ से इलेक्ट्रिक दरवाजा बना डाला था। उसने दरवाजे की सिटकनी पर एक धागा बांधा। उस धागे को तार से जोड़ा और तार को छोटी मोटर से। जैसे ही मोटर उल्टी दिशा में घूमता, सिकटनी नीचे खिसकने लगती और दरवाजा खुल जाता। अब घर में जब भी कोई मेहमान आता तो मिलिंद उन्हें अंदर आने से रोक देता, कहता- “एक मिनट रुकिए, मैं आपको एक चीज दिखाता हूं।” इसके बाद मिलिंद का ‘जादू-मंतर’ शुरू होता और गेट की कुंडी धीरे-धीरे खुलने लगती। कुछ लोग ताली बजाते, शाबाशी देते तो कुछ चिढ़ जाते। वजह ये थी कि दरवाजा को खुलने में करीब 10 मिनट लग जाते थे। थोड़ा वक्त जरूर लगता था लेकिन मजा भी खूब आता था। 8वीं क्लास में आते-आते मिलिंद ने ‘क्लीनिंग रोबोट’ बना लिया। रोबोट जमीन पर चलते हुए फर्श की धूल साफ देता था। 10वीं तक मिलिंद उसी रोबोट से अपना कमरा साफ करवाता रहा। उसके एक्सपेरिमेंट कभी रुके नहीं। फिर एक दिन स्कूल में कुछ अलग हुआ। लंच के समय दो सीनियर लड़के उसके पास आए। एक ने पूछा- “तुम ही हो है न जो हेलिकॉप्टर और रोबोट बनाता है?” मिलिंद ने हां में सिर हिलाया। दूसरा फट से बोल पड़ा- “हमें भी सिखा दे। कोचिंग दे दे।” मिलिंद तो पहले हंसा, फिर बोला- “मैं क्या सिखाऊंगा भैया?”
सीनियर बोला- “जो तुम करते हो, वही।” यहां से एक नया चैप्टर शुरू हुआ। मिलिंद अब अपने से आगे की क्लास के बच्चों को सिखाने लगा। ‘मोटर कैसे काम करती है’, ‘हेलिकॉप्टर बैलेंस कैसे बनाता है’, ‘क्लीनिंग रोबोट फंक्शन कैसे करता है’ और इसके बदले उसे पैसे भी मिलने लगे। मिलिंद इसे नए एक्सपेरिमेंट में लगाता। स्कूल पूरा होने के बाद मिलिंद ने मैनेजमेंट साइंस एंड लीगल स्टडीज में डिग्री ली। मिलिंद पढ़ाई साइंस से इतर सब्जेक्ट की कर रहा था, फिर भी ये साफ था कि उसकी मंजिल नौकरी नहीं, इनोवेशन है। कॉलेज में मिलिंद सारा-सारा दिन साइंस और टेक्नोलॉजी की किताबें, जर्नल और मैगजीन पढ़ता रहता। जब वो स्कूल में था तो उसे ऐसी किताबें नहीं मिलीं, जिससे वो अपनी स्किल बेहतर कर सके। 2003-04 के आस-पास इंटरनेट भी नहीं था, सो अलग-अलग लाइब्रेरी में किताबें ढूंढ़ता, पढ़ता और सीखता रहता। इनोवेशन चलता रहा, अब मिलिंद ड्रोन और रोबोट्स भी बनाने लगा था। इसी बीच एक साइंस इवेंट में मिलिंद की मुलाकात मिसाइल मैन ऑफ इंडिया यानी डॉ एपीजे अब्दुल कलाम से हुई। आयोजक ने इशारा किया- “कलाम साहब आ रहे हैं, तैयार रहो।” मिलिंद अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। उसके हाथ कांप रहे थे। कलाम साहब रुके और पूछा- “ये क्या है?” मिलिंद ने झिझकते हुए कहा- “सर, ये एक रोबोट है।” कलाम साहब ने पूछा- “तुमने बनाया?”
“यस सर…।” कलाम साहब ने रोबोट को गौर से देखा फिर बोले- “ये क्या कर सकता है?” मिलिंद- “सर, ये सामने की चीज पहचानता है और रास्ता बदल लेता है।” मिलिंद ने स्विच ऑन किया। रोबोट चला, रुकावट सामने आने पर उसने रास्ता बदल लिया। डॉ कलाम बहुत प्रभावित हुए, बोले- “जो तुम बना रहे हो, इसे दुनिया के सामने ले जाओ। प्रतिभा तभी काम आती है जब जिम्मेदारी जुड़ जाए।” डॉ कलाम ने मिलिंद को ‘ड्रोनमैन’ का नाम दिया। इससे मिलिंद का हौसला काफी बढ़ गया। कुछ साल बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने इस युवा साइंटिस्ट और इनोवेटर को आगे बढ़ने के लिए 5 लाख रुपए की मदद की। इन पैसों से मिलिंद ने ‘रोबोज डोटिन टेक’ नाम से खुद की कंपनी खड़ी की। अब मिलिंद अलग-अलग तरह के ड्रोन और रोबोट्स बनाने लगे। सर्विलांस ड्रोन, रेस्क्यू ड्रोन, इंडस्ट्रियल ड्रोन और खास जरूरतों के हिसाब से तैयार किए गए रोबोट। उनके बनाए ड्रोन और रोबोट्स की मांग इंडस्ट्री में बढ़ने लगी। भारत के साथ-साथ विदेशी कंपनियां भी उनसे जुड़ने लगीं। कोरोना के दौरान मिलिंद ने सैनिटाइजेशन करने वाले ड्रोन बनाए। उसके जरिए कॉलोनियों, सड़कों और सार्वजनिक जगहों को सैनिटाइज किया गया। मिलिंद राज के बनाए ड्रोन और रोबोट्स रेस्क्यू ऑपरेशन में काम आ रहे थे। जनवरी, 2023 में लखनऊ के अलाया अपार्टमेंट में भीषण आग लग गई। ऊपर की मंजिलों में लोग फंसे थे, चारों तरफ सिर्फ धुआं था। मिलिंद के बनाए ड्रोन से रेस्क्यू टीम ने अंदर फंसे लोगों की लोकेशन पता लगाई और 14 लोगों को बचाया। नवंबर, 2023 में उत्तराखंड में उत्तरकाशी की टनल में फंसे मजदूरों को निकालने में भी मिलिंद के ड्रोन काम आए। ड्रोन ने टनल के भीतर की लोकेशन और हालात की सटीक जानकारी रेस्क्यू टीम को दी। जानकारी के आधार पर 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाला जा सका। मिलिंद पिछले एक दशक से ड्रोन और रोबोट्स पर काम कर रहे हैं। जुगाड़ से शुरू हुए एक्सपेरिमेंट अब करोड़ों की ड्रोन कंपनी बन चुकी है। उनकी टीम में सिर्फ आठ लोग हैं। दिलचस्प बात ये है कि इनमें कई ऐसे हैं, जिनके पास कोई टेक्निकल डिग्री नहीं है। मिलिंद का मानना है कि सीखने के लिए ‘डिग्री’ से ज्यादा जरूरी ‘जिज्ञासा’ होती है। *** स्टोरी एडिट- कृष्ण गोपाल ग्राफिक्स- सौरभ कुमार *** कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है। ———————————————————- सीरीज की ये स्टोरी भी पढ़ें… “आग लगा दूंगा पर कम दाम में फसल नहीं बेचूंगा”: पत्नी के जुगाड़ से चमका यूपी के किसान का भाग्य; टर्नओवर 1 करोड़, मुनाफा 45 लाख 50 पैसे किलो बिक रहा था गन्ना, किसान बोला- आग लगा दूंगा, लेकिन कम दाम में नहीं बेचूंगा। पत्नी ने कहा- आग लगाने से पहले थोड़ा गन्ना निकाल लेना, सिरका बनाना है। ‘भाग्यवान’ के जुगाड़ ने ‘भाग्य’ खोल दिया। सड़क किनारे से शुरू हुआ बिजनेस एक करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच गया और मुनाफा 45 लाख से ऊपर। पूरी स्टोरी पढ़ें…
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