सैदपुर क्षेत्र में ठंड का मौसम शुरू होते ही संरक्षित जीव साही का बड़े पैमाने पर अवैध शिकार फिर से शुरू हो गया है। शिकारी साही के मांस को आम लोगों, होटलों और रेस्तरां में ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं, जिससे क्षेत्र में इन जीवों की संख्या तेजी से घट रही है और उनके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। साही मुख्य रूप से सैदपुर क्षेत्र में गंगा और गोमती नदी के किनारों, नहरों के आसपास तथा ग्रामीण इलाकों के सुनसान मिट्टी के टीलों में मांद बनाकर रहते हैं। पिछले कुछ वर्षों से मांस के लिए इनका बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप इनकी आबादी में तेजी से गिरावट आई है। शिकारी साही के मांद और उनके आने-जाने वाले रास्तों पर जमीन में मजबूत लड़ी गाड़कर क्लच वायर के फंदे लगाते हैं। इन फंदों में फंसने के बाद साही की तड़प-तड़प कर मौत हो जाती है। स्थानीय वरिष्ठ अधिवक्ता अवनीश चौबे ने बताया कि साही को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 4 के तहत संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया है। इस अधिनियम के तहत साही के शिकार पर 3 वर्ष तक की कैद का प्रावधान है, जिसे दोबारा अपराध करने पर 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। साथ ही, 10 हजार से 25 हजार रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह प्रावधान इन जीवों के अवैध शिकार को रोकने और उन्हें संरक्षित करने के उद्देश्य से किया गया है। हालांकि, वन विभाग की कथित अनदेखी के कारण सैदपुर में इस संरक्षित जीव का अवैध शिकार बेधड़क जारी है, जो चिंता का विषय है।
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