‘मैंने सूद पर कुछ पैसे लिए थे। कई गुना देने के बाद भी कर्ज खत्म ही नहीं हो रहा। सूदखोर मुझे एक बार पकड़कर मार चुका है और हमेशा जान से मारने की धमकी दिलवाता है। जान बचाने के लिए इधर-उधर भागता रहता हूं। मैं अब अपनी जिंदगी से हार चुका हूं…।’ ये दर्द कुशीनगर के शिक्षामित्र अश्विनी मिश्रा के हैं। उन्होंने बुधवार को पडरौना में ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी थी। मौत को गले लगाने के पहले उन्होंने 4 पन्ने की सुसाइड नोट भी लिखा। इसके अलावा उन्होंने एक वॉट्सऐप ग्रुप पर अपनी आर्थिक हालत को बयां करते हुए साथी शिक्षकों से मार्मिक अपील भी की थी। अश्विनी की मौत की सूचना के बाद सैकड़ों शिक्षक उनके अंतिम संस्कार में पहुंचे। एक टीचर तो भावुक हो गए। पढ़िए पूरी रिपोर्ट पहले पढ़िए सुसाइड नोट में क्या लिखा… अश्विनी मिश्रा ने सुसाइड नोट में लिखा: मैंने सूदखोर घनश्याम वर्मा से कुछ पैसे लिए थे। जितना पैसा लिया था उससे ज्यादा ही दे चुका हूं लेकिन वो 10% सैकड़ा के हिसाब से मेरे ऊपर ब्याज चढ़ा रहा है। ब्याज पर ब्याज जोड़ रहा है। मुझे एक बार पकड़कर मार चुका है और अपने दो आदमियों से हमेशा मारने पीटने और जान से मारने की धमकी दिलवाता है। मैं जान बचाने के लिए इधर-उधर भागता रहता हूं। एक बार मुझे जहर देने की बात कर रहा था। लिहाजा मैं सूदखोर के हाथ से मरने से अच्छा है कि आत्महत्या कर लूं। मेरी आत्महत्या करने की वजह घनश्याम वर्मा की है। मैं शासन से प्रार्थना करता हूं कि इन सूदखोर के खिलाफ कार्रवाई की जाए। ताकि फिर किसी की जान इनकी वजह से न जाए। मेरा मानदेय बढ़ा नहीं लेकिन कर्ज बढ़ता गया। मैं अब अपनी जिंदगी से हार चुका हूं…। शिक्षा मित्र ने सुसाइड लेटर के आखिरी 3 पन्नों पर लिखा– मैं अश्विनी कुमार मिश्रा आप सभी को बताना चाहता हूं कि सुभाष प्रसाद शिक्षा मित्र को उनकी जमीन खरीदने के लिए कई बार में 4 लाख 50 हजार रुपए दे दिए हैं। जिसका गवाह रवि भूषण तिवारी और विक्रम खरवार पखनहां के लोग हैं। आज कई महीनों से न ही मुझे जमीन दे रहे हैं और न ही मेरा पैसा वापस कर रहे हैं। शासन प्रशासन से प्रार्थना है कि सुभाष से मेरे परिवार को पैसा या जमीन दिलाने की कृपा करें। अगले पेज पर लिखा– मेरे साथी केशरी पांडे उर्फ सोनू ने मेरी जमीन लिखाकर भी 3 लाख का चेक देकर उसका पेमेंट नहीं कराया और जब खेत हो गया तो अपना मोबाइल बंद कर लिया। मैंने कई बार कहा लेकिन पैसे नहीं दे रहे हैं। बाद में वो चेक भी बाउंस करा दिया। कृपया उनसे मेरे परिवार को पैसा दिलाने की कृपा करें। वाट्सएप ग्रुप पर भी छलका दर्द अश्विनी ने एक वाट्सएप ग्रुप पर लिखा– मैं अपने जिंदगी से हार चुका हूं, आप लोगों से विनती है कि मेरे परिवार का सहयोग करके मेरे क्रिया कर्म में अपना कुछ सहयोग करें। मेरा साथ देने के लिए श्मशान घाट तक सभी लोग आएं। अब पढ़िए पूरा मामला कुशीनगर मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर अहिरौली बाजार थाना क्षेत्र के बलुआ गांव के अश्विनी मिश्रा (47) 2006 में शिक्षामित्र बने थे। उनके पिता स्व. रामचन्द्र मिश्रा रिटायर्ड शिक्षक थे। कोरोना काल में पिता की मौत हो गई। शुरुआत में अश्विनी अपने ही क्षेत्र के एक प्राइमरी स्कूल में 9 साल तक शिक्षा मित्र रहे। 2015 में सपा सरकार में शिक्षामित्रों का समायोजन किया गया। अश्विनी को उनके गांव से 55 किमी दूर विशुनपुरा ब्लॉक का कंपोजिट विद्यालय परखना दिया गया। उनका वेतन 39 हजार रुपए हो गया। वो अपना गांव छोड़कर यहां किराए पर रूम लेकर रहने लगे। दो साल तक वो पढ़ाते रहे। लेकिन 2017 में सरकार बदलते ही शिक्षा मित्रों को फिर से पुराने वेतन पर तैनात कर दिया गया। उनका मानदेय घटकर 10 हजार रुपए हो गया। अचानक से वेतन कम होने से उनकी आर्थिक स्थिति तंग हो गई। हालांकि, जैसे तैसे वह जीवनयापन कर रहे थे। परिजन बताते हैं कि रोज की भांति, वह बुधवार सुबह स्कूल जाने के लिए निकले थे। लेकिन स्कूल जाने की बजाय वह पडरौना में खड्डा रोड पर रेलवे फाटक के पास गोरखपुर जा रही पैसेंजर ट्रेन के सामने कूद गए। जेब में मिले मोबाइल से पुलिस ने कॉल की तो बेटे ऋषभ और पत्नी सुमन मिश्रा ने पहचान की। पुलिस को मोबाइल में सुसाइड नोट के पन्ने मिले। जिससे सुसाइड का कारण पता चला। साथी टीचर रोते हुए बोले– वो शिक्षामित्र न होता तो जिंदा होता शिक्षा मित्र अश्विनी मिश्रा के अंतिम संस्कार में कप्तानगंज राम जानकी घाट पर सैकड़ों की संख्या में शिक्षा विभाग के कर्मचारी और टीचर पहुंचे। अश्विनी के साथ परखना के कंपोजिट स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर रविभूषण भावुक हो गए। उन्होंने रोते हुए बताया– अश्विनी का 14 साल का बेटा है और 10 साल की बेटी पाखी है। बेटा केंद्रीय आवासीय स्कूल में पढ़ता है। जबकि बेटी एक निजी स्कूल कक्षा 5 में पढ़ती है। कमरे का किराया और बच्चों की पढ़ाई, 10 हजार रुपए में नहीं हो पा रहा था। मानदेय बढ़ने की उम्मीद में उन्होंने कुछ लोगों से ब्याज पर कर्ज ले लिया था। कुछ पैसा उसने जमीन में लगा दिया लेकिन उसके साथ धोखाधड़ी हो गई। अश्विनी की मौत सिर्फ उसकी नौकरी की वजह से हुई है। अगर वह शिक्षामित्र नहीं होता तो आज जिंदा होता। सरकार के शिक्षा मित्रों से जो वादे किए वो झूठे हैं। 24 साल की सेवा के दौरान मानदेय में अठन्नी भी नहीं बढ़ी। 10 हजार भी समय पर नहीं मिलता। समय पर मानदेय नहीं आने की वजह से उसे कर्ज लेना पड़ा ताकि बच्चों की पढ़ाई और रूम का खर्च सब चल सके। उम्मीद थी कि दिन सुधरेंगे… रवि भूषण ने कहा– अश्विनी को उम्मीद थी कि सरकार ध्यान देगी तो दिन सुधरेंगे। स्कूल की रसोइयों तक को वो अपनी जेब से त्योहार पर 2 हजार रुपए दे देता था। मगर हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते चले गए। आलम यह कि इस बार 15 अगस्त को स्कूल आने से पहले वो रोने लगा। कहने लगा कि इस बार मेरे पास अपनी गाड़ी में तेल डलवाने के पैसे नहीं हैं, रसोइयों को कहां से दूंगा। उनको बड़ी उम्मीद होगी कि मैं पैसे दूंंगा, इसलिए मास्टर साहब मैं नहीं आऊंगा। उसकी उम्मीद टूटती जा रही थी। दूसरों को सहारा देने वाला अश्विनी अब अपने ही परिवार को बेसहारा छोड़ गए। साथी शिक्षामित्र को याद करते हुए रवि भूषण फफक कर रो पड़े। मौजूद अन्य साथियों ने रवि भूषण को संभाला। मौजूद लोगों की आंखें नम थीं। दरअसल, अश्विनी परिवार के एकमात्र कमाऊ सदस्य थे। राजपूत कॉलोनी में किराए के मकान में परिवार सहित रहते थे। उनकी मौत के बाद पत्नी सुमन बार-बार बेहोश हो रही हैं। बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल था। बेटा बोला–पापा चाहते थे क्रिकेटर बनूं पिता को मुखाग्नि देने आए बेटे ऋषभ ने कहा– पापा कहते थे कि तुम्हें क्रिकेटर बनाऊंगा, मैं केंद्रीय आवासीय विद्यालय में पढ़ता हूं। एक दिन पहले ही पापा से बात हुई थी तो उन्होंने कुछ ऐसा नहीं बताया। हम लोग को अकेला छोड़कर चले गए। अब पापा का सपना पूरा करूं या परिवार देखूं समझ नहीं आ रहा। इतना कहते हुए ऋषभ का गला भर आया। शिक्षक संघ बोला– सरकार मुआवजा और नौकरी दे यूपी प्राथमिक शिक्षक संघ के मंडल महामंत्री ओमकार नाथ पासवान ने कहा– अब ₹10000 में गुजारा नहीं हो पाता लेकिन सरकार गूंगी बहरी बनी हुई है। नतीजा हर रोज प्रदेश भर में कई शिक्षामित्र काल के गाल में समा रहे हैं। सरकार को सभी शिक्षा मित्रों की सुधि लेनी चाहिए। अश्विनी के परिवार को मुआवजा और नौकरी देनी चाहिए। शिक्षामित्र हरिलाल प्रसाद ने कहा– प्रदेश के लगभग डेढ़ लाख शिक्षामित्रों के साथ सरकार भेदभाव कर रही है। जिले में ही ढाई हजार से अधिक शिक्षामित्र हैं जो 24 सालों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अन्य प्रदेशों में 10 साल भी जिन्होंने नौकरी की, उसका वेतन बढ़ा। लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं है। —————— ये खबर भी पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट: विदा होकर आई दुल्हन, पीछे से आई चाचा–ताऊ की लाशें:कासगंज में दूल्हे का भाई बोला- हत्यारे ने बदला लिया कासगंज में जिस सपा नेता के घर में दुल्हन विदा होकर आई, उसी घर में 10 घंटे बाद दूल्हे के चाचा और ताऊ की लाश पहुंची। लाल जोड़े में आई दुल्हन और दूल्हा खुद को कोसते रहे। वे कहने लगे कि जहां से एक दिन बैंडबाजे के साथ बारात विदा हुई थी, पूरा परिवार खुशियां मना रहा था। अब वहीं से परिवार के 2 लोगों की लाशें उठ रहीं, ये मंजर देखा नहीं जा रहा। हत्यारे ने छोटी सी बात पर चाचा-ताऊ और मौसा को रौंद दिया। इसके बाद तेजी से कार भगाकर फरार हो गया। पूरी खबर पढ़ें
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