सुल्तानपुर जिला अस्पताल का अस्तित्व मार्च 2026 तक समाप्त होने की आशंका है। इसे मेडिकल कॉलेज में विलय करने की चर्चाओं से लाखों गरीब, मजदूर, किसान और आम नागरिकों में चिंता बढ़ गई है। यह अस्पताल वर्तमान में इन वर्गों के लिए एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सुविधा है। जिले में ग्रामीण आबादी अधिक होने के कारण यह अस्पताल विशेष महत्व रखता है। यदि जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में मिलाया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। वर्तमान में प्रतिदिन 3000 से 4000 लोग जिला अस्पताल की ओपीडी सेवाओं का लाभ उठाते हैं, जिनके लिए यह एक बड़ा संकट होगा। मेडिकल कॉलेज में अधिकांश स्वास्थ्य सुविधाएं शुल्क आधारित होती हैं। ऐसे में गरीब और असहाय मरीजों के लिए इलाज कराना अत्यंत कठिन हो जाएगा। जिला अस्पताल का मूल उद्देश्य, जो विशेष रूप से गरीबों को निःशुल्क या न्यूनतम शुल्क पर इलाज उपलब्ध कराना है, प्रभावित होगा। जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के बीच लगभग 9 किलोमीटर की दूरी है। ओपीडी के लिए आने-जाने में मरीजों को जाम की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। आपातकालीन स्थिति में मरीजों को वहां तक ले जाने में कठिनाई हो सकती है, जिससे जान का जोखिम बढ़ने की आशंका है। मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसरों और डॉक्टरों की प्राथमिक जिम्मेदारी शिक्षण होती है। इससे ओपीडी और इमरजेंसी सेवाएं प्रभावित होने की आशंका है। वर्तमान जिला अस्पताल में उपलब्ध त्वरित उपचार, इमरजेंसी सुविधा और सहज उपलब्धता मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था में बाधित हो सकती है। राज्य कर्मचारी कल्याण संघ और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के अध्यक्ष ओम प्रकाश गौड़ सहित अन्य कर्मचारियों ने जिला अस्पताल के अस्तित्व को बचाने और जनता के हित में अपील की है। उन्होंने मांग की है कि जिला अस्पताल को यथावत रखा जाए और मेडिकल कॉलेज में अलग से पूर्ण ओपीडी, इमरजेंसी तथा अस्पताल की व्यवस्था विकसित की जाए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि किसी भी निर्णय से पहले जनपदवासियों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों से संवाद किया जाए।
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