वाराणसी के गंजारी क्षेत्र में निर्माणाधीन पहला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम अब धीरे-धीरे अपनी आकृति में दिखाई देने लगा है। इस स्टेडियम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसका स्थापत्य और डिज़ाइन भगवान शिव के त्रिशूल, डमरू और पौराणिक काशी की आध्यात्मिक संरचना पर आधारित है। इसी विषय पर सुमेरू पीठाधीश्वर नरेंद्रानंद सरस्वती ने स्टेडियम को काशी की आध्यात्मिक पहचान का जीवंत प्रतीक बताया। शिव नगरी में स्टेडियम को मिली शिव पहचान नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि काशी अनादिकाल से शिव की नगरी मानी जाती है। कृतयुग, सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग हर युग में शिव स्वयं काशी को धारण करते हैं। कभी त्रिकोणीय रूप में, कभी धनुषाकार, तो कभी त्रिशूल और डमरू के प्रतीकात्मक स्वरूप में यह पवित्र नगरी शिव के तत्वों से जुड़ी रही है। ऐसे में काशी में नया स्टेडियम यदि त्रिशूल और डमरू के स्वरूप पर आधारित है, तो यह केवल वास्तु नहीं बल्कि आध्यात्मिक धरोहर का आधुनिक रूपांतरण है। काशी की पहचान मजबूत होगी पीठाधीश्वर ने कहा शिव इस देश के अनादि देव हैं। काशी उनका हृदय है। यहां जो भी कार्य शिव से प्रेरित होकर होता है, वह श्रेष्ठ होता है। गंजारी में बन रहा यह स्टेडियम शिव के त्रिशूल का प्रतीक है और यह काशी के गौरव को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। सरकार का यह कार्य उत्तम और सराहनीय है। उन्होंने यह भी कहा कि काशी केवल आध्यात्मिकता की राजधानी ही नहीं, बल्कि अब खेल, संस्कृति और आधुनिक सुविधाओं की दिशा में भी तेजी से आगे बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर का यह स्टेडियम न केवल स्थानीय युवाओं को अवसर देगा, बल्कि विश्वस्तर पर काशी की पहचान को और मजबूत करेगा। भूमाफिया पर कारवाई हो आचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि जिस प्रकार सरकार उत्कृष्ट विकास कार्य कर रही है, उसी प्रकार शहर में सक्रिय भूमि माफियाओं पर भी कड़ी कार्रवाई आवश्यक है।काशी में माफिया लोगों की जमीन कब्जा करते हैं, परेशान करते हैं। जिस प्रकार सरकार विकास के क्षेत्र में सशक्त कदम उठा रही है, उसी प्रकार माफियाओं पर भी कठोर प्रहार होना चाहिए। विकास तभी पूर्ण माना जाएगा जब जनता सुरक्षित और निडर होगी।
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