सिद्धार्थनगर के प्रमुख सरकारी मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी सेवाओं पर एक बार फिर गंभीर सवाल उठे हैं। कड़ाके की ठंड के बावजूद, इमरजेंसी के बाहर मरीजों के तीमारदार बदहाली और शीतलहर से जूझने को मजबूर हैं। यहां न तो रेन बसेरा की उचित व्यवस्था है और न ही पर्याप्त अलाव की। इमरजेंसी गेट के बाहर ठंड से बचाव के लिए केवल एक ही जगह लकड़ी जलाकर अलाव की औपचारिक व्यवस्था की गई है। यह अलाव इतना छोटा है कि कई लोग एक साथ हाथ नहीं सेंक पाते। लकड़ियों की कमी के कारण आग दूर तक दिखाई नहीं देती, जिससे लोगों को ठंड से राहत नहीं मिल पा रही है। दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों से आए मरीजों के परिजन पूरी रात खुले आसमान के नीचे ठिठुरते हुए अपनी बारी का इंतजार करते हैं। बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। तीमारदारों का कहना है कि उन्हें रात भर मरीज के इलाज की उम्मीद में बैठना पड़ता है, लेकिन ठंड से बचने के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं हैं। यहां बैठने के लिए पर्याप्त बेंच भी नहीं हैं, और न ही ठहरने के लिए कोई अस्थायी रेन बसेरा या शेड उपलब्ध है। बारिश या कोहरे की स्थिति में हालात और भी बदतर हो जाते हैं। स्थानीय लोगों और तीमारदारों का आरोप है कि हर साल ठंड के मौसम में यही स्थिति रहती है। जिम्मेदार अधिकारी केवल कागजी तैयारियों तक ही सीमित रहते हैं। अलाव के नाम पर कभी-कभार लकड़ी रख दी जाती है, जो कुछ ही घंटों में खत्म हो जाती है। मरीजों के साथ आए परिजनों ने सवाल उठाया है कि जब जिला और प्रदेश स्तर पर शीतलहर को लेकर अलर्ट जारी किया जाता है, तो अस्पताल परिसर में विशेष इंतजाम क्यों नहीं किए जाते।
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