सिद्धार्थनगर जिले के भवानीगंज थाना क्षेत्र के हिसामुद्दीनपुर गांव स्थित तकियवा में धार्मिक स्थल को लेकर छिड़ा विवाद गुरुवार को और भड़क गया। सुबह होते ही प्रशासन ने पूरे इलाके को छावनी में बदल दिया। भारी पुलिस बल, पीएसी, खुफिया टीमें और अधिकारी पूरे क्षेत्र में डटे रहे। विवाद उस समय तेज़ हुआ जब नगर पंचायत बढ़नी चाफा के अध्यक्ष धर्मराज वर्मा ने दावा किया कि तकियवा का यह स्थल किसी मजार का नहीं, बल्कि तपस्वी संत बाबा राम अवतार दास की समाधि है। उनका आरोप है कि 2007 में तत्कालीन विधायक तौफीक अहमद के समय इसे जबरन मजार का रूप दे दिया गया। वर्मा का कहना है कि यह मामला वर्षों से दबा रहा, लेकिन अब हिंदूवादी संगठनों के साथ मिलकर “स्थल को उसके वास्तविक स्वरूप में” वापस लाया जाएगा। इसी क्रम में पूर्व विधायक राघवेंद्र प्रताप सिंह के निर्देश पर 8 दिसंबर को हिंदूवादी संगठनों ने स्थल पर पहुंचकर इसे संत की समाधि घोषित कर दिया। इसके बाद गुरुवार को बड़े पैमाने पर हनुमान चालीसा और भंडारे का कार्यक्रम तय हुआ था, जिससे माहौल और गर्माया। कार्यक्रम स्थगित, पर राजनीतिक टकराव जारी
बुधवार देर रात नगर पंचायत अध्यक्ष धर्मराज वर्मा ने वीडियो जारी कर शांति व्यवस्था का हवाला देते हुए कार्यक्रम स्थगित कर दिया। इसके बावजूद तनाव थमा नहीं। गुरुवार को सपा नेता जमील सिद्दीकी, मोनू दुबे, फरहान खान और समाजसेवी अरबाब फारूकी स्थल पर पहुंचे। उन्होंने ज़ियारत की और इसे पुराना मजार बताते हुए आरोप लगाया कि “हिंदूवादी संगठन राजनीतिक लाभ के लिए माहौल बिगाड़ रहे हैं।”इस दौरे के बाद विवाद ने नया मोड़ ले लिया और दोनों पक्षों की बयानबाजी से तनाव और बढ़ गया। भारी फोर्स तैनात, रास्ते सील
सुबह से ही भवानीगंज क्षेत्र में भारी पुलिस फोर्स के साथ एसआईटी और प्रशासनिक अधिकारियों का जमावड़ा लगा रहा। धार्मिक स्थल के आसपास बैरिकेडिंग कर रास्ते बंद कर दिए गए।अधिकारियों ने साफ किया है—“भीड़ जुटाने, नारेबाजी, या किसी भी तरह की उकसावे वाली गतिविधि पर तुरंत कार्रवाई होगी।” स्थानीय लोग घरों में ही कैद हैं। कई दुकानें बंद हो गईं। सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट रोकने के लिए साइबर मॉनिटरिंग बढ़ा दी गई है। विवाद की जड़: समाधि या मजार?
स्थानीय ग्रामीणों का एक वर्ग दावा करता है कि यह स्थान करीब 30 साल पहले तपस्या में लीन रहे बाबा राम अवतार दास की समाधि थी और धीरे-धीरे इसे मजार का रूप दे दिया गया।वहीं मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह एक प्रचलित और पुराना मजार है, जहां दशकों से ज़ियारत होती आ रही है।
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