श्री साईं फार्मा क्लीनिक में कथित तौर पर गलत ऑपरेशन के कारण एक नवजात शिशु की मौत और मां की गंभीर स्थिति के मामले में जांच टीम ने पीड़िता के पति आशीष के बयान दर्ज किए हैं। जांच में सामने आया है कि इस क्लीनिक का कोई वैध रजिस्ट्रेशन नहीं है। आशीष ने मंगलवार को सीएमओ कार्यालय में दिए अपने बयान में बताया कि उनकी पत्नी का गलत ऑपरेशन किया गया, जिससे उन्हें गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हुईं और उनके बच्चे की जान चली गई। उन्होंने आरोप लगाया कि ऑपरेशन के बाद उनकी पत्नी के लैट्रिन और पेशाब का रास्ता एक हो गया है। उन्होंने बताया कि 30 अक्टूबर को उनकी पत्नी को पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बर्डपुर ले जाया गया था। वहां डॉक्टरों ने डिलीवरी का समय पूरा न होने की बात कही थी। इसके बाद, एक आशा कार्यकर्ता ने उन्हें श्री साईं फार्मा क्लीनिक ले जाने का सुझाव दिया। आशीष के अनुसार, क्लीनिक में जबरन पेट दबाकर डिलीवरी करवाई गई और एक छोटा ऑपरेशन किया गया, जिसके परिणामस्वरूप शिशु की मौत हो गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 19 दिसंबर को उन्हें क्लीनिक बुलाया गया और 15 हजार रुपए देने तथा वीडियो बनवाने का दबाव डाला गया। उनसे सादे कागज पर हस्ताक्षर भी करवाए गए, लेकिन बाद में पैसे जबरन छीन लिए गए। जांच टीम ने इन सभी आरोपों को रिकॉर्ड में लिया है। पीड़िता की ननद ने भी इन आरोपों की पुष्टि की है और परिवार के लिए न्याय की मांग की है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि क्लीनिक और आशा कार्यकर्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो भविष्य में अन्य परिवार भी ऐसी घटनाओं का शिकार हो सकते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने पुष्टि की है कि श्री साईं फार्मा क्लीनिक का कोई वैध रजिस्ट्रेशन नहीं है। इसके बावजूद, अभी तक क्लीनिक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है और न ही आशा कार्यकर्ता की भूमिका पर कोई ठोस कदम उठाया गया है। पीड़िता ने अपने बयान में बताया कि श्री साईं फार्मा क्लीनिक में उसी कमरे में उनकी डिलीवरी कराई गई थी और छोटा ऑपरेशन किया गया था। पिता का आरोप- पत्नी का गलत ऑपरेशन कर दिया मंगलवार को जांच टीम ने पीड़िता के पति आशीष से सीएमओ कार्यालय में बुलाकर बयान दर्ज किया। पिता ने पूरे घटनाक्रम का खुलासा करते हुए कहा, “मेरी बच्चे की जान ले ली गई और मेरी पत्नी का गलत ऑपरेशन कर दिया, जिससे लैट्रिन और पेशाब का रास्ता एक हो गया।” उन्होंने बताया 30 अक्टूबर को पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बर्डपुर ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने कहा कि डिलीवरी का समय अभी पूरा नहीं हुआ है। इसके बाद, आशा कार्यकर्ता ने पहले फैसला कर लिया था कि पीड़िता को प्राइवेट श्री साईं फार्मा क्लीनिक ले जाया जाएगा। पिता के अनुसार, क्लीनिक में जबरन पेट दबाकर डिलीवरी करवाई गई और छोटा ऑपरेशन किया गया, जिसके चलते पीड़िता को गंभीर स्वास्थ्य समस्या हुई और शिशु की मौत हो गई। आशीष ने यह भी आरोप लगाया कि 19 दिसंबर को उन्हें क्लीनिक बुलाकर 15 हजार रुपए देने और वीडियो बनवाने का दबाव डाला गया, साथ ही सादे कागज पर हस्ताक्षर भी करवाए गए, लेकिन पैसे बाद में जबरन छीन लिए गए। इस पूरे एंगल को जांच टीम ने रिकॉर्ड में लिया है। पीड़िता की ननद ने भी आरोपों की पुष्टि की और कहा कि परिवार को न्याय चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि क्लीनिक और आशा कार्यकर्ता के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो भविष्य में किसी और परिवार के साथ भी ऐसी घटना हो सकती है। आशा कार्यकर्ता पर मिलीभगत का आरोप जांच में अब तक यह सामने आया है कि स्वास्थ्य विभाग ने पुष्टि कर दी है कि श्री साईं फार्मा क्लीनिक का कोई वैध रजिस्ट्रेशन नहीं है। इसके बावजूद अभी तक क्लीनिक के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई, और न ही आशा कार्यकर्ता की भूमिका पर कोई ठोस कदम उठाया गया है। पीड़िता ने बयान में कहा कि श्री साईं फार्मा क्लीनिक यही वह जगह और वही कमरा था, जहां उन्हें क्लीनिक में ले जाकर डिलीवरी कराई गई थी और छोटा ऑपरेशन किया गया था। मामले के सामने आने के बाद पहले स्वास्थ्य विभाग ने इसे अनजान बताया था। सीएमओ ने कहा था कि उन्हें मामले की कोई जानकारी नहीं है। हालांकि जिलाधिकारी शिवशरणप्पा जी.एन. के हस्तक्षेप के बाद जांच तेज हुई, और उन्होंने तीन सदस्यीय जांच टीम गठित करने के निर्देश दिए। जांच टीम में एडिशनल सीएमओ डॉ. संजय गुप्ता, एडिशनल सीएमओ डॉ. आशीष अग्रहरी, और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बर्डपुर के अधीक्षक डॉ. सुबोध चंद्र को पूरे घटनाक्रम की परत-दर-परत जांच का जिम्मा सौंपा गया है। डॉ. सुबोध चंद्र ने बताया कि जांच में यह स्पष्ट किया गया है कि डिलीवरी किसने कराई, पीड़िता को क्लीनिक तक कौन लेकर गया, और क्लीनिक में छोटा ऑपरेशन किसने किया। इसके साथ ही यह भी जांच में शामिल है कि वीडियो बनवाने और हस्ताक्षर करवाने का दबाव किसने डाला। क्लीनिक में गलत इलाज के बाद पीड़िता की हालत बिगड़ने पर उन्हें पहले माधव प्रसाद तिवारी मेडिकल कॉलेज और फिर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। जांच टीम यह देख रही है कि मरीज को किन हालात में रेफर किया गया और इलाज में कहीं लापरवाही तो नहीं हुई। पूरे मामले में आशा कार्यकर्ता की भूमिका भी जांच के घेरे में है। यह देखा जा रहा है कि आशा पहले फैसला कर चुकी थी कि पीड़िता को प्राइवेट क्लीनिक ले जाया जाएगा, और क्या इसके पीछे कोई दबाव या साजिश थी।
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