मनरेगा का महाघोटाला: नौगढ़ के महादेव खुर्द और जगदीशपुर राजा में कागजों पर भीड़, जमीन पर सन्नाटा सिद्धार्थनगर जिले के विकासखंड नौगढ़ में मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना आज अपने मूल उद्देश्य से भटकती दिखाई दे रही है। ग्रामीण गरीबों को रोजगार देने के लिए शुरू की गई यह योजना अब कागजों और पोर्टल तक सिमट कर रह गई है। महादेव खुर्द और जगदीशपुर राजा गांवों से सामने आए आंकड़े इस बात के साफ संकेत दे रहे हैं कि मनरेगा के नाम पर एक संगठित और सुनियोजित घोटाला लंबे समय से संचालित किया जा रहा है। महादेव खुर्द गांव में 24 नवंबर से 7 दिसंबर के बीच महज 12 दिनों में 1057 मस्टर रोल हाजिरी दर्ज की गईं। जमीनी हकीकत यह है कि मौके पर काम करते मजदूरों की संख्या 10 से 12 से अधिक कभी नहीं रही। इन्हीं सीमित मजदूरों की तस्वीरों को अलग-अलग मस्टर रोल में जियो टैग कर दिया गया। फोटो वही, चेहरे वही, लेकिन हर मास्टर रोल में नाम बदल दिए गए। इस फर्जी हाजिरी के आधार पर 2,66,364 रुपये की लागत कागजों में खर्च दिखा दी गई। सवाल यह है कि जब मजदूर वही थे, तो हाजिरी पांच-दस गुना कैसे बढ़ गई?यही नहीं, जगदीशपुर राजा गांव में हालात और ज्यादा चिंताजनक हैं। यहां जमीनी स्तर पर केवल 14 मजदूर काम करते पाए गए, लेकिन कागजों और ऑनलाइन सिस्टम में 80 से अधिक मजदूरों की उपस्थिति दर्ज दिखाई गई। कुल 19 दिनों में 2000 से ज्यादा हाजिरी मस्टरोल में हा में सामने आया पैटर्न चौंकाने वाला है—• वास्तविक मजदूर बेहद कम• मस्टर रोल में कई गुना हाजिरी• जियो टैग फोटो का बार-बार इस्तेमाल• भुगतान प्रक्रिया में कोई रोक नहीं मनरेगा में पारदर्शिता के लिए लागू की गई जियो टैगिंग, ऑनलाइन मस्टर रोल और डिजिटल भुगतान प्रणाली अब भ्रष्टाचार को वैध दिखाने का माध्यम बनती जा रही है। तकनीक का उद्देश्य निगरानी था, लेकिन यहां तकनीक ही गड़बड़ी छिपाने का औजार बन गई है। यदि तस्वीरें और लोकेशन सही हैं, तो नामों की जांच क्यों नहीं हो रही? यह प्रश्न पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा करता है। सबसे अहम बात यह है कि ऐसा फर्जीवाड़ा बिना उच्च स्तर की मिलीभगत के संभव नहीं। मस्टर रोल स्वीकृति से लेकर कार्य सत्यापन और भुगतान तक की प्रक्रिया में डीसी मनरेगा, मनरेगा लोकपाल, विकासखंड स्तर के बीडीओ, एपीओ और तकनीकी अधिकारी शामिल होते हैं। यदि दो गांवों में एक ही तरह का घोटाला सामने आ रहा है, तो यह साफ है कि गड़बड़ी नीचे नहीं, बल्कि ऊपर तक फैली हुई है।स्थिति को और गंभीर बनाता है मनरेगा पोर्टल का वह नियम, जिसके तहत सिर्फ 15 दिन का ही डाटा सार्वजनिक रूप से दिखाई देता है। इससे पहले का रिकॉर्ड सिस्टम में सुरक्षित रहता है, लेकिन आम लोगों की पहुंच से बाहर। ऐसे में आशंका है कि महादेव खुर्द और जगदीशपुर राजा से पहले भी इसी पैटर्न पर फर्जी भुगतान किए गए होंगे, जिनका पता अब लगाना आसान नहीं है।जमीनी हकीकत यह है कि गांवों में न तो ठोस परिसंपत्तियां नजर आती हैं, न ही गरीब मजदूरों को नियमित और पूरा रोजगार मिल रहा है। कई कार्य अधूरे हैं या दिखाई ही नहीं देते, लेकिन कागजों में हर काम पूरा, हर भुगतान सफल और हर रिपोर्ट संतोषजनक है। विकास फाइलों में दौड़ रहा है, जमीन पर नहीं।महादेव खुर्द और जगदीशपुर राजा के मामले अब सिर्फ स्थानीय गड़बड़ी नहीं रह गए हैं। ये उदाहरण बताते हैं कि मनरेगा के नाम पर सिस्टम के भीतर बैठे जिम्मेदार लोग योजना की आत्मा से खिलवाड़ कर रहे हैं। अगर समय रहते निष्पक्ष जांच नहीं हुई और जिम्मेदार अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं की गई, तो मनरेगा जैसी योजना पर जनता का भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा।
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