संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान गाजीपुर से राज्यसभा सांसद डॉ. संगीता बलवंत ने राज्य स्तरीय कार्यालयों के नाम बदलने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इन कार्यालयों को नागरिक सेवा केंद्रित बनाने के लिए उनके पदनामों और कार्यप्रणाली में बदलाव आवश्यक है। सदन में अपनी मांग रखते हुए डॉ. बलवंत ने कहा कि भारत का प्रशासनिक ढांचा अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता के अवशेषों से ग्रस्त है। उन्होंने बताया कि कई कार्यालयों को अक्सर शक्ति के केंद्र के रूप में देखा जाता है, न कि जनता की सेवा के साधन के रूप में। यह धारणा सरकारी अधिकारियों और नागरिकों के बीच दूरी पैदा करती है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिलाधिकारी कार्यालय सहित उप-जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और विभिन्न विभागीय प्रमुखों जैसे महत्वपूर्ण राज्य स्तरीय अधिकारियों के पदनाम औपनिवेशिक काल में राजस्व, कानून और प्रशासन को केंद्रीकृत करने के उद्देश्य से स्थापित किए गए थे। यह अधिकार-केंद्रित ढांचा आज भी अधिकारियों के नागरिकों के प्रति व्यवहार को प्रभावित करता है। डॉ. बलवंत के अनुसार, यह व्यवस्था अक्सर जनभागीदारी को बाधित करती है, पारदर्शिता कम करती है, नौकरशाही बाधाएं उत्पन्न करती है और आवश्यक सेवाओं के समय पर वितरण में रुकावट डालती है। सांसद ने अपनी बात के समर्थन में उदाहरण दिए। उन्होंने बताया कि हाल ही में प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम ‘सेवा तीर्थ’, राजपथ का नाम ‘कर्तव्य पथ’, राजभवन का नाम ‘लोक भवन’ और केंद्रीय सचिवालय का नाम ‘कर्तव्य भवन’ किया गया है। ये बदलाव नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण को दर्शाते हैं और यह स्पष्ट करते हैं कि शासन जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता के साथ है। इसी तर्ज पर, उन्होंने मांग की कि सभी राज्य स्तरीय कार्यालयों के नाम बदले जाएं। उन्होंने सुझाव दिया कि जिलाधिकारी जैसे पदनाम को ‘जिला सेवक’ किया जा सकता है, या उन्हें इस तरह से पुनर्गठित किया जाए जिससे उनका वास्तविक उद्देश्य सार्वजनिक सेवा को परिलक्षित हो। डॉ. बलवंत ने जोर दिया कि अधिकारियों के पदनाम और कार्यप्रणाली में विनम्रता, जवाबदेही और नागरिकों के प्रति सेवा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, ताकि वे जनता के लिए मार्गदर्शक और सहायक के रूप में देखे जा सकें।
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