सहारनपुर में गरीबी, बेबसी और संघर्ष के अंधेरे में डूबी एक विधवा मां की जिंदगी में उम्मीद का उजाला तब फूटा जब कोतवाली प्रभारी पीयूष दीक्षित एक पुलिस अधिकारी नहीं, बल्कि धर्मपिता बनकर सामने आए। जहां किसी के आंसू पोंछने वाला भी नहीं था, वहीं पुलिस ने मानवता का हाथ बढ़ाकर एक बेटी की जिंदगी संवार दी। इस मार्मिक घटना ने हर उस आंख को नम कर दिया जिसने इसे सुना या देखा। मोहल्ला छत्ता निवासी सोमती देवी के जीवन ने तब करवट बदली थी जब कई साल पहले उनके पति महेंद्र सिंह गुजर गए थे। पति की मौत के बाद चार-चार बेटियों का बोझ अकेली मां के कमजोर कंधों पर आ गया। पिता के सामने सिर्फ एक बेटी की ही शादी हो पाई थी। दो बेटियों का विवाह सोमती ने मजदूरी कर किसी तरह कर दिया, लेकिन चौथी बेटी की शादी के लिए घर में न पैसा था, न रिश्तेदारों का सहारा बस चिंताओं का पहाड़ था और आंखों में ठहरा हुआ दर्द। अपनी मजबूरी और आंसू लेकर सोमती देवी कुछ दिन पहले मिशन शक्ति महिला हेल्प डेस्क पहुंचीं। वहां उन्होंने महिला सब-इंस्पेक्टर के सामने अपनी टूट चुकी उम्मीदों की कहानी सुनाई। उसी समय कोतवाली प्रभारी पीयूष दीक्षित की नजर उन आंखों में छुपे दर्द पर पड़ी। दर्द देखकर दिल पसीज गया, और उन्होंने वहीं फैसला कर लिया। मां, आप बस लड़की का रिश्ता देख लीजिए, बाकी सब मैं करूंगा। कन्यादान भी वही होगा, जैसे असली पिता करते हैं। ये सुनकर बुजुर्ग मां की आंखों से आंसू बह निकले, पर इस बार दर्द के नहीं, राहत के थे। सोमती देवी ने संसारपुर गांव के युवक सोनू कुमार को पसंद किया और 27 नवंबर की शादी की तारीख तय हो गई। दूसरी ओर कोतवाली प्रभारी ने भोजन, दहेज, कपड़े, बारात हर व्यवस्था इस तरह कराई जैसे वह अपनी ही बेटी की शादी कर रहे हों। शादी के दिन, जब वह मंडप में पहुंचे और धार्मिक रीति के अनुसार बेटी का कन्यादान किया, तो वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें भर आईं। पुलिस वर्दी में खड़े उस अधिकारी ने एक पल में साबित कर दिया कि इंसानियत वर्दी से नहीं, दिल से पहचानी जाती है। वर–वधू ने उनके चरण छूकर आशीर्वाद लिया, और कोतवाली प्रभारी ने पिता की तरह उनके भविष्य की खुशियों की दुआ की।
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