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सहारनपुर में झाड़ियों में सिसकती मिली नवजात…कुत्तों ने नोचा:गोद में उठाकर रो पड़ा गौरक्षा दल के कार्यकर्ता, अस्पताल पहुंचने से पहले हुई मौत, पुलिस कर रही जांच

सहारनपुर के थाना मिर्जापुर क्षेत्र के भागूवाला दौड़बसी में एक ऐसी घटना सामने आई, जिसने इंसानियत को झकझोर दिया। झाड़ियों के बीच से अचानक उठी कातर सी सिसकियों ने ग्रामीणों का ध्यान खींचा। पास जाकर देखा तो वहां एक नवजात बच्ची पड़ी थी। नंगी, असहाय, और दुनिया में आए कुछ ही पल हुए होंगे। उसके रोने की आवाज इतनी कमजोर थी, मानो हर सांस मौत से लड़ाई कर रही हो। स्थानीय लोगों ने तुरंत गौरक्षा दल के कार्यकर्ता सोना पंडित को सूचना दी। जब वह मौके पर पहुंचे और बच्ची को उठाया, उस पल दृश्य इतना दर्दनाक था कि वहां मौजूद कई लोग फफक पड़े। बच्ची का पूरा नन्हा शरीर कुत्तों के हमले से लहूलुहान था, मासूम की शरीर पर गहरे घाव थे। मानो उसने जन्म लेते ही पूरी दुनिया का अत्याचार झेल लिया हो। सोना पंडित ने उसे अपनी बाहों में भरकर अस्पताल तक दौड़ लगाई। रास्ते भर वह एक ही बात दोहराते रहे। बेटी…बस जान में जान रहे। लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने वह शब्द कह दिए, जिसे कोई सुनना नहीं चाहता। बच्ची अब इस दुनिया में नहीं रही। नन्ही जान ने इंसानों की बेरुखी और कुत्तों के हमले दोनों से हार मान ली। डॉक्टरों के अनुसार, बच्ची को जन्म लिए अधिक समय नहीं हुआ था। भारी रक्तस्राव और गंभीर चोटों के कारण उसे बचाया नहीं जा सका। सोना पंडित बच्ची को गोद में लिए देर तक रोते रहे। उन्होंने कहा-सरकारें बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा देती हैं, पर किसी मां ने अपनी कोख से निकली बेटी को इस तरह मरने के लिए छोड़ दिया। इससे बड़ा पाप क्या होगा? ये समाज के अंतरमन को झकझोर देने वाली घटना है। लोग एक-दूसरे से बस यही पूछ रहे हैं कि आखिर वो कौन मां थी, जिसने अपनी मासूम को जन्म लेते ही मौत के मुंह में धकेल दिया? क्या वह मजबूर थी? क्या वह डरी हुई थी? या फिर समाज की दकियानूसी सोच ने उसकी ममता को दबा दिया? इस सवाल का जवाब किसी को नहीं पता। लेकिन बच्ची की मासूम देह की चोटें बहुत बड़े जख्म छोड़ गई हैं। पूरे समाज के दिल पर। ग्रामीणों ने इस घटना को इंसानियत के खिलाफ सबसे बड़ा अपराध बताया और दोषियों की पहचान कर कड़ी कार्रवाई की मांग की। पुलिस घटनास्थल का निरीक्षण कर रही है। आसपास CCTV तलाशे जा रहे हैं ताकि ये पता लगाया जा सके कि नवजात को वहां कौन छोड़ गया। इस घटना ने एक बार फिर ये सच्चाई सामने ला दी है कि कागजों में बेटियां सुरक्षित होंगी, पर वास्तविक सुरक्षा तभी मिलेगी जब समाज की सोच बदलेगी। एक मां ने अपनी कोख में 9 महीने जिस बच्ची को संभाला। क्या उसने उसे मरने के लिए छोड़ा होगा? या वह खुद किसी दर्द में थी? ये सवाल जितना गहरा है, उतना ही कटु भी। लेकिन इतना जरूर है कि आज मिर्जापुर की हवा में एक नवजात की आखिरी चीख गूंज रही है और उस चीख ने पूरे समाज को कठघरे में खड़ा कर दिया है।


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