प्रदेश सरकार की राज्यमंत्री विजय लक्ष्मी गौतम के क्षेत्र चुरिया स्थित सरयू नदी में रविवार को नाव पलटने की घटना ने एक बार फिर दियारा क्षेत्र के ग्रामीणों की असुरक्षा, पीड़ा और उपेक्षा को उजागर कर दिया। गनीमत रही कि हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया कि नदी पार करना आज भी यहां के लोगों के लिए जान जोखिम में डालने जैसा है। हादसे के बाद घाटों पर सन्नाटा पसरा रहा और ग्रामीणों के चेहरों पर डर और चिंता साफ नजर आई। नदी पार करना रोजमर्रा की मजबूरी चुरिया, नदौली और आसपास के दर्जनों गांव सरयू नदी के उस पार दियारा क्षेत्र में बसे हैं। इन गांवों के लोगों की पूरी दिनचर्या नदी पर निर्भर है। खेती, पशुपालन, मजदूरी, बच्चों की पढ़ाई और इलाज तक के लिए उन्हें रोज नदी पार करनी पड़ती है। सुबह खेतों तक पहुंचने और शाम को घर लौटने का एकमात्र सहारा नाव ही है। यह जोखिम भरा सफर वर्षों से उनकी मजबूरी बना हुआ है। नाव पर जरूरत से ज्यादा बोझ नदी पार करते समय खाद, बीज, फसल, चारा, दूध के डिब्बे, गैस सिलेंडर और घरेलू सामान तक नाव पर लादना पड़ता है। कई बार जरूरत इतनी अधिक होती है कि नाव पर क्षमता से ज्यादा सामान रख दिया जाता है। ऐसे में जरा सा असंतुलन भी नाव पलटने की वजह बन सकता है। ग्रामीणों का कहना है कि हर सफर में जान का खतरा रहता है, लेकिन विकल्प न होने के कारण मजबूरी में यह जोखिम उठाना पड़ता है। बरसात और कोहरा बढ़ाते हैं खतरा बरसात के मौसम में सरयू का जलस्तर बढ़ते ही तेज धार और भंवर नाविकों के लिए बड़ी चुनौती बन जाते हैं। वहीं सर्दियों में घना कोहरा दृश्यता कम कर देता है, जिससे हादसों की आशंका कई गुना बढ़ जाती है। इसके बावजूद घाटों पर न तो पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था है और न ही आपात स्थिति से निपटने के कोई इंतजाम। खेती, मशीनें और टूटते वादे बुवाई और कटाई के मौसम में दियारा क्षेत्र के किसानों की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। ट्रैक्टर, थ्रेसर और कंबाइन जैसी भारी कृषि मशीनें नदी पार कर खेतों तक पहुंचाना किसी जोखिम भरे अभियान से कम नहीं होता। कई बार नाव बीच नदी में भंवर में फंस जाती है, तो कभी मशीनें पानी में डूबने की कगार पर पहुंच जाती हैं। इससे किसानों की जान के साथ-साथ लाखों रुपये की मशीनें और पूरी फसल दांव पर लग जाती है। दियारा क्षेत्र की उपजाऊ जमीन किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है, लेकिन नदी पार करने की समस्या खेती की सबसे बड़ी बाधा बन चुकी है। समय पर खाद-बीज न पहुंच पाने से बुवाई प्रभावित होती है, जबकि कटाई में देरी से फसल खराब होने का खतरा बना रहता है। सुरक्षा इंतजाम नदारद ग्रामीणों का कहना है कि सरयू नदी जितनी जीवनदायिनी है, उतनी ही भयावह भी बन चुकी है। इसके बावजूद प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। न तो नावों में लाइफ जैकेट अनिवार्य हैं और न ही नाविकों की नियमित जांच व प्रशिक्षण की व्यवस्था है। हादसे के बाद भी संबंधित विभाग औपचारिकता निभाकर शांत हो जाते हैं। हर चुनाव में वादे, हकीकत में कुछ नहीं ग्रामीणों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है कि हर चुनाव में पीपा पुल या स्थायी पुल बनाने के वादे किए जाते हैं। कई बार आंदोलन, धरना और ज्ञापन भी दिए गए, लेकिन चुनाव खत्म होते ही ये वादे हवा हो जाते हैं। चुरिया घाट पर आज तक न तो स्थायी पुल बन सका और न ही पीपा पुल की नियमित व्यवस्था हो पाई। ग्रामीणों की पीड़ा चंद्रभान यादव (चुरिया) कहते हैं, “हमारी खेती पूरी तरह दियारा में है। जरूरत से ज्यादा सामान नाव पर लादना पड़ता है। हर बार डर रहता है कि कहीं नाव पलट न जाए।”पूर्व प्रधान पारस नाथ का कहना है, “कटाई के समय ट्रैक्टर और कंबाइन ले जाना सबसे बड़ा जोखिम होता है। अगर पुल बन जाए तो खेती, पढ़ाई और इलाज सब आसान हो जाएगा।” ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से मांग की है कि चुरिया घाट पर जल्द से जल्द पीपा पुल या स्थायी पुल का निर्माण कराया जाए। साथ ही नाव संचालन के लिए सुरक्षा मानकों को सख्ती से लागू किया जाए। दियारा क्षेत्र के लोगों का कहना है कि सुरक्षित पुल कोई सुविधा नहीं, बल्कि उनके जीवन, आजीविका और भविष्य की बुनियादी जरूरत है।
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