संतकबीर नगर। मानपुर गांव का नेहालूपुरवा शुक्रवार को उस वक्त ठहर-सा गया, जब 22 साल पहले गुम हो चुका जुबेर अहमद अचानक लेन के मुहाने पर दिखाई दिया। 2003 में लखपति बनने का सपना लेकर घर से निकला जुबेर असम की पहाड़ियों में माओवादी कैंपों में बंधक की तरह जी रहा था। एक माह पहले वह किसी तरह माओवादियों के चंगुल से निकल भागा और शुक्रवार सुबह महुली कस्बे में ऑटो से उतरते ही अपने ही बचपन की गंध को पहचानने लगा। कस्बे में घूमती नज़रें जैसे समय को टटोल रही थीं। तभी एक स्थानीय ऑटो चालक ने उसे पहचान लिया—“तुम… जुबेर?”—और यह पहचान घर तक पहुँच गई। परिवार ने दरवाज़ा खोला तो सामने 22 साल के अंधेरे से लौटा बेटा खड़ा था। घर में जैसे हवा तक भरभरा उठी। लखपति बनने की चाह, और अंधेरी सुरंग की शुरुआत जुबेर ने बताया कि 2003 में दो लोगों ने उसे बड़े काम और अमीरी के सपने दिखाए। वे उसे बस्ती ले गए, फिर एक व्यक्ति से मिलवाया जिसने भरोसा दिलाया कि “जीवन बदल जाएगा।” इसके बाद सफर शुरू हुआ—पहले राजस्थान। छह वर्षों तक अलग-अलग जगहों पर उसे काम कराया जाता रहा। हर बार यही कहा गया कि वेतन बढ़ रहा है, घर जाने पर दे दिया जाएगा। इतना ही नहीं, साथियों ने साफ चेतावनी दी थी—घर जाने की बात की, तो ज़िंदा नहीं बचेगा। नेपाल में ट्रेनिंग, 300–400 लोग, और बढ़ता डर राजस्थान से उसे नेपाल ले जाया गया, जहाँ सात–आठ साल तक वह एक कैम्प में रहा। यहां 300–400 लोग रहते थे। हथियारबंदी, पहाड़ी जीवन और गुप्त गतिवधियों का प्रशिक्षण दिया जाता था। हर वक्त बताया जाता था—“तुम्हारा वेतन बढ़ रहा है।” लेकिन वेतन की कोई झलक न कभी दिखी, न उसके बारे में पूछने का साहस रहा। असम की पहाड़ियां: माओवादियों की निगरानी में जीवन नेपाल के बाद उसे असम के जंगलों में बने माओवादी कैंप में भेज दिया गया। यहां उसकी तबीयत बिगड़ गई और उसे फालिज ने जकड़ लिया। कैम्प में मौजूद चिकित्सक उसका इलाज करते थे, लेकिन ज़िंदगी अब किसी और के कब्जे में थी। इसी दौरान एक महिला से उसके आत्मीय संबंध बने। उसने पहली बार अपने मन की बात कही—“मुझे घर वापस जाना है।” महिला ने उसे चेताया—“यह बात किसी से कही, तो तुम्हारी हत्या कर देंगे।” फिर भी वही महिला उसकी उम्मीद बन गई। महिला ने दिलाई आज़ादी, गुवाहाटी से गोरखपुर और फिर घर लगभग एक माह पहले जब जुबेर शारीरिक रूप से थोड़ा ठीक हुआ, तो उस महिला ने जान जोखिम में डालकर उसे गुपचुप तरीके से गुवाहाटी पहुँचा दिया। वहां से उसने ट्रेन पकड़ी और गोरखपुर होते हुए अपने गांव पहुँचा। जुबेर ने बताया कि वह पूरे देश में माओवादियों के साथ कई राज्यों की यात्राएं भी कर चुका है। उसकी हर गतिविधि कई स्तरों पर निगरानी में रहती थी। घर लौटते समय भी उसकी आंखों में उसी भय की परछाईं साफ दिख रही थी—जैसे पहाड़ों की किसी घाटी से अभी भी कोई छाया उसका पीछा कर रही हो। गांव में उसकी वापसी से खुशी तो है, लेकिन उसकी कहानी ने लोगों को स्तब्ध कर दिया है। पुलिस और स्थानीय प्रशासन अब उससे पूरे प्रकरण की जानकारी एकत्र कर रहा है।
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