ताजमहल के इतिहास पर बनी फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ इन दिनों चर्चा में है। मेरठ के रहने वाले तुषार अमरीश गोयल इस फिल्म के लेखक-निर्देशक हैं। तुषार अमरीश का कहना है कि यह फिल्म किसी एजेंडे पर नहीं बनी है। ऐतिहासिक तथ्यों, दस्तावेजों और गहन रिसर्च पर आधारित एक कोर्टरूम ड्रामा है। तुषार गोयल ने कहा- द ताज स्टोरी की कहना की शुरुआत ताजमहल को लेकर दायर एक याचिका और उससे जुड़ी खबर पढ़ने के बाद हुई। उस याचिका में दावा किया गया था कि ताजमहल मूल रूप से राजा मानसिंह का महल था। इसे बाद में राजा जय सिंह को सौंपा गया। इसके बाद शाहजहां ने इसे अपनी पत्नी मुमताज की कब्र के लिए खरीदा। इसी दावे को पढ़कर सोचा कि इस पर गहराई से रिसर्च की जाए। तुषार ने बताया कि रिसर्च के दौरान उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट, बादशाहनामा सहित कई ऐतिहासिक पुस्तकों और दस्तावेजों को पढ़ा। इस दौरान उन्हें पता चला कि शाहजहां ने एक पहले से मौजूद इमारत को खरीदा और उसमें बदलाव और रिनोवेशन कराया। निर्देशक तुषार ने कहना है की फिल्म में इन्हीं ऐतिहासिक संदर्भों को आधार बनाकर सवाल उठाए गए हैं। निर्देशक तुषार अमरीश गोयल ने दैनिक भास्कर से इस फिल्म को लेकर खास बातचीत की। चलिए पढ़ते हैं… सवाल: कोर्टरूम ड्रामा के रूप में क्यों पेश किया? जवाब: तुषार गोयल ने कहा- विषय बहस योग्य था, इसलिए इसे कोर्टरूम ड्रामा के रूप में पेश किया गया। फिल्म का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा अदालत में घटित होता है। दर्शकों की रुचि बनाए रखने के लिए संवादों में हल्का ह्यूमर भी शामिल किया गया है। सवाल: परेश रावल को क्यों चुना गया? जवाब: तुषार गोयल ने कहा- कोर्टरूम ड्रामा में परेश रावल का अनुभव और थिएटर बैकग्राउंड इस किरदार के लिए बिल्कुल फिट हैं। स्क्रिप्ट सुनने के बाद परेश रावल ने साफ कहा था कि फिल्म में किसी भी तरह का हिंदू-मुस्लिम एंगल नहीं होना चाहिए। करीब छह महीने तक स्क्रिप्ट और रिसर्च की गहन जांच के बाद ही उन्होंने फिल्म को मंजूरी दी। सवाल: फिल्म में कहानी क्या है? जवाब: तुषार गोयल ने बताया कि फिल्म में ताजमहल से जुड़े कई कई दावों पर तथ्यात्मक सवाल उठाए गए हैं। ताजमहल के 22 साल में बनने और 20 हजार मजदूरों के हाथ काटे जाने की बातें ऐतिहासिक रूप से सही नहीं हैं। इसे फिल्म में दिखाया गया है। एएसआई के मुताबिक, ताजमहल 17 साल में बना, जबकि बादशाहनामा में इसके 10 साल में बनने का उल्लेख है। तुषार ने बताया कि 1632 के आसपास पड़े भीषण अकाल में लाखों लोगों की मौत हुई थी, जिसे आमतौर पर इतिहास में नजरअंदाज कर दिया जाता है। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि ताजमहल की वास्तुकला में आज भी कई भारतीय और हिंदू प्रतीक मौजूद हैं। तुषार गोयल ने कहा- फिल्म में शाहजहां को ताजमहल का निर्माता नहीं, बल्कि उसका रिनोवेशन कराने वाला शासक दिखाया गया है, जिसने मीनारें और कैलिग्राफी जोड़ीं। पहली फीचर फिल्म, OTT से भी उम्मीद ‘द ताज स्टोरी’ तुषार अमरीश गोयल की पहली फीचर फिल्म है। इससे पहले वे डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्में बना चुके हैं। उन्होंने बताया कि थिएटर में फिल्म को अच्छा रिस्पॉन्स मिला है और उन्हें पूरा भरोसा है कि OTT प्लेटफॉर्म पर भी दर्शक इसे उतना ही पसंद करेंगे। आगे वे छिपे हुए इतिहास और देशभक्ति, खासकर आर्मी आधारित विषयों पर फिल्में बनाने की योजना रखते हैं। 31 अक्टूबर को फिल रिलीज हुई ताजमहल की कहानी पर आधारित फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ 31 अक्तूबर को थिएटर्स में रिलीज हुई थी। फिल्म ‘द ताज स्टोरी’ को तुषार अमरीश गोयल ने लिखा और निर्देशित किया। इस फिल्म को सुरेश झा ने प्रोड्यूस किया। फिल्म में जाकिर हुसैन, अमृता खान, स्नेहा बाग, नमित दास, लतिका कराज, अखिलेंद्र मिश्रा और विजेंद्र काला जैसे कलाकार भी अहम भूमिकाओं में हैं। फिल्म रिलीज होने के बाद से विवादों में रही। ————————– ये खबर भी पढ़ें अखिलेश ऑस्ट्रेलियाई भेड़ के बालों से बना कोट पहनेंगे:जोधपुरी स्टाइल में सिला जा रहा, कपड़ा ऐसा कि पसीने की बदबू नहीं आएगी सपा प्रमुख अखिलेश यादव ऑस्ट्रेलियाई भेड़ों के बालों से तैयार मेरिनो वूल से बना कोट पहनेंगे। मेरठ में कोट की सिलाई शुरू हो चुकी है। जोधपुरी स्टाइल का खास कोट तैयार किया जा रहा है। जिला पंचायत सदस्य सम्राट मलिक और विद्यार्थी खादी भंडार के मालिक वैभव शर्मा इसे तैयार करा रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर…
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