काशी में मठ और मंदिरों पर टैक्स लगाए जाने को लेकर संत समाज में भारी आक्रोश देखने को मिल रहा है। काशी के संतों ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश में वर्तमान में जो कार्य हो रहे हैं, वे कभी मुगल शासक औरंगजेब ने भी नहीं किए। यह बयान संतों ने वाराणसी नगर निगम द्वारा मठों और मंदिरों पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में दिया है। नगर निगम की ओर से टैक्स जमा न करने पर कई मठों को नोटिस जारी किए गए हैं, जिसमें 15 दिनों के भीतर टैक्स न जमा करने पर कुर्की की चेतावनी दी गई है। संतों ने की बैठक नगर निगम की इस कार्रवाई से काशी के संतों में हड़कंप मच गया। इसके विरोध में वाराणसी के पातालपुरी मठ में संतों की एक अहम बैठक आयोजित की गई, जिसमें नगर निगम के फैसले का कड़ा विरोध किया गया। बैठक के बाद संतों ने देशभर के मठों और मंदिरों को पत्र लिखकर एकजुट होने का आह्वान किया है। संतों ने साफ चेतावनी दी है कि यदि मठों और मंदिरों को टैक्स से पूरी तरह मुक्त नहीं किया गया, तो वे आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर होंगे। 15 दिन के भीतर टैक्स जमा करने का आदेश दिया पातालपुरी मठ के जगतगुरु बालक देवाचार्य ने बताया कि नगर निगम द्वारा गृहकर, जलकर और सीवर कर को लेकर नोटिस जारी किए गए हैं। नोटिस में स्पष्ट रूप से 15 दिन के भीतर टैक्स जमा न करने पर कुर्की की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि जब इस विषय पर नगर निगम अधिकारियों से बातचीत की गई, तो पातालपुरी मठ का गृहकर माफ करने की बात कही गई, लेकिन अन्य मठों को भी इसी तरह के नोटिस भेजे गए हैं। उन्होंने इसे धार्मिक स्थलों के साथ अन्याय बताया। औरंगजेब शासन जैसा हाल हो गया है जगतगुरु बालक देवाचार्य ने कहा कि धार्मिक स्थलों पर टैक्स लगाने का इतिहास में उदाहरण नहीं मिलता। औरंगजेब जैसे शासक ने भी मठों और मंदिरों पर टैक्स नहीं लगाया, लेकिन आज काशी जैसी पवित्र नगरी में ऐसा किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि देशभर के करीब 20 हजार मठों और मंदिरों को “राम नाम की पाती” भेजी जा रही है, ताकि सभी संत एकजुट होकर इस निर्णय का विरोध कर सकें। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिन मठों और मंदिरों की जमीन पर व्यावसायिक गतिविधियां संचालित हो रही हैं, वहां टैक्स लगाया जाना उचित है, लेकिन जिन धार्मिक स्थलों की कोई आय नहीं है, उन्हें टैक्स से मुक्त किया जाना चाहिए। जलकर और सीवरकर नियम के तहत – नगर निगम नगर निगम के जनसंपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि नियमानुसार मठों को डिमांड नोटिस जारी किए गए थे। संतों के निवेदन पर नवंबर महीने में प्राप्त आवेदन के बाद जांच करवाई गई, जिसके आधार पर मठों का गृहकर माफ कर दिया गया है। हालांकि, जलकर और सीवर कर नियमों के तहत देय हैं, इसलिए उन्हें जमा करने का संशोधित बिल जारी किया गया है। संतों का कहना है कि मठों और मंदिरों के पास आय का कोई स्थायी साधन नहीं होता, ऐसे में जलकर और सीवर कर भी देना उनके लिए संभव नहीं है। फिलहाल इस मुद्दे पर संतों और प्रशासन के बीच बातचीत जारी है, लेकिन यदि समाधान नहीं निकला तो देशभर के संत आंदोलन और आमरण अनशन का रास्ता अपनाने को तैयार हैं।
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