सोनभद्र में सोमवार को संयुक्त वाम दलों ने मनरेगा योजना को बचाने के लिए कलेक्ट्रेट परिसर स्थित गांधी प्रतिमा के सामने विरोध प्रदर्शन किया। इसमें भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के कार्यकर्ता शामिल थे। प्रदर्शन के दौरान वामपंथी नेताओं ने कहा कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) तत्कालीन यूपीए सरकार ने वाम दलों की पहल पर ग्रामीण मजदूरों के हित में पारित किया था। यह योजना करोड़ों खेत मजदूरों को काम की गारंटी देती थी। नेताओं ने आरोप लगाया कि मौजूदा केंद्र सरकार मनरेगा को ‘विकसित भारत – रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ बिल से बदलकर इसे खत्म कर रही है। उन्होंने बताया कि मनरेगा एक्ट में 90 प्रतिशत बजट केंद्र सरकार और 10 प्रतिशत राज्य सरकारें देती थीं। इसके विपरीत, ‘विकसित भारत – रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ एक्ट में केंद्र सरकार को 60 प्रतिशत और राज्य सरकारों को 40 प्रतिशत बजट का प्रावधान करना होगा। नेताओं ने चेतावनी दी कि इससे मजदूरों की आजीविका प्रभावित होगी। प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि ‘विकसित भारत – रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ बिल को तत्काल वापस लिया जाए। उन्होंने मनरेगा जैसी ऐतिहासिक योजना को जारी रखने और इसमें केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा पुरानी बजट व्यवस्था को बनाए रखने की अपील की। एक साथ किया प्रदर्शन अन्य मांगों में खेत एवं ग्रामीण मजदूरों को वर्ष में 200 दिन काम, 600 रुपए प्रतिदिन न्यूनतम गारंटीशुदा मजदूरी, 55 वर्ष की आयु पूरी होने पर 10,000 रुपए प्रति माह पेंशन और उनकी सामाजिक सुरक्षा की गारंटी सुनिश्चित करना शामिल था। उन्होंने महात्मा गांधी के नाम पर बने मनरेगा एक्ट को समाप्त कर लाए जा रहे ‘विकसित भारत – रोजगार एवं आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ बिल पर रोक लगाने की भी मांग की। प्रदर्शनकारियों ने भाजपा सरकार पर ‘हिंदू राष्ट्र’ बनाने की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग भी उठाई। उपरोक्त मांगों को लेकर राष्ट्रपति के नामित मांग पत्र एडीएम को सौंपा गया।
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