विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान सोमवार को विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ‘राजा भइया’ ने वंदे मातरम् को लेकर आयोजित विशेष चर्चा में भाग लिया। संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कहा कि वंदे मातरम् किसी दल, धर्म या मजहब का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र की आत्मा और स्वतंत्रता संग्राम की चेतना का प्रतीक है। राजा भइया ने कहा कि वंदे मातरम् जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय पर किसी भी प्रकार की संकीर्ण राजनीति स्वीकार नहीं की जा सकती। उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की अनुमति देकर सदन की गरिमा को और ऊंचा किया गया है। यह विषय पक्ष और विपक्ष से ऊपर उठकर पूरे सदन की साझा भावना का प्रतिनिधित्व करता है। वंदे मातरम् पर टिप्पणी शहीदों के बलिदान का अपमान उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् पर हास-परिहास या हल्की टिप्पणी देश के इतिहास और शहीदों के बलिदान का अपमान है। स्वतंत्रता आंदोलन का उल्लेख करते हुए राजा भइया ने कहा कि अनगिनत क्रांतिकारियों ने वंदे मातरम् का उद्घोष करते हुए फांसी के फंदे को चूमकर अपने प्राण न्योछावर किए। राजा भइया ने स्पष्ट किया कि वंदे मातरम् किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है, बल्कि यह मातृभूमि के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। भारतीय संस्कृति में धरती को मां के रूप में पूजने की परंपरा रही है और वंदे मातरम् उसी सांस्कृतिक भावना का प्रतीक है। सर्वसम्मति से वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में किसी को बलपूर्वक वंदे मातरम् गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। हालांकि, सार्वजनिक जीवन में सक्रिय लोगों और जनप्रतिनिधियों की यह जिम्मेदारी अवश्य है कि वे राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत के सम्मान को लेकर समाज में सकारात्मक और स्पष्ट संदेश दें। राजा भइया ने सवाल उठाया कि जब संविधान सभा ने सर्वसम्मति से वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया था, तो आज इस पर विवाद खड़ा करने का उद्देश्य क्या है। ऐसे सवालों के उत्तर विधानसभा से निकलकर पूरे प्रदेश और देश तक जाने चाहिए। उन्होंने अपील की कि वंदे मातरम् को चुनावी या सांप्रदायिक बहस का विषय न बनाया जाए, बल्कि इसे शहीदों की स्मृति, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रतीक के रूप में देखा जाए।
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