13 अक्टूबर, 2024, बहराइच में रामनवमी के जुलूस को लेकर विवाद हुआ। उपद्रव भड़का और मामला हिंदू-मुस्लिम हो गया। रामगोपाल मिश्रा की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हत्या के अगले दिन पूरे इलाके में दंगा भड़क गया। जमकर हिंसा और आगजनी हुई। जैसे-तैसे स्थिति को कंट्रोल किया गया। घटना के 14 महीने बाद बहराइच सेशन कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट ने गोली मारने वाले को फांसी और बाकी 9 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले पर रामगोपाल की पत्नी रोली मिश्रा ने संतुष्टि जताई। पूर्व सपा विधायक केके ओझा ने सवाल उठाए। कहा- जिन 9 लोगों को उम्रकैद हुई है, उनमें कई निर्दोष हैं। उन्होंने मौजूदा भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह को आरोपी बताया। वहीं, सुरेश्वर सिंह ने कहा- उनको जनता जवाब दे रही है। फैसला आने के बाद दैनिक भास्कर की टीम ने रामगोपाल की पत्नी से बात की। पति के नहीं रहने के बाद उनके जीवन में आए बदलाव और ससुराल के जीवन को जाना। नौकरी के वादों पर बात की। वह जो कुछ बताती हैं, हैरान करता है। फैसले से संतुष्ट, छूट मिली तो सुसाइड कर लूंगी
रामगोपाल मिश्रा और रोली ने 20 जुलाई, 2024 को बहराइच में ही कोर्ट मैरिज की थी। दोनों एक दूसरे को पिछले 2 साल से जानते थे। उनके घरवाले पहले तो शादी को तैयार नहीं हुए, लेकिन बाद में दोनों की जिद के आगे झुक गए और शादी के लिए तैयार हो गए। रामगोपाल के पिता कैलाश नाथ ने बेटे को 10 हजार रुपए दिए। कहा कि जाओ शादी करके रोली को घर लाओ। शादी हो गई, रोली घर चली आई। 13 अक्टूबर को रामगोपाल की हत्या हुई। इस तरह से 85 दिन में ही रोली विधवा हो गईं। रोली कहती हैं- हमने न्याय के लिए संघर्ष किया। पुलिस ने भी हमारा साथ दिया। लेकिन, अब कुछ लोगों को यह फैसला हजम नहीं हो रहा। वो उन लोगों को निर्दोष बता रहे हैं, अगर वो निर्दोष हैं तो क्या मेरा पति ही दोषी था? अगर कभी इन लोगों को छूट मिली तो मैं जी नहीं पाऊंगी। सुसाइड कर लूंगी। पूर्व विधायक ने कहा था कि सभी दोषी नहीं
असल में कोर्ट ने 11 दिसंबर को जब आरोपियों को सजा सुनाई, तब महसी के ही सपा के पूर्व विधायक कृष्ण कुमार ओझा ने उम्रकैद की सजा पाए लोगों को निर्दोष बता दिया। हमने केके ओझा से बात की। ओझा कहते हैं- इस मामले में तो मौजूदा भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह और उनके बेटे आरोपी हैं। रामगोपाल की लाश तो पोस्टमॉर्टम के बाद घर पहुंच गई थी। उसका तो वहीं अंतिम संस्कार करना चाहिए था। फिर कैसे वह अगली सुबह महाराजगंज कस्बे में लाई गई और दंगा हुआ। ये सब मौजूदा विधायक के चलते हुआ। उनके खिलाफ तो कोई केस ही नहीं लिखा गया। इन आरोपों को लेकर हमने मौजूदा विधायक सुरेश्वर सिंह से बात की। सुरेश्वर कहते हैं- जहां तक केके ओझा की बात है, तो उन्हें यहां की जनता सोशल मीडिया पर जवाब दे रही। आलोचना कर रही है। बाकी 3 बार जनता हरा चुकी है, चौथी बार भी स्थिति नहीं बदलेगी। फैसला ठीक, लेकिन जीवन दुखों से भर गया
रामगोपाल की पत्नी रोली फैसले पर संतुष्ट हैं। लेकिन, जीवन में अकेलेपन को लेकर बेहद दुखी भी हैं। रोली जो कुछ बताती हैं, वो बहुत हैरान करता है। कहती हैं- रामगोपाल पहले तो शादी नहीं करना चाहते थे। लेकिन, जब मैं मिली तो उन्होंने साफ कह दिया कि शादी करूंगा तो सिर्फ रोली से ही। हमारी शादी जब हुई थी, तो सब खुश थे। हम रामगोपाल के घर पर ही रहते थे। उस वक्त हमारे जीवन में किसी भी तरह की कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन जैसे ही उनकी मौत हुई, सब बदल गया। रोली कहती हैं- पति की मौत के 1 महीने तक चारों तरफ उथल-पुथल ही चली, लेकिन इसके बाद चीजें बदलने लगी। लोग मुझसे बात करने से बचते। जिस कमरे में रामगोपाल की यादें थीं, हम उसी में सिमट गए। उसी में रहने लगे। मुझे यह सुनने को मिलने लगा कि आते ही रामगोपाल को खा गई। कई बार तो घर में ही यह बात सामने आई। मैं मानती हूं कि हो सकता है मेरी गलती हो, लेकिन आप ये भी तो देखिए, हमारी तो पूरी दुनिया ही समाप्त हो गई। हमारा तो सब कुछ रामगोपाल ही थे। गांव में घर बनवाया, नौकरी नानपारा में मिली
रामगोपाल की मौत के बाद परिवार की सीएम योगी से मुलाकात हुई थी। परिवार को 10 लाख रुपए की आर्थिक मदद मिली थी। 5 लाख माता-पिता को मिलना था और बाकी के 5 लाख रोली को। इसके अलावा रोली को एक पीएम आवास योजना के तहत मकान मिला। रोली कहती हैं- हमने तय किया था कि हम रामगोपाल के ही घर पर रहेंगे। इसीलिए हमने यहीं घर बनवाने का फैसला किया। सारा पैसा घर बनवाने में लगा दिया। रोली को पहले गड़वा के कस्तूरबा गांधी स्कूल में नौकरी मिलने की बात कही गई, लेकिन वहां नहीं हो सका। इसके बाद नानपारा की चीनी मील में संविदा पर नौकरी मिली। रोली को हर महीने साढ़े 8 हजार रुपए सैलरी मिलती है। रोली कहती हैं- हमारा मन गांव में घर बनवाने का नहीं था। लेकिन, मेरे मन में यह भी था कि अगर यहां नहीं बनेगा तो फिर लोग क्या कहेंगे? बन जाएगा तो लोग गर्व से कह पाएंगे कि ये रामगोपाल का घर है। हमारा सारा पैसा घर में खर्च हो गया, घर पूरा नहीं हो सका
रोली कहती हैं- हमने अपने ससुर से कहा कि राम गोपाल का स्मारक जैसा कुछ बनवा लेते हैं। सरकार से भी हमने बात की थी। तब उन्होंने कहा था कि आप बनवा सकती हैं। हमने ससुर से पैसा मांगा था, लेकिन उन्होंने नहीं दिया। उनका भी बेटा है, लेकिन वह नहीं बनवाना चाहते। हो सकता है कि उन्हें कुछ लोग ऐसा न करने के लिए भड़का रहे हों। हिंदू संगठनों ने 1 करोड़ रुपए तक दिए, लेकिन मुझे नहीं मिले
जिस वक्त रामगोपाल की मौत हुई थी, उस वक्त यूपी की राजनीति में यह बड़ा मुद्दा बना था। हिंदूवादी दल बहराइच पहुंचे थे और परिवार को आर्थिक मदद की थी। रोली कहती हैं- उस वक्त परिवार को 90 लाख से 1 करोड़ रुपए मिला था, लेकिन हमें उसमें कुछ भी नहीं मिला। हमने पूछा कि यह कैसे पता चला? वह कहती हैं- कई नेता मेरा नंबर लेकर गए थे, बाद में उन्होंने फोन किया और मदद की बात बताई। हमने कभी कुछ नहीं कहा, क्योंकि हमें लगा कि यहां भी तो सब अपने ही लोग हैं। रोली परिवार को लेकर कहती हैं- पति की मौत के एक महीने बाद ही हमारे साथ भेदभाव शुरू हो गया। लेकिन, हमने कभी किसी से नहीं कहा। मेरे ससुर जी अपने बड़े बेटे और बहू के लिए ही सब कुछ कर रहे हैं, उन्हीं के साथ हैं। खेत वगैरह भी उन्हीं को दिया है। मैं अकेले हूं। इस वक्त नानपारा में ही रहती हूं। सच यही है कि रामगोपाल की मौत के बाद मेरी पूरी दुनिया उजड़ गई। रोली कहती हैं- जिन्होंने मेरे पति को मुझसे छीना है, उन्हें सजा मिली। मैं कोर्ट को धन्यवाद देती हूं। अगर वह आगे जाते हैं तो हम भी कोर्ट में जाएंगे। हमारी पूरी कोशिश रहेगी कि कोई भी दोषी बचने नहीं पाए। 14 महीने के अंदर आया फैसला
13 अक्टूबर को बहराइच के महराजगंज इलाके में अब्दुल हमीद के घर की छत पर राम गोपाल की हत्या हुई थी। गोली अब्दुल हमीद के बेटे सरफराज ने मारी थी। कुल 13 आरोपी बनाए गए थे। बहराइच के अपर सत्र न्यायाधीश पवन कुमार शर्मा ने सरफराज को फांसी की सजा सुनाई। सरफराज के पिता अब्दुल हमीद, सरफराज के भाई तालिब और फहीम समेत 9 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई। अफजल, शकील और खुर्शीद को बरी कर दिया। यह पूरा फैसला 13 महीने 28 दिन में सुनाया गया है। दोषसिद्धि और सजा के फैसले के बाद दोषी को अपील दायर करने का अधिकार होता है। अपील 30-90 दिनों के भीतर की जा सकती है, जिसमें सजा को कम या रद्द करने की मांग की जा सकती है। अगर फांसी की सजा हो तो पुष्टि आवश्यक है। पीड़ित पक्ष फांसी की मांग कर सकता है, अगर आजीवन कारावास मिला हो। ———————- ये खबर भी पढ़े… मथुरा हादसा- अचानक बस में धमाके हुए, शीशा तोड़कर कूदे, युवती बोली- फायर ब्रिगेड टाइम पर आती तो जानें बच जातीं मथुरा में यमुना एक्सप्रेस-वे पर कोहरे के चलते 8 बसें और 3 कारें भिड़ गईं। टक्कर होते ही गाड़ियों में आग लग गई। अब तक 13 की मौत हो चुकी है, 66 घायल हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, टक्कर होते ही बम जैसा धमाका हुआ। बसों में लोग चीखते रहे। कई शीशा तोड़कर खिड़की से कूदे। पढ़िए पूरी खबर…
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