लखनऊ विश्वविद्यालय 105 साल का हो गया है। यहां से पढ़कर निकले स्टूडेंट्स ने देश-दुनिया में परचम लहराया है। विज्ञान कला, साहित्य, राजनीति, सामाजिक और प्रशासन सहित लगभग हर क्षेत्र में इस विश्वविद्यालय के मेधावियों की चमक रही है। यहां से निकली प्रतिभाएं धरती की सीमा लांघकर अंतरिक्ष अभियानों तक पहुंच गईं। विधायक, सांसद से लेकर राज्यपाल और राष्ट्रपति तक देने वाला ये विश्वविद्यालय आज अपनी विरासत पर नाज करता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के 105वें स्थापना दिवस पर पेश है दैनिक भास्कर की स्पेशल रिपोर्ट… पहले लखनऊ विश्वविद्यालय का इतिहास जानिए… इस तरह रखी गई थी बुनियाद साल 1864 में कैनिंग कालेज से लखनऊ विश्वविद्यालय का सफर शुरू होता है। टैगोर पुस्तकालय के अभिलेख बताते हैं कि 10 अगस्त 1862 को अवध के ताल्लुकेदारों ने बैठक कर लार्ड कैनिंग की याद में एक शिक्षण संस्थान बनाने का प्रस्ताव पास किया। एक मई 1864 को इसकी शुरुआत हुसैनाबाद कोठी में अनौपचारिक रूप से स्कूल के रूप में हुआ। कुछ वर्षों बाद यह अमीनाबाद पहुंचा। फिर ऐतिहासिक लाल बारादरी इलाका-ए-फरह बख्श, परीखाना कैसरबाग और उसके बाद बादशाहबाग परिसर में चला गया। 1892 में काल्विन कालेज बना। 25 नवंबर 1920 को कैनिंग कालेज को लखनऊ विश्वविद्यालय के रूप में पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। ये देश के चुनिंदा सबसे पुराने 10 उच्च शिक्षा संस्थानों में शामिल है। इन गुरुओं ने दिलाई वैश्विक पहचान देश के पहले राजनीति शास्त्र विभाग की शुरुआत 1922 में लखनऊ विश्वविद्यालय में ही हुई थी। ब्रिटिश काल में मिले इस अवसर का श्रेय प्रो. वीएस राम को जाता है। अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में कई महान शिक्षकों की भूमिका रही है, जिनमें अर्थशास्त्र एवं समाज शास्त्र विभाग के पहले अध्यक्ष प्रो. राधाकमल मुखर्जी, प्रो. डीपी मुकर्जी, वनस्पति विज्ञान के दिग्गज प्रो. बीरबल साहनी, केआर कानूनगो, प्रो. डीएन मजूमदार, भौतिक विज्ञानी प्रो. वली मोहम्मद, दर्शनशास्त्र के प्रो. काली प्रसाद का नाम प्रमुख है। अब पढ़िए प्रोफेसरों ने जो कहा… 25 साल पुराना है नाता लखनऊ विश्वविद्यालय के गणित विभाग के प्रोफेसर विनीत वर्मा कहते हैं कि जब मैं हाईस्कूल में पढ़ाई करता था, तो कई बार दोस्तों के साथ इस बिल्डिंग के सामने कुछ देर आकर रुक जाता था। तब बड़े गौर से विश्वविद्यालय की इमारत को देखता था और तब सोचता था कि क्या कभी हमें भी इस यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौका मिलेगा? आज खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि लखनऊ विश्वविद्यालय में मुझे पढ़ने का भी मौका मिला और फिर आगे चलकर इसी में पढ़ाने का भी मौका मिला। अब तक करीब 25 साल से ज्यादा का समय इस यूनिवर्सिटी को दे चुका हूं। आगे के जीवनकाल में भी इससे अटूट नाता रहेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मिलता है सम्मान लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के उपाध्यक्ष अरशद अली जाफरी कहते हैं कि लखनऊ यूनिवर्सिटी की खूबियों को शब्दों में गिनाया नहीं जा सकता है। यहां के सभी डिपार्टमेंट ने एक से बढ़कर दिग्गजों को दिया है। शायर, लीडर्स, साइंटिस्ट हर क्षेत्र में यहां से पढ़कर निकलने वाले स्टूडेंट्स ने फतेह हासिल की है। मौलाना अली मियां, शायर कैफी आजमी जैसे दिग्गज भी यही से पढ़कर निकले। देश में ही नहीं देश से बाहर जब कभी विदेश में भी जाना होता है, तो लखनऊ विश्वविद्यालय की वजह से खूब तवज्जो मिलती है। ये दर्शाता है कि लखनऊ विश्वविद्यालय की पहचान सिर्फ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है। अब पढ़िए स्टूडेंट्स ने जो कहा… अदब और तहजीब की मिसाल है अपना विश्वविद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर ओमिषा द्विवेदी कहती हैं कि दुनियाभर में लखनऊ की पहचान अदब और तहजीब के शहर के रूप में होती है। लखनऊ विश्वविद्यालय इसका सबसे बड़ी मिसाल है। यहां पर पढ़ाई के दौरान हर पल इसकी खूबी को महसूस किया है। मैंने इसी यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया इसके बाद JNU से पीजी किया। लखनऊ विश्वविद्यालय के माहौल ने इस कदर प्रभावित किया कि अब जब रिसर्च करना है, तो एक बार फिर दिल्ली से वापस आकर लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। लखनऊ विश्वविद्यालय की खूबियों को जानिए… NAAC A++ ग्रेडिंग पाने वाला पहला राज्य विश्वविद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय NEP-2020 लागू करने वाला पहला विश्वविद्यालय बना और NAAC A++ ग्रेड भी हासिल किया। UGC की ओर से राज्य विश्वविद्यालय में ग्रेड वन का दर्जा भी इसे मिला है। 2024-25 की NIRF रैंकिंग में विश्व में 98 रैंक, क्यूएस साउथ एशिया यूनिवर्सिटी में 244 रैंक से लेकर कई अच्छी रैंकिंग भी मिली। विदेशी छात्र-छात्राओं का रुझान बढ़ा, जिसकी वजह से इस बार विभिन्न देशों के 2355 छात्र-छात्राओं के आवेदन आए। कार्यवाहक महिला कुलपति की अगुआई में होगा स्थापना दिवस कार्यक्रम लखनऊ विश्वविद्यालय के पहले कुलपति राय बहादुर प्रो. जीएन चक्रवर्ती थे। अब तक 42 कुलपतियों में सिर्फ दो महिला कुलपति हैं। इनमें 1998-99 में कुलपति प्रो. रूपरेखा वर्मा तो वर्तमान में कार्यवाहक कुलपति प्रो. मनुका खन्ना हैं। 105वें स्थापना दिवस समारोह उन्हीं की अगुआई में होगा। स्वर्णिम रहा 105 साल का सफर कुलपति प्रोफेसर मनुका खन्ना ने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय की परंपरा और गौरव को आगे बढ़ाने में हर पीढ़ी की भूमिका अहम है। 105 साल का सफर जितना उज्ज्वल रहा है, आगे का सफर और भी बेहतरीन होगा। लखनऊ विश्वविद्यालय हर मायने में बेमिसाल है और इसकी यही उपलब्धि इसे खास और नायब बनाती है।
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