लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में चौथा टी.एन धर स्मारक व्याख्यान आयोजित किया गया। यह व्याख्यान हिमालयीय पर्यावरण पुनर्वास और जन क्रियाशीलता समिति (SHERPA) द्वारा विभाग के सहयोग से हुआ हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रख्यात पर्यावरण समाजशास्त्री प्रोफेसर सुधा वासन ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में प्रोफेसर वासन का अभिनंदन प्रख्यात कथक नृत्यांगना और भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति मिस कुमकुम धर ने किया। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में SHERPA के अध्यक्ष और लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जी. पटनाइक (आईएएस सेवानिवृत्त) ने संबोधित किया। उन्होंने बताया कि SHERPA की स्थापना हिमालयी पारिस्थितिकी और मानव-पर्यावरण संबंधों की गहरी समझ विकसित करने के उद्देश्य से की गई है। पटनाइक ने हिमालय से निकलने वाली नदियों को जीवनरेखा बताया, लेकिन चिंता व्यक्त की कि एन्थ्रोपोसीन युग में वनों की अंधाधुंध कटाई और मानव हस्तक्षेप ने इस क्षेत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। पर्यावरणीय मुद्दों पर जानकारी साझा की अपने मुख्य व्याख्यान में प्रोफेसर सुधा वासन ने ‘हिमालयों की गति: स्थायी पर्वतीय विकास के लिए एक चयापचयी दृष्टिकोण’ विषय पर चर्चा की। उन्होंने पर्यावरणीय मुद्दों को समझने के लिए ‘क्षेत्र’ की अवधारणा को नए सिरे से परिभाषित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनके अनुसार, क्षेत्र केवल एक प्रशासनिक इकाई नहीं है, बल्कि एक जटिल सामाजिक-पर्यावरणीय संरचना है जो विभिन्न नेटवर्कों और प्रवाहों से आकार लेती है। हिमालयी क्षेत्र में समाजशास्त्रीय बदलाव आया प्रोफेसर वासन ने लखनऊ स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी के संस्थापक प्रोफेसर राधा कमल मुखर्जी की सामाजिक पर्यावरणवाद की अवधारणा का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि हाल के वर्षों में हिमालयी क्षेत्र में महत्वपूर्ण समाजशास्त्रीय बदलाव आए हैं। कृषि का विविधीकरण, आकांक्षात्मक प्रवासन, बहु-स्थानिक परिवार, पर्यटन, शहरीकरण और पूंजी-प्रधान आधारभूत संरचनाओं ने लोगों, संसाधनों और संस्कृति की गतिशीलता को बढ़ाया है। इस व्याख्यान में 200 से अधिक शोधार्थी, परास्नातक छात्र और विभाग के संकाय सदस्य उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल समन्वयन प्रोफेसर सुकेत चौधरी ने किया। इस अवसर पर समाजशास्त्र विभाग की पूर्व प्रमुख प्रोफेसर प्रतिभा रंजू साहू और वर्तमान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रमोद कुमार गुप्ता ने भी अपने विचार साझा किए।
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