गोमतीनगर स्थित अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान के सभागार में पारंपरिक लोकनाट्य ‘धनुष भंग – रामलीला’ का मंचन किया।यह नाट्य मंचन सवेरा फाउंडेशन की ओर से आयोजित किया गया। इस प्रस्तुति ने दर्शकों को त्रेता युग की जीवंत झलक दिखाई और सभागार भक्तिमय वातावरण से भर गया। रामलीला का आरंभ मारीच के दरबार से हुआ, जिसमें राक्षसी हठ और अहंकार का चित्रण किया गया। इसके बाद विश्वामित्र के आश्रम में राक्षसों द्वारा मचाए जा रहे उपद्रव और यज्ञ भंग के दृश्यों ने दर्शकों को कथा से जोड़ा। विश्वामित्र का अयोध्या आगमन और राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को साथ ले जाने का प्रसंग भावनात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया। राक्षसों का वध के दृश्य प्रभावशाली ढंग से दिखाया राम और लक्ष्मण द्वारा राक्षसों का वध कर आश्रम की रक्षा के दृश्य लोकधुनों और ताल-वाद्यों के साथ प्रभावशाली ढंग से दिखाए गए। कथा जब मिथिला पहुँची, तो मंच का रंग बदल गया। सीता स्वयंवर का दृश्य भव्य था, जिसमें राजाओं की भीड़, धनुष की विशालता और राजा जनक की चिंता को सजीव रूप से दर्शाया गया। जैसे ही भगवान राम ने धनुष उठाया और उसके भंग होने की ध्वनि गूंजी, पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यह क्षण मंचन का शिखर बन गया। धनुष भंग के बाद परशुराम के क्रोध और लक्ष्मण के तीखे संवादों को श्रीराम की शांतिपूर्ण वाणी के साथ प्रस्तुत किया गया, जिसने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। इस मंचन में ग्रामीण लोक परंपरा की सादगी दिखी पूरी रामलीला में ग्रामीण लोक परंपरा की सादगी स्पष्ट रूप से झलक रही थी। छोटे-छोटे हास्य दृश्य, सरल संवाद और लोकसंगीत ने प्रस्तुति को जीवंत बनाए रखा। राम की भूमिका में अक्षत ऋषि, लक्ष्मण के रूप में ओमकार पुष्कर और सीता के किरदार में रिमझिम वर्मा ने अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया।रावण, परशुराम और विश्वामित्र की भूमिकाओं को भी खूब सराहा गया। निर्देशन, संवाद और संगीत के सधे हुए संयोजन ने इस ‘धनुष भंग – रामलीला’ को एक यादगार प्रस्तुति बना दिया।
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