लखनऊ में रविवार को संस्कृति मंच का दसवां राज्य सम्मेलन नेहरू युवा केंद्र में सम्पन्न हुआ। दो दिवसीय इस सम्मेलन में प्रदेश के विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों ने वर्तमान सत्ता उसकी नीतियों , आर्थिक और राजनितिक हालात पर चर्चा किया। कार्यक्रम में प्रतिरोध की संस्कृति को मज़बूत करने का संकल्प लिया गया। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को परांजय गुहा ठाकुरता और शम्सुल इस्लाम ने संबोधित किया। अतिथियों और प्रतिनिधियों का स्वागत प्रो. रूपरेखा वर्मा ने किया, जबकि अध्यक्षीय वक्तव्य प्रो. अवधेश प्रधान ने प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि आज धर्म के नाम पर संकीर्णता फैलाई जा रही है। धर्म का मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि समाज में माहौल खराब किया जाए। यह बेहद करना है की कुछ लोग अपनी धार्मिक विचारधारा को दूसरे पर थोप कर माहौल खराब करना चाहते हैं। उन्होंने ज्ञान और विचार की स्वतंत्रता पर बढ़ते खतरे को लोकतंत्र के लिए गंभीर चुनौती बताया। परांजय गुहा ठाकुरता ने कहा कि भारत में फासीवाद का एक नया स्वरूप उभर रहा है। जहां क्रोनी पूंजीवाद अपने चरम पर है। उन्होंने सरकारी संसाधनों के निजीकरण, अभिव्यक्ति पर कॉरपोरेट नियंत्रण और नागरिकों की निगरानी पर चिंता जताई। शम्सुल इस्लाम ने कहा कि आज जिन मुद्दों पर चर्चा हो रही है, उनके लिए ऐतिहासिक संदर्भ को समझना आवश्यक है और यह भी देखना चाहिए कि किस तरह सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा दिया गया। प्रो. रूपरेखा वर्मा ने कहा कि लोकतंत्र आज खतरे में है । उससे लड़ने के लिए केवल गोष्ठियां और सेमिनार पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि सड़क पर उतरकर संघर्ष करने की जरूरत है। उन्होंने धर्म के नाम पर किए जा रहे विभाजन को समाज के लिए घातक बताया। सम्मेलन में इप्टा, जलेस और प्रलेस सहित कई संगठनों ने जसम के साथ मिलकर साझा संघर्ष का भरोसा दिलाया।
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