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लखनऊ एनआईए कोर्ट का फैसला:आतंकी मॉड्यूल को हथियार सप्लाई करने वाले दो आरोपी दोषी; NIA ने की थी जांच

लखनऊ में सक्रिय अल-कायदा से जुड़े आतंकी मॉड्यूल को अवैध हथियार उपलब्ध कराने के एक अहम मामले में विशेष एनआईए कोर्ट लखनऊ ने बड़ा फैसला सुनाया है। शुक्रवार को कोर्ट ने आर्म्स एक्ट के तहत दोषी करार दिए गए दो आरोपियों को दो-दो साल की सजा और कुल 10 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इन आरोपियों ने आतंकी साजिश के लिए हथियारों की आपूर्ति की थी। हथियार सप्लाई करने वालों को सजा विशेष लोक अभियोजन अधिकारी बृजेश यादव ने बताया कि एनआईए कोर्ट, लखनऊ ने अभियुक्त मोहम्मद मुस्तकीम और शकील को दोषसिद्ध मानते हुए यह सजा सुनाई है। दोनों पर आरोप था कि उन्होंने आतंकी गतिविधियों में शामिल मुख्य आरोपियों को अवैध पिस्टल और कारतूस उपलब्ध कराए थे। कोर्ट ने दोनों को आर्म्स एक्ट की धारा 25(18)(ए) के तहत दोषी ठहराया है। जेल में बिताई अवधि को माना गया सजा कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोनों दोषियों द्वारा जेल में पहले से बिताई गई अवधि को सजा की अवधि में समायोजित किया जाएगा। इसके साथ ही प्रत्येक आरोपी पर 5-5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना अदा न करने की स्थिति में अतिरिक्त कारावास भी भुगतना होगा। 2021 की आतंकी साजिश से जुड़ा है मामला यह मामला वर्ष 2021 में सामने आया था, जब उत्तर प्रदेश एटीएस को इनपुट मिले थे कि अल-कायदा से जुड़ा एक आतंकी मॉड्यूल लखनऊ और आसपास के इलाकों में बड़ी आतंकी घटना को अंजाम देने की तैयारी कर रहा है। जांच में सामने आया था कि 15 अगस्त 2021 से पहले भीड़भाड़ वाले और संवेदनशील स्थानों को निशाना बनाने की साजिश रची जा रही थी। एटीएस कार्रवाई के बाद एनआईए को मिली जांच एटीएस ने जुलाई 2021 में दबिश देकर मिनहाज अहमद और मुसीरुद्दीन उर्फ मुसीर को गिरफ्तार किया था, जिनके पास से पिस्टल, जिंदा कारतूस और विस्फोटक सामग्री बरामद हुई थी। पूछताछ में खुलासा हुआ कि हथियारों की व्यवस्था मोहम्मद मुस्तकीम और शकील के जरिए की गई थी। मामले के अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से जुड़े होने के चलते 28 जुलाई 2021 को जांच एनआईए को सौंप दी गई। अदालत में अपराध स्वीकार करने से मजबूत हुआ केस विचारण के दौरान दोनों दोषियों ने अदालत में अपना जुर्म स्वीकार कर लिया। उन्होंने यह भी कहा कि उनका पहले कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। कोर्ट ने इसे दंड निर्धारण में एक तथ्य के रूप में संज्ञान में लिया।


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