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राष्ट्रीय शिल्प मेले के तीसरे दिन सांस्कृतिक प्रस्तुतियां:चरकुला, तेराताली, भवई और ग़ज़लों ने मोहा दर्शकों का मन

प्रयागराज में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (NCZCC), संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित दस दिवसीय राष्ट्रीय शिल्प मेले के तीसरे दिन बुधवार को लोक कलाकारों ने अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं। इन प्रस्तुतियों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर थपट्टम, रीना शैला, पेरिया मेलम, डमी हॉर्स और कालियाट्टम जैसे विभिन्न लोकनृत्यों ने उत्सव का माहौल और जीवंत बना दिया। प्रत्येक दल की पारंपरिक वेशभूषा और उनके नृत्य का अनूठा अंदाज़ दर्शकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। मथुरा से आए कलाकारों के दल ने सिर पर बजनी शिला और 108 जलते दीपों के साथ मनमोहक चरकुला नृत्य प्रस्तुत किया। ब्रज की संस्कृति को दर्शाती इस प्रस्तुति ने दर्शकों का मन मोह लिया और पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। गंगा देवी और उनके साथी कलाकारों ने ‘पधारो म्हारे देश’ तथा ‘केसरिया बालम’ जैसे लोकप्रिय राजस्थानी गीतों पर तेराताली और भवई नृत्य प्रस्तुत किया। उनकी लय, ताल और लोक परंपरा की झलक ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। इसके अतिरिक्त, पूर्वी त्रिपाठी और उनके दल ने कृष्ण-लीला पर आधारित एक नृत्य-नाटिका भी प्रस्तुत की। सांस्कृतिक संध्या में ग़ज़ल गायक भूपेंद्र शुक्ला ने ‘आपके दिल में क्या है बता दीजिए’, ‘गुमसुम यह जहाँ है’ और ‘मैं कैसे कहूँ जानेमन’ जैसी ग़ज़लों से श्रोताओं को अंत तक बांधे रखा। लोकगायिका ज्योति सिन्हा ने ‘युगो-युगो जियो बिन दवाई’ और भोजपुरी लोकगीत ‘अइले बनवाली जी, आपन कोरिया बहरा’ तथा ‘झुलुहा लागल बा निमिया डढ़िया’ प्रस्तुत कर महफ़िल में लोक-सुगंध बिखेरी। तीसरे दिन की सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति सुधीर नारायण (इलाहाबाद हाईकोर्ट) और राकेश सिन्हा (पूर्व लेखाधिकारी, NCZCC) ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। केंद्र निदेशक सुदेश शर्मा ने मुख्य अतिथियों को स्मृति चिन्ह और अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया।


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