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रायबरेली में आशा कार्यकर्ताओं की अनिश्चितकालीन हड़ताल:सरकारी कर्मचारी का दर्जा और मानदेय बढ़ाने की मांग

रायबरेली में आशा वर्कर यूनियन एसोसिएशन ने गुरुवार को जिला कलेक्ट्रेट परिसर में अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। सैकड़ों आशा और आशा संगिनी कार्यकर्ताओं ने अपनी लंबित मांगों और सरकार की कथित वादाखिलाफी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। उन्होंने चेतावनी दी है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे काम पर वापस नहीं लौटेंगी। यूनियन ने सरकार के समक्ष 14 सूत्रीय मांग पत्र प्रस्तुत किया है। इसमें आशा कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने, न्यूनतम वेतन लागू होने तक आशा को ₹21,000 और आशा संगिनी को ₹28,000 का मानदेय देने की मांग प्रमुख है। अन्य मांगों में वर्ष 2019 से 2024 तक की सभी लंबित प्रोत्साहन राशियों का तत्काल भुगतान शामिल है। इसके अतिरिक्त, आयुष्मान और आभा आईडी बनाने के मद में बकाया ₹225.2 करोड़ का बिहार की तर्ज पर एकमुश्त भुगतान करने की भी मांग की गई है। कार्यकर्ताओं को 5G मोबाइल और इंटरनेट के साथ ₹10 लाख का स्वास्थ्य बीमा और ₹50 लाख का जीवन बीमा उपलब्ध कराने की भी मांग की गई है। जिलाध्यक्ष अंकिता मिश्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्होंने पूर्व में ज्ञापन सौंपकर स्वास्थ्य मंत्री को भी अवगत कराया था, लेकिन सरकार ने द्विपक्षीय वार्ता तक बुलाना उचित नहीं समझा। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले तीन वर्षों से लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठाने के बावजूद, मिशन निदेशालय की तानाशाही के कारण उन्हें हड़ताल के लिए विवश होना पड़ा है। मिश्रा ने आगे कहा कि “आरोग्य भारत” के सपने को साकार करने वाली आशा कार्यकर्ता आज खुद अवसाद में हैं। एक ही दिन में कई तरह के कार्यों का बोझ और जीवन निर्वाह लायक पारिश्रमिक न मिलना उनके साथ क्रूरता है। यूनियन ने यह भी आरोप लगाया कि निजी अस्पतालों में होने वाली अप्रिय घटनाओं के लिए निर्दोष आशा कार्यकर्ताओं पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। एसोसिएशन ने मांग की है कि ऐसे सभी फर्जी मुकदमे वापस लिए जाएं और जवाबदेही निजी अस्पतालों की तय की जाए।


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