प्रयागराज में प्रवीण सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित प्रवीण स्मृति नाट्योत्सव 2025 का समापन हो गया। महोत्सव के पांचवें और अंतिम दिन हिंदी साहित्य के महान कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के अमर खण्डकाव्य ‘रश्मिरथी’ का प्रभावशाली मंचन किया गया। नाट्योत्सव के अंतिम दिन प्रस्तुत ‘रश्मिरथी’ का मंचन महाभारत के पात्र कर्ण के संघर्षपूर्ण जीवन, नैतिक दृढ़ता और आत्मसम्मान पर केंद्रित था। वर्ष 1952 में प्रकाशित यह खण्डकाव्य सात सर्गों में विभाजित है, जो कर्ण के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। नाटक में कर्ण को नैतिकता, मानवीय मूल्यों और कर्म की श्रेष्ठता के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया। इस प्रस्तुति के माध्यम से दिनकर द्वारा उठाए गए सामाजिक और नैतिक प्रश्न प्रभावी ढंग से सामने आए। इसमें गुरु-शिष्य परंपरा, मातृत्व के विभिन्न रूप, धर्म-अधर्म, छल-प्रपंच और युद्ध के बीच मानवता की पहचान जैसे विषयों को दर्शाया गया। नाटक का केंद्रीय संदेश था कि मनुष्य का मूल्यांकन उसके जन्म या वंश से नहीं, बल्कि उसके कर्म और आचरण से होना चाहिए। ‘रश्मिरथी’ के माध्यम से दिनकर का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण और दलित-मुक्ति चेतना भी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत हुई। कर्ण का संघर्ष एक नई मानवता की स्थापना के प्रयास के रूप में मंच पर दिखाया गया। ओजस्वी संवाद, सशक्त अभिनय और प्रभावशाली मंच-सज्जा ने प्रस्तुति को विशिष्ट बनाया। नाटक के समापन पर दर्शकों ने खड़े होकर कलाकारों का उत्साहवर्धन किया। मुख्य भूमिका में स्पर्श मिश्रा (कर्ण) के अभिनय की विशेष सराहना हुई। निर्देशन बिजयेन्द्र कुमार टॉक ने किया, जबकि संगीत, प्रकाश और मंच परिकल्पना ने नाटक को प्रभावी बनाया। इसके साथ ही प्रवीण स्मृति नाट्योत्सव 2025 का सफल समापन हुआ।
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