‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर बुधवार को राज्यसभा में देशभक्ति की अनूठी अनुगूंज सुनाई दी। गाजीपुर की सांसद डॉ. संगीता बलवंत ने इस ऐतिहासिक अवसर पर अपने जोशीले संबोधन से सदन का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ गीत नहीं, बल्कि वह शक्ति है जिसने सामान्य मनुष्यों को भी मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने का संकल्प दिया। डॉ. बलवंत ने अपनी स्वरचित पंक्तियों— “मातृभूमि को शीश झुकाकर निस दिन वंदन हो जननी का… वंदे मातरम् के गुंजन से नित अभिनंदन हो जननी का”—से अपनी बात की शुरुआत की और बताया कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 7 नवंबर 1875 को यह गीत रचते समय भारत माता को केवल मिट्टी नहीं, बल्कि लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा के स्वरूप में देखा था। उन्होंने कहा कि यह गीत अथर्ववेद की भावना—“माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः”—से प्रेरित होकर जन्मा था। सांसद ने ‘वंदे मातरम्’ की ऐतिहासिक यात्रा का विस्तृत उल्लेख करते हुए कहा कि 1905 के बंग-भंग आंदोलन से लेकर 1946 के नौसैनिक विद्रोह तक यह गीत न सिर्फ क्रांतिकारियों का मंत्र बना रहा, बल्कि इसकी गूंज ने ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला दीं। बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु से लेकर कैलिफ़ोर्निया तक इसकी प्रतिध्वनि ने आज़ादी की लड़ाई को दिशा दी। महात्मा गांधी भी मानते थे कि इस गीत में “सबसे सुस्त रक्त को भी जगा देने की ताकत” है। डॉ. बलवंत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मन की बात का जिक्र करते हुए बताया कि 26 अक्टूबर को प्रधानमंत्री ने भी ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष की ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला था। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने 7 नवंबर से वर्षभर चलने वाले विशेष कार्यक्रम तय किए हैं, जिनके माध्यम से युवा पीढ़ी को इस गीत की भावना और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की मूल अवधारणा से जोड़ा जाएगा। अपने संबोधन के अंत में उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ हमें हमारी धरती, नदियों, खेतों, परंपराओं और संस्कृति से जोड़ता है। यही भाव हमें ‘विकसित भारत 2047’ की ओर बढ़ने की ऊर्जा देता है। नया भारत तुष्टीकरण नहीं, सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ता राष्ट्र डॉ. संगीता बलवंत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वह भारत आकार ले रहा है जिसका स्वप्न बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने देखा था—एकजुट, आत्मनिर्भर और आत्मगौरव से भरा राष्ट्र। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार सबका साथ, सबका विकास के सिद्धांत पर योजनाएँ उपनाम नहीं, बल्कि आवश्यकता देखकर बनाती है। विपक्ष पर इतिहास और पहचान को खंडित करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि आज भारत अपनी आवाज़, पहचान और गौरव को फिर से स्थापित कर रहा है।उन्होंने कहा—“हिमालय से हिंद महासागर तक आज एक ही स्वर गूंजता है… एक झंडा, एक राष्ट्र, एक आत्मा—यही नए भारत का संकल्प है।”
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