’90 हजार लगेंगे… 60-65 हजार में करा देंगे। 70 हजार की व्यवस्था करके आओ… 50% की बचत हो जाएगी… मैं इसकी गारंटी लेता हूं। अगर 1 लाख लगता होगा तो 50 हजार में हो जाएगा… खतौनी लेकर आ जाओ…बस।’ यूपी में जमीनों की रजिस्ट्री में बड़ा खेल हो रहा है। सरकारी ऑफिस के बाबू रजिस्ट्री कराने के लिए गलत तरीके से जमीन का लैंड यूज चेंज करा रहे हैं। दलाल तो इनसे भी दो कदम आगे हैं। वे तो गारंटी दे रहे हैं कि रजिस्ट्री में 50% की बचत करा देंगे। दरअसल, राजस्व विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2025 में जमीन विवाद के 11.20 लाख मामले पेंडिंग हैं। ये राजस्व कोर्ट में चल रहे हैं। इनमें फर्जी रजिस्ट्री, सीमा विवाद, लैंड यूज बदलने जैसे मामले शामिल हैं। इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि ज्यादातर मामलों की जड़ गलत रजिस्ट्री है। हाल ही में यूपी के पूर्व IG अमिताभ ठाकुर को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। 26 साल पहले उनकी पत्नी नूतन ठाकुर ने देवरिया में फर्जी डॉक्यूमेंट से औद्योगिक क्षेत्र में प्लॉट लिया और मुनाफा कमाकर बेच दिया। इन घटनाक्रमों से सवाल उठा कि क्या रजिस्ट्री ऑफिस में गलत तरीके से रजिस्ट्री कराई जा सकती है? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने महोबा, बांदा और चित्रकूट जिले के 4 रजिस्ट्री ऑफिसों में इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़िए, पूरा खुलासा… हमें सोर्स से पता चला कि बांदा जिले के अतर्रा सब-रजिस्ट्रार ऑफिस का बाबू बबलू पैसा लेकर आवासीय भूमि की रजिस्ट्री कृषि भूमि में करा देता है। इसके लिए हमने बांदा जिले के एक गांव की दो जमीन के डॉक्यूमेंट अरेंज किए। ये दोनों जमीन आबादी क्षेत्र की हैं, यानी नियमानुसार इसकी रजिस्ट्री आवासीय भूमि के रूप में ही हो सकती है। कृषि भूमि के रूप में रजिस्ट्री नहीं हो सकती। अब बाबू बबलू से संपर्क किया। उन्होंने हमें कृषि भूमि के नाम पर रजिस्ट्री का पूरा गणित और खेल बताया। रिपोर्टर: जमीन की रजिस्ट्री करना है… यह नंबर आबादी में है… यह पौने डेढ़ बीघा है? बाबू बबलू: किसी के पास और गए हो…? रिपोर्टर: हां, दलाल के पास गया था… जो लिखा करते हैं… उन्होंने कहा- अंदर बात कर लो। बाबू बबलू: कितना बता रहे थे खर्च… एकदम सही बताना? रिपोर्टर: 50 हजार रुपए के ऊपर बता रहा है। बाबू बबलू: कितना बता रहे थे एजेंट… बताओ? रिपोर्टर: 65 हजार रुपए… बोला है- इतनी व्यवस्था करके लाना… एक बीघा जमीन लिखी जाएगी 65 हजार रुपए में। बाबू बबलू: एक बीघा तो ठीक है… लेकिन इनमें 3 हिस्सेदारी है… किनकी जमीन है…? रिपोर्टर: यह तीनों लोग तैयार हैं। बाबू बबलू: इन लोगों का हिस्सा कैसे आ रहा है…? रिपोर्टर: 2 लोग एक हिस्से में हैं… और एक व्यक्ति एक हिस्से में है। बाबू बबलू: मतलब… रामगोपाल और राम रुचि यह दोनों भाई थे…? रिपोर्टर: हां, ये दोनों भाई-भाई थे… मैं आपसे इसलिए मिला हूं कि अगर कृषि योग भूमि लिख गई तो रजिस्ट्री में पैसा कम लगता है। बाबू बबलू: हां, सही है…। रिपोर्टर: इसका खर्चा कितना, क्या लगेगा…? यह आप बता दें…? बाबू बबलू: तुम किसी से सांस नहीं लोगे… मतलब किसी को बताओगे नहीं…? रिपोर्टर: किसी को कुछ नहीं बताऊंगा… मुझे अपना काम निकालना है…। बाबू बबलू: ठीक है… आओ मैं बताता हूं। बाबू बबलू: तुमको जमीन 48 हजार रुपए और 50 हजार रुपए में दिखाना है। रिपोर्टर: इस तरह पैसा तो कम लगेगा ना…? तुम कहोगे… मैं आपको पैसा दे दूंगा। बाबू बबलू: पैसा हमें नहीं… वहां (रजिस्ट्री अफसर को) देना पड़ेगा…। बाबू बबलू: वहां कितना देना पड़ेगा…? बाबू बबलू: वहां 20 से 30 हजार रुपए लग जाएंगे। अगर तुम इस एंगल (आवासीय भूमि) में लिखवाते हो तो तुमको 90 हजार रुपए लगेंगे और अगर इस एंगल (एग्रीकल्चर लैंड) में लिखवाते हो तो तुमको 65 हजार रुपए लगेंगे। रिपोर्टर: 65 हजार रुपए वाली रजिस्ट्री करवा दो… यही ठीक है… रजिस्ट्री तो दोनों में होगी ना…? नोटरी तो नहीं होना है…? बाबू बबलू: हां, रजिस्ट्री तो दोनों में होगी। रिपोर्टर: बाबूजी, 65 हजार रुपए वाली करवा दीजिए… मैं पैसे की व्यवस्था कर लूं। बाबू बबलू: 70 हजार रुपए की व्यवस्था करके आना… तुम्हारी पूरी जमीन लिखवा दी जाएगी… जब तुमको आना हो तो फोन कर देना… एक दिन पहले। हम बातचीत करके तुम्हारा सब फिट कर देंगे। रिपोर्टर: बाबूजी, कम में करवा दीजिएगा…? बाबू बबलू: कम से कम करवा दिया जाएगा… तुम्हारा कोई मामला फंसे ना… ना कोई तुम्हारे दरवाजे जाए… ऐसा नहीं है कि हमने पैसा ले लिया तुमसे और तुम्हारे दरवाजे 4 लोग पहुंचे… फिर तुम हमको कहो… फिर हम तुमको कहें… जो काम होगा सब फिट होगा। रिपोर्टर: …तो फिर बाबूजी मैं चल रहा हूं… नमस्ते…। बाबू बबलू: यह चीज किसी को बताना नहीं… अगर तुमने किसी को यह बताया और हवा उड़ी तो तुम फंसते ही चले जाओगे। रिपोर्टर: मैं किसी से चर्चा नहीं करूंगा। बाबू बबलू: फोन पर एक दिन पहले बात करना… देखो, 20 हजार से 50 हजार तक मायने रखता है। अब हमारे सामने सवाल था कि क्या रजिस्ट्री ऑफिस के बाहर मौजूद दलालों के माध्यम से भी ये काम हो रहा है? ये जानने के लिए हम बांदा के अतर्रा सब-रजिस्ट्रार ऑफिस के बाद दलाल शैलेंद्र से मिले। शैलेंद्र को हमने बताया- आबादी की जमीन का प्लॉट है, कृषि भूमि के नाम से रजिस्ट्री कराना है। उसने हमसे पूरी जानकारी लेने के बाद अगले दिन आने को बोला। दूसरे दिन हम फिर पहुंचे और शैलेंद्र से मुलाकात की। दलाल बोला– बाबू से बात करा देंगे रिपोर्टर: यह जमीन आबादी में है। शैलेंद्र: आबादी में जमीन है तो… लेकिन किसको खरीदना है? रिपोर्टर: खरीदना हमें है… हम सोचे पहले आप से बात कर लूं… क्योंकि आबादी की लिखाई आप भी जानते हैं। शैलेंद्र: आबादी की लिखाई तो जानते हैं… लेकिन यहां (रजिस्ट्री ऑफिस की ओर इशारा करते हुए) से भी तो काम होना चाहिए। हमें 10 मिनट टाइम दो… पता करवा रहे हैं। रिपोर्टर: तो बाबू से बात करवा देंगे…? दलाल: हां, बात हो जाएगी। दलाल से हुई बातचीत में यह साफ हुआ कि ये ऐसे लोग, जो आबादी की जमीन की रजिस्ट्री कृषि भूमि में कराना चाहते हैं, ये दलाल इनकी सेटिंग बाबुओं से करा देते हैं। अब हम बांदा सिटी सदर तहसील के रजिस्ट्रार ऑफिस पहुंचे, यह जानने के लिए कि अतर्रा की तरह यहां भी गलत तरीके से रजिस्ट्री होती है या नहीं? यहां मामला अलग निकला। यहां बाबू सीधे डील नहीं करते, वे दलालों के माध्यम से ही काम करते हैं। यहां जब हम दलालों से मिले तो उन्होंने काम की गारंटी दे दी। रिपोर्टर: बाबूजी नमस्ते, एक रजिस्ट्री करना है। दलाल: हो जाएगी। रिपोर्टर: ऐसे करना है कि पैसा और स्टांप कुछ कम लगे… क्योंकि जमीन आबादी में दर्ज है। दलाल: हो जाएगी… लेकिन जमीन 7 बिस्वा से ज्यादा हो। रिपोर्टर: इतने से ज्यादा है… एक बीघा होगी। दलाल: हो जाएगा तुम्हारा काम… स्टांप कम लगेंगे… सारी बचत हो जाएगी। रिपोर्टर: उतना ना हो कि जितने का स्टांप लगा है, उतना मुझे पैसा ही लग जाए। दलाल: नहीं, आबादी वाली में कौन-सा गांव है…? रिपोर्टर: बांदा के पास है… मेन रोड पर। दलाल: अगर उस नंबर में कोई बैनामा नहीं हुआ है तो तुम्हारी जमीन कृषि भूमि में लिख जाएगी… यह काम तुम्हारा हो जाएगा 50% की बचत हो जाएगी… यह गारंटी लेता हूं- अगर 1 लाख लगता होगा तो मैं तुम्हारा काम 50 हजार रुपए में करवा दूंगा। खतौनी लेकर आ जाना…बस। रिपोर्टर: आप यहां ऑफिस में बात कर लीजिए… फिर मैं आ जाऊंगा। दलाल: यह सब काम हमारा है… हम गारंटी लेकर काम करते हैं। अब हमारे सामने सवाल था कि बांदा के अलावा यूपी के अन्य जिलों में भी ऐसा ही चल रहा है या नहीं? इस सवाल के जवाब के लिए हम बांदा से 80 किमी दूर महोबा के रजिस्ट्री ऑफिस पहुंचे। यहां बाबू से बात की। रिपोर्टर: एक रजिस्ट्री करवानी है, बाबूजी वह नंबर आबादी में दर्ज है। बाबू: खसरा दिखाओ…? रिपोर्टर: खसरा नहीं है। बाबू: जमीन कहां पर है…? रिपोर्टर: विकास भवन के आगे है, आबादी से सटी। अगर उसमें कृषि योग्य भूमि करके लिख लिया जाए तो सही रहेगा। बाबू: खसरा-खतौनी दोनों लेकर आओ… देखेंगे… काहे नहीं होगा… सब हो जाएगा। महोबा के बाद हमने चित्रकूट में भी यह समझने की कोशिश की कि क्या दलालों के माध्यम से कम पैसे में आबादी में कृषि भूमि दिखाकर रजिस्ट्री हो सकती है। इसकी तस्दीक के लिए हम चित्रकूट रजिस्ट्री ऑफिस पहुंचे। जहां हमारी मुलाकात गिरिजा पटेल से हुई। रिपोर्टर: आबादी की जमीन है, कृषि भूमि करके लिखवानी है। दलाल गिरिजा पटेल: लिख जाएगी… उसके कागज मुझे दे दो? रिपोर्टर: मैं आपको सब दे चुका हूं। दलाल गिरिजा पटेल: 72,600 रुपए के स्टांप हो गए… 12,600 रुपए की रजिस्ट्रार ऑफिस में रसीद कटेगी… इस तरह 84,000 रुपए खर्च हो गया। यह कृषि योग भूमि है, खसरा कहां है? रिपोर्टर: मैं आपको दे गया था। दलाल गिरिजा पटेल: मैं कल सब से बात करके आपको बता दूंगा। रिपोर्टर: नहीं, बाबूजी कुछ मोटा-मोटी बता दीजिए। दलाल गिरिजा पटेल: 4,56,000 रुपए बन रहा है… अगर आबादी की जमीन नंबर एक में लिखते हैं। रिपोर्टर: साहब, कुछ तो कम करवाओ। दलाल गिरिजा पटेल: इसमें 2 लाख रुपए रुपए साहब लेंगे… इसीलिए मैं तुमसे कह रहा हूं कि चलकर बात तो कर लें। रिपोर्टर: कुछ तो अपना हिस्सा कम कर लीजिए। दलाल गिरिजा पटेल: मैं कम से कम ही बताया हूं। रिपोर्टर: जमीन लिखवाने के बाद कोई दिक्कत तो नहीं होगी। दलाल गिरिजा पटेल: साहब, पैसा किस बात का ले रहे हैं, जो पैसा ले रहे हैं… वह जिम्मेदारी भी लेंगे। अब समझिए, ये करते कैसे हैं? आबादी भूमि की रजिस्ट्री आबादी भूमि में ही कराना है तो पुरानी रजिस्ट्री या विरासत दस्तावेज, खसरा, खतौनी, गाटा नंबर, ग्राम पंचायत से जारी प्रमाण पत्र, भूमि का नक्शा लगाना जरूरी है। अब आबादी भूमि की रजिस्ट्री कृषि भूमि के नाम पर करने के लिए रजिस्ट्री ऑफिस के बाबू खसरा नहीं लगाते हैं, क्योंकि खसरा में यह लिखा होता है कि ये भूमि आवासीय है या कृषि। इसके बाद कृषि भूमि के नाम पर रजिस्ट्री कर देते हैं। पढ़िए इस मामले पर जिम्मेदार क्या कहते हैं… अफसर बोले– इस मामले में जांच करेंगे
चित्रकूट एडीएम उमेश चंद्र श्रीवास्तव ने बताया- अगर ऐसा मामला सामने आ रहा है तो संबंधित लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। वहीं, महोबा सदर एसडीएम शिव ध्यान पांडे ने कहा- अगर आबादी की भूमि दलाल और बाबू पैसा लेकर कुछ खेल करते हैं, मामला सामने आने पर कार्रवाई की जाएगी, स्टांप चोरी पर मुकदमा दर्ज किया जाएगा। इस मामले में हमने तीनों जिलों के जिलाधिकारी को फोन किया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। …………………. ये खबर भी पढ़ें… UP में नदी-पहाड़ को खेत बताकर किसानों का बीमा हड़पा:अफसरों का कारनामा, 2.5 लाख फर्जी किसान खड़े किए यूपी में सरकारी कर्मचारी और बीमा कंपनी के अफसर-एजेंट्स ने 37 करोड़ रुपए का फसल बीमा डकार लिया। ये इतने शातिर निकले कि बीमे का पैसा खाने के लिए जंगल, पहाड़, नदियों और नालों की जमीनों को कागजों पर खेत बता दिया। इतना ही नहीं, गलत डॉक्यूमेंट लगाकर ढाई लाख फर्जी किसान खड़े कर दिए। एमपी, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के लोगों को यूपी का किसान बता दिया। बीमा प्रीमियम खुद अपनी जेब से भरते रहे, जिससे किसी को शक न हो। इन्होंने ये साजिश कैसे रची? दैनिक भास्कर की टीम ने इसका इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़िए पूरी खबर…
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