बिहार में झटका खाने के बाद कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश को लेकर अपनी रणनीति नए सिरे से बुननी शुरू कर दी है। बुधवार को नई दिल्ली में 10 जनपथ पर सोनिया गांधी के आवास पर यूपी कांग्रेस की एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में यूपी के प्रभारी अविनाश पांडे सहित प्रदेश के सभी 6 सांसद मौजूद रहे। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में रायबरेली सांसद एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी मौजूद रहें। साथ में उनकी बहन एवं सांसद प्रियंका गांधी भी मौजूद रहीं। कांग्रेस ने इस बैठक में एक अहम निर्णय लिया है कि वह यूपी में पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी। इससे पहले यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय राय अकेले सभी 11 एमएलसी चुनाव भी लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। पंचायत चुनाव और एमएलसी की 11 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर कांग्रेस क्या संदेश देना चाहती है? आखिर 2027 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस गठबंधन से क्यों परहेज कर रही है? कांग्रेस की रणनीति क्या है? पढ़ें ये स्टोरी… यूपी में कांग्रेस–सपा इंडिया गठबंधन के अहम साझेदार हैं। दोनों पार्टियों ने मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। सपा 2019 की तुलना में अपनी सीटों की संख्या 7 गुना बढ़ाकर 37 पर पहुंची तो कांग्रेस की सीटें भी छह गुना बढ़ गईं। मतलब दोनाें पार्टियों को गठबंधन से जबरदस्त फायदा हुआ। गठबंधन में सपा 62 तो कांग्रेस 17 सीटों पर लड़ी थी। सपा 37 सीटें जीती, कांग्रेस को छह पर जीत मिली। कांग्रेस की सफलता की दर 35.29 और सपा की 57.17% रही। मतलब सपा की सफलता दर कांग्रेस की तुलना में ज्यादा थी। यूपी में इसी गठबंधन का कमाल था कि भाजपा खुद के बलबूते बहुमत नहीं जुटा पाई। इसकी टीस आज भी भाजपा काे सालती है। 2027 का विधानसभा चुनाव साथ लड़ने का ऐलान कर चुके हैं दोनों दल लोकसभा में मिली सफलता के बाद से यूपी में सपा–कांग्रेस गठबंधन मजबूत बना हुआ है। गाहे–बगाहे कुछ बयानों को छोड़ दें तो दोनों पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में इस पर सहमति साफ दिखती है। वे सार्वजनिक मंचों से भी गठबंधन में ही चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं। लेकिन बिहार चुनाव परिणाम के बाद से गठबंधन में सीटों को लेकर पेंच फंसता दिख रहा है। बिहार में 61 सीटों पर लड़कर कांग्रेस सिर्फ 6 जीत पाई थी। अब यूपी में सपा कांग्रेस के इसी कमजोर प्रदर्शन के चलते 50 से 60 सीटों से ज्यादा देना नहीं चाहते हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में भी सपा ने 340 सीटों पर चुनाव लड़ा था। 63 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ी थी। तब उसके गठबंधन में रालोद, सुभासपा जैसी पार्टियां थी, जो अब एनडीए का हिस्सा बन चुकी हैं। ऐसे में यही सीट सपा कांग्रेस को देना चाहती है। विधानसभा चुनाव में अधिक सीटों की सौदेबाजी की है रणनीति वरिष्ठ पत्रकार सैयद कासिम, इसका जवाब देते हुए कहते हैं कि कांग्रेस की रणनीति विधानसभा चुनाव 2027 से पहले अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ाना है। वैसे भी पंचायत चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़े जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस इसमें दमदार प्रदर्शन करने की कोशिश करेगी। इसी तरह एमएलसी चुनाव में सपा कभी शानदार प्रदर्शन नहीं कर पाती है। इस चुनाव का पूरा खेल वोटर लिस्ट का होता है। इसमें भाजपा और दूसरे निर्दलीय लोग माहिर हैं। कभी कांग्रेस का भी दबदबा रहता था। सपा की तुलना में आज भी कांग्रेस प्रयागराज, गोरखपुर, कानपुर, बनारस, गाजियाबाद, मेरठ में शिक्षक और स्नातक एमएलसी चुनाव में अच्छा कर सकती है। सपा कभी भी पढ़े–लिखे लोगों की पार्टी नहीं बन पाई। पढ़े–लिखे वोटरों ने कांग्रेस को हटाया तो भाजपा को पसंद किया। कांग्रेस को लगता है कि वो भाजपा को चुनौती दे सकती है। दूसरा वो एमएलसी और पंचायत चुनाव जीत कर विधानसभा चुनाव से पहले अपनी ताकत दिखाना चाहती है। तभी वह बारगेनिंग करने की हैसियत में होगी। 2029 लोकसभा चुनाव से पहले वैसे भी कांग्रेस के लिए कुछ भी यूपी में दांव जैसा नहीं लगा है। सपा के लिए 2027 का विधानसभा चुनाव महत्वपूर्ण है और वह गठबंधन सहयोगियों को कम से कम सीट देना चाहती है। कांग्रेस को यूपी उप चुनाव में झटका लग चुका है। तब उसे न तो मनचाही सीटें मिलीं और न ही उचित भागीदारी मिली। वह पश्चिम की मीरापुर और पूर्व की प्रयागराज या मऊ वाली सीट चाहती थी। पर सपा उसे गाजियाबाद और अलीगढ़ की खैर सीट दे रही थी। आखिर में कांग्रेस ने उप चुनाव लड़ने से मना कर दिया। सपा को उप चुनाव में इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। यहां तक कि प्रतिष्ठा वाली मिल्कीपुर भी वह हार गई। संगठन सृजन अभियान चलाकर बूथ मजबूत करने में जुटी है कांग्रेस कांग्रेस संगठन सृजन 100 दिन का अभियान चलाकर बूथ स्तर तक की तैयारी में जुटी है। वहीं जनहित के मुद्दों पर हर जिले में संगठन के लोग मुखर होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कांग्रेस ने अब पंचायत चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर दी है। इसके लिए उसने टारगेट भी तय किया है। पार्टी की ओर से कहा गया है कि संगठन सृजन अभियान में जो कार्यकर्ता अधिक से अधिक सदस्य बनाएगा, उसे पार्टी पंचायत चुनाव में मौका देगी। पंचायत चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वालों के लिए विधानसभा चुनाव का भी मार्ग प्रशस्त रहेगा। मतलब पंचायत चुनाव जीतने वाले कई लोगों को विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी भी बना सकती है। यही कारण है कि बड़ी संख्या में लोग खासकर युवा पार्टी से जुड़ रहे हैं। कांग्रेस अलग–अलग प्रकोष्ठों के माध्यम से भी अपना जनाधार बढ़ाने में जुटी है। कांग्रेस ने प्रदेश की 403 विधानसभा को तीन कटेगरी में बांटा कांग्रेस पहले ही प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों को तीन कैटेगरी में बांट कर तैयारी में जुटी है। ए श्रेणी में 200 सीटों को रखा है, जहां कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक मजबूत रहा है। इसमें ऐसी सीटें हैं, जहां पिछले तीन विधानसभा और तीन लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था। वहां कांग्रेस खास फोकस कर रही है। बी श्रेणी में 50 सीटें चिह्नित की हैं, जो पार्टी थोड़े प्रयास और बेहतर संगठन की बदौलत जीत सकती है। जबकि सी श्रेणी में 153 सीटें ऐसी हैं, जहां पार्टी बेहद कमजोर है। वहां गठबंधन और सामाजिक समीकरण व नए चेहरे को आगे रखकर कांग्रेस तैयारी कर रही है। हालांकि गठबंधन के लिए सपा से होने वाली बातचीत में पार्टी का फोकस ए श्रेणी वाली सीटों पर रहेगा। जहां पार्टी के लिए जीत की संभावना बेहतर होगी। यूपी विधानसभा से पहले राजनीतिक ताकत दिखाने की मंशा वरिष्ठ पत्रकार रतन मणि लाल कहते हैं कि कांग्रेस का लक्ष्य 2027 नहीं 2029 है। अभी कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है कि उसका यूपी में अपना कोई जनाधार ही नहीं बचा है। यही कारण है कि पार्टी अपना संगठन मजबूत करने में जुटी है। कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के बयान से दो बातें स्पष्ट हैं कि 2027 का चुनाव वे साथ लड़ेंगे। उनका गठबंधन केवल विधानसभा के लिए है। उससे पहले पार्टी को मजबूत करने के लिए वो सब कुछ करेंगे। पंचायत और एमएलसी चुनाव अकेले लड़ने की उनकी घोषणा को अभी शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जाना चाहिए। जैसा कि भाजपा के सहयोगी दल भी इसी तरह का बयान दे चुके हैं। उनका ये कहना कि हमारा गठबंधन लोकसभा और विधानसभा के लिए है, ऐसा कह कर वो सपा को संकेत देना चाहते हैं कि पार्टी पूरी तरह से उनके सामने नतमस्तक नहीं है। खुद का आकलन करने के लिए कांग्रेस पंचायत चुनाव और एमएलसी चुनाव में अकेले लड़ना चाहती है। दोनों पार्टियां लंबे समय तक गठबंधन चलाना चाहती हैं, तो कांग्रेस और सपा दोनों एक–दूसरे को नाराज नहीं करना चाहेंगी। ऐसे में एमएलसी चुनाव में कुछ सीटों पर उनका समझौता हाे सकता है। बिहार चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाली कांग्रेस अब यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले पंचायत चुनाव के जरिए अपनी राजनीतिक ताकत दिखाना चाहती है। कांग्रेस को अपने नेता राहुल गांधी को मजबूत दिखाने के लिए चुनावी प्रदर्शन दिखाना ही होगा। इसके बाद ही वह सपा से विधानसभा में सीटों पर बारगेनिंग करने की हैसियत में होगी। खबर अपडेट हो रही है…
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