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यूपी में बच्चों-युवाओं को लगी रुतबे की बीमारी:इंस्टाग्राम स्टेटस लगाने पर मारी गोली, Gen-Z में खतरनाक ट्रेंड बढ़ा

गोरखपुर में 11वीं के स्टूडेंट सुधीर भारती का मर्डर कर दिया गया। सुधीर ने 26 दिसंबर को इंस्टाग्राम पर लिखा- ‘अपने जीजा के दम पर कूदते हो। घर में घुसकर मारेंगे। दम है तो मुकाबला करो।’ इंस्टाग्राम स्टेटस की लड़ाई इस कदर बढ़ी कि गांव के ही 4 लड़कों ने कोऑपरेटिव इंटर कॉलेज के कैंपस में घुसकर सुधीर को गोली मार दी। हालांकि, ये पहला मामला नहीं है। आजकल के युवाओं (जेन-जी) में यह ट्रेंड चल निकला है। ऐसे में सवाल है कि ऐसा क्यों? कौन इसके लिए जिम्मेदार है? क्या सोशल मीडिया जिम्मेदार है या फिर बदलता जमाना? छोटी-छोटी बातों पर हत्या, क्या यह नई क्राइम ट्रेंड लाइन है? इन सारे सवालों के जवाब इस रिपोर्ट में पढ़िए… पहले गोरखपुर वाला मामला समझिए 25 नवंबर, 2025 को मेरठ में राजू की गर्लफ्रेंड पर उसके दोस्त हनी ने कमेंट कर दिया। इस बात से हनी इतना नाराज हो गया कि राजू की हत्या कर दी। उसने राजू को बुलाया और उसे ईंट से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। इसको हादसा दिखाने की कोशिश भी की गई, लेकिन पुलिस की जांच के बाद पूरा सच सामने आ गया। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर कार्रवाई शुरू कर दी है। इस मामले में आरोपी हनी ने बताया कि राजू ने डेढ़ साल पहले उसकी गर्लफ्रेंड पर कमेंट किया था। इस वजह से उसने फैसला कर लिया था कि वो बदला लेगा। इतने खतरनाक क्यों हो रहे Gen-Z
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं- सोशल मीडिया उतना ही यूज करना चाहिए, जितनी जरूरत है। जब वो व्यक्ति के ऊपर हावी होने लगे, तो उससे दूरी बनाएं। दरअसल, आजकल एक शब्द है फोमो फियर ऑफ मिसिंग आउट यानी कुछ छूट जाने का डर। जब लगता है कि दूसरे लोग कुछ मजेदार, रोमांचक या जरूरी चीज कर रहे हैं और आप उससे बाहर रह गए हैं। ये डर युवाओं को दीमक की तरह खा रहा है। उन्हें डर है कि वो पिछड़ रहे हैं। फॉलोअर्स और सब्सक्राइबर को लेकर लड़ाई होती है। युवाओं को लगता है कि अगर मैंने जवाब नहीं दिया तो लोग मुझे कमजोर समझेंगे। अगर ऑनलाइन मेरी इज्जत गई, तो जमीन पर भी मैं कुछ नहीं। इसलिए आजकल के युवा इग्नोर नहीं करते, रिपोर्ट नहीं करते, बल्कि बदले की भावना रखते हैं। आज का युवा मरने से नहीं डरता, क्रिमिनल बनने से नहीं डरता। भविष्य की नहीं सोचता कि लोग क्या कहेंगे। सोचना ये है कि कहीं मैं कमजोर न लग जाऊं, कहीं मेरा रुतबा ना घट जाए। यही सोच युवाओं को हिंसक और आक्रामक बना रही है। क्या सोशल मीडिया युवाओं को हिंसक बना रहा?
गोरखपुर के जिला अस्पताल के साइकैट्रिस्ट डॉ. अमित शाही के अनुसार, सोशल मैच्योरिटी में स्पष्ट रूप से गिरावट आई है। आज के युवाओं की दुनिया काफी हद तक वर्चुअल हो चुकी है। पहले समाज में होने वाले अन्याय, संघर्ष और अनुभवों से व्यक्ति को यथार्थ की समझ मिलती थी। वही सीख का आधार बनती थी। लेकिन, आज की डिजिटल दुनिया में मार्गदर्शन करने वाले लोग कम होते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर लाइक, कमेंट या स्टेटस भले ही वास्तविक रूप से कुछ न बिगाड़े, लेकिन इससे बच्चों और युवाओं में सहनशीलता विकसित नहीं हो पा रही। छोटी-छोटी बातों पर क्रोध, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता बढ़ रही है। ऐसे में वे भूल जाते हैं कि उनके स्वयं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्या सही है। गुस्से और कुंठा की स्थिति में वे अक्सर होश खो बैठते हैं। बिना सोचे-समझे नए-नए, कई बार गलत प्रयोग करने लगते हैं। इसलिए आज के युवाओं के लिए सबसे जरूरी है कि वे केवल आभासी प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि वास्तविक ज्ञान, धैर्य और विवेक को बढ़ाने पर ध्यान दें। यही उन्हें संतुलित और स्वस्थ जीवन की ओर ले जा सकता है। क्या कहता है मेडिकल साइंस?
गोरखपुर के जिला अस्पताल के साइकैट्रिस्ट डॉ. अमित शाही के अनुसार, दिमाग में भावनाओं का नियंत्रण विभिन्न न्यूरोट्रांस मीटरों के आपसी तालमेल और संतुलित क्रिया से होता है। इनमें मुख्य रूप से सीरोटोनिन, डोपामीन, एपिनेफ्रिन और नॉरएपिनेफ्रिन शामिल होते हैं। जब इन रसायनों का संतुलन बना रहता है, तो व्यक्ति की भावनाएं नियंत्रित और स्थिर रहती हैं। लेकिन अगर किसी कारण से इनका स्तर कम या अधिक हो जाए, तो मनोदशा में बदलाव, चिड़चिड़ापन, बेचैनी, उदासी या अत्यधिक उत्तेजना जैसे भाव उत्पन्न होने लगते हैं। सोशल मीडिया पर किस तरह की हिंसा दिख रही?
युवा, खासकर टीनएजर्स, इंस्टाग्राम और एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर ज्यादा समय बिताते हैं। 2024 की एक यूके रिसर्च के मुताबिक, ज्यादातर टीनएजर्स ने अपने सोशल मीडिया फीड्स में हिंसक वीडियो देखे हैं। ये वीडियो स्कूल में होने वाली लड़ाइयों, चाकूबाजी, युद्ध की फुटेज या आतंकी हमलों तक के हो सकते हैं। ये सीन इतने रॉ और अचानक सामने आते हैं कि देखने वाले को संभलने का मौका तक नहीं मिलता। बच्चों और युवाओं पर इसका कैसा असर होता है? ऐसे वीडियो देखने का युवाओं पर गहरा असर पड़ता है। कुछ बच्चे इतना डर जाते हैं कि घर से बाहर निकलने से कतराने लगते हैं। रिसर्च बताती है कि हिंसक कंटेंट देखने से ट्रॉमा जैसे लक्षण हो सकते हैं। खासकर अगर यह हिंसा उनकी जिंदगी से जुड़ी हुई लगे। सोशल मीडिया न सिर्फ हिंसा को दिखाता है, बल्कि यह बुलिंग, गैंगवार, डेटिंग में हिंसा और यहां तक कि खुद को नुकसान पहुंचाने जैसे मामलों को भी बढ़ावा देता है। इसके अलावा, बार-बार हिंसा देखने से युवाओं में ‘डिसेंसिटाइजेशन’ हो सकता है, यानी वे दूसरों के दुख-दर्द के प्रति कम संवेदनशील हो जाते हैं। छोटी बातों पर हत्या… क्या यह नई क्राइम ट्रेंडलाइन है?
आज का युवा अक्सर अपराध को अपराध की तरह नहीं, बल्कि अपनी इज्जत, रुतबे और ऑनलाइन पहचान की रक्षा के तौर पर देखने लगा है। उसे लगता है कि अगर उसने जवाब नहीं दिया, अगर अपमान सह लिया, तो वह कमजोर समझा जाएगा। यही सोच छोटी बात को बड़ा बना देती है। बहस को हिंसा में बदल देती है। इस ट्रेंड की सबसे खतरनाक बात यह है कि इसमें डर का अभाव है। न कानून का डर, न भविष्य की चिंता। नतीजा यह कि हत्या जैसी गंभीर वारदातें अब योजनाबद्ध दुश्मनी से नहीं, बल्कि तुरंत भड़कने वाले गुस्से और अहंकार से हो रही हैं। पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है- एकदम नया ट्रेंड है। पहले हत्या प्रेम, जमीन जायदाद को लेकर होती थी। अब इंस्टा, फेसबुक और वॉट्सऐप पर स्टेटस और मैसेजेस को लेकर होती है। पुलिस को चाहिए कि वो सोशल मीडिया की पेट्रोलिंग करे और इस पर रोक लगाए। ऐसे युवाओं के लिए आगे चलकर सरकारी सेवाओं, निजी क्षेत्र की नौकरियों, ठेकों, लाइसेंसों और यहां तक कि बैंक से लोन लेना भी बेहद कठिन या असंभव हो जाता है। कई मामलों में व्यक्ति जीवनभर के लिए ब्लैकलिस्ट हो जाता है। सोशल मीडिया को लेकर देश में क्या है नियम?
मद्रास हाईकोर्ट ने 26 दिसंबर को केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत में भी 16 साल से कम उम्र वालों के लिए सोशल मीडिया पर रोक लगाई जाए। कोर्ट ने कहा कि इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने यह बात नाबालिगों को ऑनलाइन पोर्नोग्राफी कंटेंट आसानी से मिल जाने के मुद्दे पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। याचिकाकर्ता एस. विजयकुमार के वकील केपीएस पलानीवेल राजन ने ऑस्ट्रेलिया के नए कानून का हवाला दिया था। कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स (ISP) पर और सख्त नियम लागू किए जाएं। उन्हें अनिवार्य रूप से पेरेंटल विंडो सर्विस (पेरेंटल कंट्रोल) देने के लिए कहा जाए। जिससे माता-पिता अपने बच्चों की ऑनलाइन एक्टिविटी को फिल्टर और कंट्रोल कर सकें। ———————— ये खबर भी पढ़ें… गोरखपुर में इंस्टाग्राम स्टेटस के लिए छात्र की हत्या, जिसे मारने की धमकी दी, उसने ही कॉलेज में घुसकर मारी गोली गोरखपुर में 11वीं के स्टूडेंट सुधीर भारती का मर्डर इंस्टाग्राम स्टेट्स के झगड़े में हुआ। सुधीर ने 26 दिसंबर को इंस्टाग्राम पर लिखा-अपने जीजा के दम पर कूदते हो। घर में घुसकर मारेंगे। दम है तो मुकाबला करो। इसके बाद 4 लड़कों ने कोआपरेटिव इंटर कॉलेज के कैंपस में घुसकर सुधीर पर गोली चला दी। पहला निशाना चूकने के बाद 2 आरोपियों ने सुधीर का हाथ पकड़ लिए, इसके बाद उसके सीने पर 1 गोली मारी गई। पढ़िए पूरी खबर…


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