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यूपी की शादी में नहीं चाहिए विदेशी ठाट-बाट:अवधी पिट्ठी, कुल्हड़ चाय और गेंदा डेकोर से लौटी परंपरा, रंग और रिश्तों की खुशबू

उत्तर प्रदेश में शादियों का रंग बदल चुका है, क्योंकि नई पीढ़ी की पसंद बदल गई है। अब कपल्स अपने शहर, अपनी मिट्टी और अपनी संस्कृति से जुड़कर शादियां कर रहे हैं। लखनऊ से लेकर झांसी तक, कपल अब रॉयल नहीं, रियल शादी चाहते हैं। खाने में दाल-बाटी और कुल्हड़ वाली चाय का स्वाद लौट आया है। संगीत में ढोलक, सोहर और रास मंडली की गूंज सुनाई देती है। सजावट में फिर से गेंदे का फूल लौट आया है। चटक रंगों के परदे और मिट्टी के दीए माहौल को देसी बना रहे हैं। ये सिर्फ परंपरा नहीं, एक ट्रेंड है, जिसे कहते हैं ‘लोकल इज द न्यू लग्जरी।’ सीरीज के तीसरे एपिसोड में बताएंगे डेकोरेशन, खानपान और एंटरटेनमेंट के जरिए शादी में यूपी का देसी तड़का लगाने के टिप्स। अवध की पिट्ठी पूड़ी से बुंदेलखंडी ठडुला तक, पूर्वांचल के सोहर से ब्रज की रास मंडली तक वो सब कुछ, जो शादी को देगा लोकल टच… अमर आगरा के रहने वाले हैं। एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं। अपनी शादी के बारे में मुस्कुराते हुए कहते हैं, “हमने अपनी शादी में ज्यादा ताम-झाम नहीं किया। लेकिन, हर एक फंक्शन पूरे उत्साह और अपनापन के साथ पूरा किया।” काजल के साथ उनकी अरेंज मैरिज थी, पर दोनों की सोच एक थी। काजल बताती हैं, “हम चाहते थे कि हर चीज में अपने शहर आगरा की झलक हो। फोक म्यूजिक के साथ ब्रज की सादगी। वेन्यू किसी महंगे रिसॉर्ट की जगह पास के ग्राउंड में रखा गया। सजावट में फूल, कलरफुल दुपट्टे और दीयों का इस्तेमाल हुआ। केटरिंग में आगरा की बेड़ई-कचौड़ी, आलू सब्जी, जलेबी और ठंडाई थी। वही स्वाद, जो हर मेहमान को उनके बचपन में किसी शादी की याद दिला दे। अमर कहते हैं, “शादी भले सादी थी, पर एहसास रॉयल था। बिना फिजूल खर्च के, हमने अपने शहर की खुशबू को हर रस्म में शामिल किया।” अब एक्सपर्ट्स से जानिए शादी में देसी टच लाने के टिप्स थीम ही तय करती है शादी का माहौल आगरा के डेकोरेटर सौरभ सिंघल बताते हैं कि बड़े शहरों में भी शादी को देसी रंग देना काफी आसान और सस्ता है। इसकी वजह है कि डेकोर से लेकर खाने तक में इस्तेमाल होने वाला ज्यादातर सामान लोकल मार्केट में आसानी से मिल जाता है। ये घरों में इस्तेमाल होने वाला सामान ही होता है। कुछ बहुत ज्यादा ऑथेंटिक है तो आसपास के छोटे शहरों और कस्बों में मिल जाता है। आपके शहर के ही कुछ दुकानदार ऐसे होते हैं, जो ऑर्डर मिलने पर चीजें उपलब्ध करा देते हैं। लेकिन, लोगों को लगता है कि थीम डेकोरेशन कराने से खर्चा बढ़ जाएगा। असल में हर थीम को बजट के हिसाब से बेहद खूबसूरती से डिजाइन किया जा सकता है। शादी का डेकोर उतना ही महंगा या किफायती होता है, जितना आप उसे बनाना चाहें। कोई थीम 25 हजार में भी तैयार हो सकती है और चाहें तो वही सजावट लाखों रुपए तक जा सकती है। ये पूरी तरह आपकी पसंद और प्रायोरिटी पर निर्भर करता है। थीम सिर्फ सजावट नहीं होती, बल्कि शादी का माहौल तय करती है। ट्रेडिशनल म्यूजिक डालेगा महफिल में जान डेकोरेटर सौरभ सिंघल अलग-अलग थीम्स के बारे में बताते हैं कि ब्रज थीम में मंडप और गेट को पीले-हरे कलर की ड्रेपिंग (कपड़े को सजावटी अंदाज में लपेटना), फूल-मालाएं और दीपकों से सजाया जाता है। एंट्री पर झूले या मोर का डिजाइन वाला गेट बहुत सुंदर लगता है। स्टेज को ब्रज की झलक देने के लिए कदंब के पेड़, बांसुरी या मोर के बैकड्राप से सजाते हैं। ये सब आगरा, हाथरस जैसे शहरों से आसानी से किया जा सकता है। इसी तरह अवध थीम में शाही लुक के लिए गोल्डन और मरून ड्रेपिंग, झूमर, अल्पना, दीवान स्टाइल बैठने की जगह सजानी होगी। कानफोड़ू डीजे की जगह शहनाई या तबला माहौल को और रॉयल बनाएगा। ये सब सीतापुर, बाराबंकी, लखीमपुर में आसानी से हो सकता है। पूर्वांचल थीम में गेंदा, केले के पत्ते और मिट्टी के दीयों से डेकोरेशन होती है। बुंदेलखंडी थीम देसी और थोड़ी रॉ लगती है। झोपड़ी-स्टाइल मंडप, पत्थर का बैकड्रॉप, मटका, बेल-बूटे और ढोलक से माहौल बना रहेगा। ये सब उन इलाकों में बेहद कम खर्च में हो सकता है। मतलब आप अगर यूपी में कहीं भी शादी कर रहे हों, थोड़ी खोजबीन से अपने आसपास ही लोकल कलाकार और डेकोर टीम मिल जाएगी। यह आपकी शादी को अपनी मिट्टी की खुशबू से भर देगी। थीम वेडिंग महंगी नहीं, प्लानिंग से बनेगी किफायती शादी को देसी टच देने के लिए डेकोरेशन के साथ ट्रेडिशनल म्यूजिक भी जरूरी है। ढोलक, झांझ, शहनाई के साथ सोहर, कजरी जैसे फोक ही माहौल बनाते हैं। लखनऊ में शहनाई ग्रुप चलाने वाले अब्बास हैदर बताते हैं कि डीजे की जगह पारंपरिक संगीत जैसे शहनाई, कव्वाली और रास मंडली न सिर्फ ट्रेंड में है, बल्कि बजट के लिहाज से भी बेहतर है। कव्वाली ग्रुप, शहनाई ग्रुप या ब्रज रास मंडली की शुरुआत 12 हजार रुपए से हो जाती है, जबकि डीजे का चार्ज इससे दो गुना या उससे ज्यादा तक पहुंचता है। अब्बास कहते हैं कि लोकल थीम वेडिंग की प्लानिंग ठीक से की जाए तो नॉर्मल शादी से कम खर्चीली हो सकती है। बड़े इवेंट ग्रुप इसलिए महंगे होते हैं, क्योंकि उसकी टीम बड़ी होती है। कलाकार, साउंड सिस्टम, लाइटिंग, टेक्नीशियन सब शामिल होता है। वहीं, कव्वाली या ब्रज रास मंडली का आकार छोटा होता है। उपकरण सीमित होते हैं और परफॉर्मेंस करीब 2 घंटे ही होती है। ऐसे कार्यक्रम सीमित समय में ही शादी को लोकल टच और खास अंदाज दे देते हैं। हेल्दी, स्वादिष्ट और लोकल, थाली में संतुलन जरूरी शादी में सब कुछ चकाचक हो और खाना बेस्वाद हो तो सारी मेहनत पानी हो जाएगी। वहीं, विदेशी डिश की जगह देसी स्वाद का तड़का लग जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है। लिट्टी-चोखा, दाल-बाटी, केसरिया खीर या गुड़-रोटी जैसे देसी पकवान न सिर्फ स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि थाली में अपनेपन की खुशबू भी घोल देते हैं। देवीराम कैटर्स के पंकज गोयल बताते हैं कि हर इलाके का अपना स्वाद होता है और लोगों की उसके जुड़ी यादें भी होती हैं। जैसे लखनऊ के कबाब, बनारस की चाट, मथुरा-वृंदावन के पेड़े, आगरा की बेड़ई-जलेबी हर डिश की अपनी कहानी है। यही वजह है कि शादी के मेन्यू में लोकल फ्लेवर शामिल हो रहा है। विदेशी फूड की तुलना में पारंपरिक व्यंजन किफायती और पोषण से भरपूर होते हैं। ब्रज और बुंदेलखंड के आसपास दालों और मसालों की भरपूर पैदावार होती है। इससे यहां की डिशेज न सिर्फ स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि कम दाम में आसानी से तैयार हो जाती हैं। यहां शादियों में आलू की सब्जी खास पहचान रखती है। ये आमतौर पर बनने वाली आलू की साधारण सब्जी नहीं। इसमें काफी औषधीय गुण होते हैं। इस सब्जी में लाल मिर्च का इस्तेमाल नहीं होता; बल्कि काली मिर्च, जावित्री, लौंग, जायफल जैसे खड़े मसालों से इसका स्वाद निखारा जाता है। ये न सिर्फ स्वादिष्ट होती है, बल्कि पाचन के लिए भी अच्छी मानी जाती है। स्थानीय व्यंजन मेन्यू को बनाएंगे यूनीक पारंपरिक थालियों के बारे मे पंकज गोयल बताते हैं- ब्रज की पारंपरिक थाली में आलू की सब्जी, कद्दू की सब्जी, मखाने का झोल, अन्नकूट की सब्जी, पकौड़ी का रायता और कई तरह की पूड़ियां शामिल होती हैं। करीब 20-25 व्यंजन वाली ये थाली पूरी तरह देसी स्वाद से भरी होती है। मात्र 500 रुपए में एक थाली में तैयार हो जाती है। इतने आइटम की थाली अंग्रेजी या कॉन्टिनेंटल फूड से तैयार की जाए, तो एक थाली की लागत 1500 रुपए तक पहुंच जाती है। वहीं, ‘लखनऊवाला केटरिंग सर्विसेज’ के संतोष रस्तोगी बताते हैं कि शादियों में अवध के पारंपरिक व्यंजन सबसे बेस्ट ऑप्शन हैं। लखनवी थाली की बात आती है तो लोग कबाब और बिरयानी पर टिक जाते हैं, लेकिन ये महंगा होता है। अवध का वेजिटेरियन फूड भी काफी रिच है। आप शादी के मेन्यू दही बड़े, दाल बुखारा (साबुत उड़द की दाल), लच्छा नान, गुलाब जामुन (लाल मोहन), फालूदा कुल्फी जैसे आइटम जोड़ सकते हैं। ये मेन्यू को यूनीकनेस देते हैं। इसके अलावा बनारसी का पान, अयोध्या की चंद्रकला (मिठाई) और पूर्वांचल की बाटी-चोखा और लौंगलता (मिठाई) भी अच्छे ऑप्शन हैं। ये सारे व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं बल्कि हेल्दी भी हैं। इनको बनाने मे ज्यादा लागत भी नहीं आती। कुछ ट्रेडिशनल स्नैक्स चाहते हैं तो मटर चाट, उड़द दाल के बरे, चूरा-मटर, कटहल की पकौड़ी जैसे आइटम भी लोगों को खूब पसंद आते हैं। शादी में अपने शहर का स्वाद जोड़ना चाहते हैं, तो स्थानीय व्यंजन शामिल करना सबसे अच्छा तरीका है। हमारे पास ऐसी डिमांड भी आती है जो स्वाद के साथ हेल्दी और एज-वाइज ऑप्शन भी चाहते हैं। खासकर डायबिटीज वगैरह के पेशेंट बुजुर्गों का ख्याल रखते हुए। ऐसे में तंदूरी रोटी की जगह रागी, बाजरा, मक्का की रोटी रख सकते हैं। मौसम के हिसाब से फल-सब्जियों का सलाद रख सकते हैं। कल हम आपको बताएंगे मेकअप, आउटफिट और ज्वेलरी से जुड़ी टिप्स और ट्रिक्स ताकि कपल को मनचाहा और क्लासी लुक मिले… **** कॉपी एडिट- कृष्ण गोपाल ग्राफिक्स- सौरभ कुमार


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