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मौलाना मदनी बोले- वंदे मातरम् में मां दुर्गा की तारीफ:मर जाऊंगा, गाऊंगा नहीं; मुसलमान सिर्फ अल्लाह के आगे सिर झुकाता है

‘हमें किसी के ‘वंदे मातरम्’ गाने या पढ़ने पर एतराज नहीं है, लेकिन मुसलमान अल्लाह के अलावा किसी की इबादत नहीं कर सकता। हम एक खुदा (अल्लाह) को मानने वाले हैं, अल्लाह के सिवा न किसी को पूजनीय मानते हैं और न किसी के आगे सिर झुकाते हैं। हमें मर जाना मंजूर है, लेकिन शिर्क (खुदा के साथ किसी को शामिल करना) स्वीकार नहीं है। देशभक्ति का संबंध दिल की सच्चाई और अमल से है, न कि नारेबाजी से। वतन से प्रेम करना अलग बात है और उसकी पूजा करना अलग बात है। मुसलमानों को इस देश से कितनी मोहब्बत है, इसके लिए उन्हें किसी प्रमाण-पत्र की जरूरत नहीं है।’ ये बातें जमीयत उलेमा-ए-हिंद (ए) के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने मंगलवार को ‘X’ पर लिखीं। उन्होंने लिखा- हमारे खिलाफ गलतफहमियां न फैलाई जाएं। ‘वंदे मातरम्’ की कई लाइनों में दुर्गा की तारीफ की गई है। यह इस्लामी आस्था के खिलाफ है। गीत में मां, मैं तेरी पूजा करता हूं। जैसे शब्द हैं, जो सीधे तौर पर किसी देवी की आराधना दर्शाते हैं। इस कारण मुसलमान इसे गा ही नहीं सकते। मौलाना मदनी ने और क्या-क्या कहा- 1. राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल न करें राजनेता
मदनी ने कहा- सुप्रीम कोर्ट भी कहता है कि किसी को राष्ट्रगीत गाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। हमारा संविधान भी हमें यही सिखाता है। जमीयत उलमा-ए-हिंद सभी राष्ट्रीय नेताओं से अपील करती है कि वे ऐसे संवेदनशील धार्मिक और ऐतिहासिक मुद्दों को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल न करें। बल्कि, देश में आपसी सम्मान, सहिष्णुता और एकता को बढ़ावा देने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाएं। 2. ‘वंदे मातरम्’ पर बहस संविधान के दायरे में होनी चाहिए
मदनी ने कहा- ‘वंदे मातरम्’ बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंद मठ से लिया गया एक अंश है। इसकी कई पंक्तियां इस्लाम के धार्मिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं। इसलिए मुसलमान इस गीत को गाने से परहेज करते हैं। ‘वंदे मातरम्’ से जुड़ी बहस धार्मिक आस्थाओं के सम्मान और संवैधानिक अधिकारों के दायरे में होनी चाहिए, न कि राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के रूप में। 3. आर्थिक और वित्तीय हालात पर क्यों नहीं होती चर्चा?
मदनी ने कहा कि देश की आर्थिक और वित्तीय स्थिति से संबंधित जो रिपोर्टें सामने आ रही हैं, वे चिंताजनक हैं। अगर इस पर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया तो देश एक बड़े आर्थिक संकट का शिकार हो सकता है। लेकिन, दुर्भाग्य से इस पर कोई चर्चा नहीं होती, क्योंकि इस तरह की बहसों से वोट नहीं मिलते और न ही समाज को धार्मिक आधार पर बांटा जा सकता। मौलाना इसहाक गोरा ने अरशद मदनी का किया समर्थन उन्होंने कहा- मैं मौलाना अरशद मदनी की पूरी हिमायत करता हूं। वंदे मातरम् का मामला नया नहीं, बल्कि बरसों से उलमा के बीच तयशुदा फिक्ही मसला है। वंदे मातरम् का विरोध किसी भी तरह वतन-दुश्मनी नहीं है। मुसलमान हमेशा से इस मुल्क के वफादार रहे हैं और आगे भी रहेंगे। हिंदुस्तान से हमारी मोहब्बत हमारी पहचान और एहसास का हिस्सा है। मौलाना ने कहा- हम वंदे मातरम् इसलिए नहीं, पढ़ते कि हमारी बंदगी सिर्फ अल्लाह के लिए है। लेकिन मुल्क से हमारी मोहब्बत पर कोई शक नहीं किया जा सकता। हिंदुस्तान हमारी जान और हमारा फख्र है। ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने पर संसद में चर्चा
संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन सोमवार को लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ के 150 साल पूरे होने पर चर्चा की गई थी। इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने की थी। इस दौरान उन्होंने वंदे भारत के 4 खंड हटाने के लिए कांग्रेस पर निशाना साधा था। कहा- मुस्लिम लीग के डर से कांग्रेस ने वंदे मातरम् का अपमान किया। उसके टुकड़े किए। ‘वंदे मातरम्’ आजादी के समय से प्रेरणा का स्त्रोत था तो फिर उसके साथ पिछले दशक में अन्याय क्यों हुआ। बंकिम चंद्र ने 1875 में वंदे मातरम् लिखा था, आनंद मठ में प्रकाशित हुई ————————- ये भी पढ़ें – राजनाथ सिंह बोले- वंदे मातरम् का उत्सव दिखावे का नहीं:अखिलेश ने कहा- हम बच्चों को पढ़ाते हैं, तो मुकदमा होता है; संसद में हुई बहस संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर चर्चा हुई। इस दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा- ‘वंदे मातरम्’ कोई दिखावा नहीं, कोई राजनीति का भी विषय नहीं। इनके भाषण और विचार सुनते हैं, तो लगता है कि इन्होंने ही इस गीत को बनवाया है। ये राष्ट्रवादी नहीं, राष्ट्र-विवादी लोग हैं। दरारवादी लोग हैं। पढ़िए पूरी खबर…


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