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मौलाना मदनी ने अपने जमीयत उलेमा-ए-हिंद में कितने पसमांदा रखे:वसीम राईन बोले- आप राजनीतिक दलों पर आरोप लगाने से पहले अपना संगठन देखे

बहराइच में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के विवादित बयान पर ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने पलटवार किया है। बाराबंकी में उन्होंने मौलाना मदनी से कहा कि राजनीतिक दलों पर आरोप लगाने से पहले वे अपने संगठन के भीतर देखें। मौलाना मदनी ने 22 नवंबर को दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा था कि न्यूयॉर्क का मेयर ‘ममदानी’ और लंदन का मेयर ‘खान’ हो सकता है, लेकिन हिंदुस्तान का कोई मुसलमान किसी यूनिवर्सिटी का कुलपति (वीसी) नहीं बन सकता। उन्होंने यह भी जोड़ा था कि यदि कोई बनता भी है, तो उसका हाल आजम खान जैसा होगा। वसीम राईन ने मौलाना मदनी के इस बयान से सहमति जताई कि लंदन और अमेरिका में मुसलमान मेयर बन सकते हैं, लेकिन भारत में कोई मुसलमान यूनिवर्सिटी का कुलपति नहीं बन सकता। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यहां की राजनीतिक पार्टियां पसमांदा मुसलमानों को हिस्सेदारी नहीं देतीं। हालांकि, राईन ने मौलाना मदनी से सवाल किया कि जिस तरह वे दूसरे देशों की तारीफ कर रहे हैं, क्या उन्होंने खुद अपने संगठन ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ में कितने पिछड़े (ओबीसी) मुसलमानों को जगह दी है? राईन ने आगे पूछा कि देवबंद में कितने दलित पसमांदा मुसलमानों को नाजिम बनने का मौका मिला है। उन्होंने नट, धोबी और बंजारा जैसी मुस्लिम जातियों का जिक्र करते हुए मुस्लिम धर्म में समानता के दावे पर सवाल उठाया। मौलाना अरशद मदनी वर्तमान में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हैं। यह भारत के प्रमुख इस्लामिक संगठनों में से एक है, जिसकी स्थापना 1919 में हुई थी और यह देवबंदी विचारधारा से प्रभावित है। मौलाना अरशद के इस बयान पर केवल वसीम राईन ही नहीं, बल्कि अन्य नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने इसे ‘गैर-जिम्मेदाराना बयान’ बताते हुए कड़ी प्रतिक्रिया दी है। हुसैन ने कहा कि भारत का मुसलमान राष्ट्रपति, क्रिकेट-हॉकी का कप्तान और एयर चीफ मार्शल बन सकता है। उन्होंने मौलाना मदनी से अपने बयान के लिए माफी मांगने की मांग की।


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