आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत कई निजी अस्पतालों को बिना आवश्यक सुरक्षा और चिकित्सा मानकों को पूरा किए मान्यता देने का मामला सामने आया है। शिकायत में दावा किया गया है कि इन अस्पतालों में न पर्याप्त डॉक्टर उपलब्ध हैं, न जरूरी उपकरण और न ही आपातकालीन सेवाओं की समुचित व्यवस्था है। छात्र नेता शशिकांत गौतम ने इस संबंध में लिखित शिकायत दर्ज कराते हुए कार्रवाई की मांग की है। शिकायत के अनुसार, अस्पतालों में कई बुनियादी सुविधाओं का अभाव पाया गया है। जैसे एम्बुलेंस पार्किंग की व्यवस्था न होना, अग्निशमन यंत्रों का न होना या खराब होना, और हॉस्पिटल में प्रवेश–निकास के लिए केवल एक ही रास्ता होना। इसके अलावा वेंटिलेशन के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं छोड़ी गई। स्टाफ स्तर पर भी गंभीर अनियमितताएं सामने आई हैं। कई कर्मचारियों के पास आवश्यक डिप्लोमा या डिग्री नहीं है, और कुछ जगहों पर दूसरों के दस्तावेजों पर नौकरी कराने का आरोप है। वहीं, बायोमेडिकल वेस्ट प्रबंधन और ईटीपी (Effluent Treatment Plant) की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। पानी की टंकियों के मानक, और मेडिकल स्टोर के आकार में भी भारी अनियमितताएं बताई गई हैं। शिकायत में यह भी कहा गया है कि जिन अस्पतालों की आयुष्मान मान्यता पहले रद्द हो चुकी थी, उन्हें नए नाम से दोबारा पंजीकृत कर योजना का लाभ देने की तैयारी की जा रही है। उदाहरण के तौर पर, मवाना स्थित कमल हॉस्पिटल उर्फ जे.के. हॉस्पिटल का उल्लेख किया गया है। सबसे गंभीर आरोप योजना के नोडल अधिकारी एवं अपर सीएमओ डॉ. प्रवीन गौतम पर लगाए गए हैं। शिकायतकर्ता का कहना है कि डॉ. गौतम मानकों की अवहेलना कर मोटी रकम लेकर निजी अस्पतालों को मान्यता देते हैं, और आयुष्मान जांच के नाम पर वसूली भी करते हैं, जिसमें कथित रूप से ऊपर तक हिस्सा पहुंचाया जाता है। छात्र नेता शशिकांत गौतम ने मांग की है कि बिना पर्याप्त व्यवस्था वाले अस्पतालों की मान्यता पूरी तरह रोकी जाए, और इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कर कठोर कार्रवाई की जाए।
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