मेरठ नगर निगम द्वारा गृहकर–जलकर निर्धारण के लिए कराए गए जीआईएस सर्वे में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच एक साल बाद भी अधर में है। जांच ठप है, लेकिन इसके बावजूद निगम ने डोर-टू-डोर जल मूल्य की रसीदें बांट दीं। अचानक बढ़े गृहकर और जलकर के बिलों से नाराज़ लोगों का गुस्सा बुधवार को निगम परिसर में फूट पड़ा। करीब छह घंटे लोगों ने धरना देकर निगम अधिकारियों के खिलाफ नारेबाजी की। 300 से 30 हजार रुपये तक पहुंचे बिल वार्ड-60 की पार्षद रेखा सिंह बुधवार सुबह फूलबाग कॉलोनी और नेहरू नगर के नागरिकों के साथ नगर निगम पहुंचीं। उन्होंने आरोप लगाया कि निगम मनमाने तरीके से गृहकर बढ़ाकर जनता को लूट रहा है।
धरने में मौजूद 20 से अधिक लोगों ने अपने-अपने मकानों के बिल दिखाए। इनमें 300 रुपये प्रतिवर्ष गृहकर देने वालों के 30,000 रुपये तक 400 रुपये गृहकर देने वालों के 40,000 रुपये तक के बिल जारी किए गए थे। गृहकर में ही जलकर वसूली लोगों ने निगम पर दोहरी वसूली का आरोप लगाया। उनका कहना था कि गृहकर के बिल में पहले से ही जलकर शामिल है। ऐसे में जल मूल्य की अलग रसीद बांटना नियमों के खिलाफ है पार्षद पति नीरज सिंह ने बताया कि निगम ने बिना किसी आधार के फूलबाग और नेहरू नगर में जल मूल्य की रसीदें बांट दीं और कई लोगों से इसके पैसे भी जमा करा लिए। समय देने के बाद भी नहीं पहुंचे नगर आयुक्त प्रदर्शन में पहुंचे लोगों ने आरोप लगाया कि मामले की शिकायतें पहले भी की गई थीं, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। नगर आयुक्त सौरभ गंगवार ने सुबह 11 बजे मिलने का समय दिया था, लेकिन वे तय समय पर नहीं पहुंचे, जिसके बाद लोग धरने पर बैठ गए। शाम 5 बजे तक जब अधिकारी नहीं आए, तो पार्षद और स्थानीय लोग रात्रि धरना शुरू करने की तैयारी करने लगे। रात्रि धरने की तैयारी होते देख नगर आयुक्त मौके पर पहुंचे और आश्वासन दिया कि जिन भवन स्वामियों से जल मूल्य वसूला गया है, उसे गृहकर बिल में समायोजित किया जाएगा गृहकर में सुधार और आपत्तियों के निस्तारण के लिए विशेष कैंप लगाए जाएंगे
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