मिर्जापुर जिले में मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत करोड़ों रुपए के गबन का खुलासा हुआ है। एक आरटीआई कार्यकर्ता की शिकायत पर गठित विशेष जांच टीम (SIT) की रिपोर्ट में सामने आया है कि कई ऐसे मदरसे, जो केवल कागजों पर संचालित थे, उन्हें भी सरकारी धन का भुगतान किया गया। जांच में 10 करोड़ रुपए से अधिक के फर्जी भुगतान की पुष्टि हुई है। चार वर्ष पूर्व जिले में मदरसों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद कर दी गई थी। उस समय जनपद में 300 से अधिक मदरसे संचालित बताए जा रहे थे, जबकि वर्तमान में केवल 161 मदरसे ही कार्यरत हैं। मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत 89 मदरसों का चयन किया गया था, लेकिन SIT की जांच में इनकी मंजूरी और संचालन प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं पाई गईं। SIT रिपोर्ट बताती है कि कई मदरसों को फर्जी तरीके से मान्यता दी गई और बिना भौतिक सत्यापन के शिक्षकों को वेतन भुगतान किया गया। कुछ मामलों में तो मदरसे मौके पर अस्तित्व में ही नहीं थे, इसके बावजूद उन्हें सरकारी अनुदान जारी किया गया। यह पूरा मामला आरटीआई कार्यकर्ता इरशाद अली द्वारा वर्ष 2020 में की गई शिकायत के बाद सामने आया था। उनकी शिकायत के आधार पर शासन स्तर से SIT का गठन किया गया था, जिसकी विस्तृत जांच रिपोर्ट अब जारी हुई है। जांच में 3 तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी सहित 42 मदरसा संचालकों पर कार्रवाई की सिफारिश की गई है। इनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 409 (आपराधिक विश्वासघात) और 120-बी (षड्यंत्र) के तहत मुकदमा दर्ज करने की अनुशंसा की गई है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि मदरसा योजना का लाभ कुछ मामलों में गैर-मुस्लिम संचालकों को भी दिया गया। इस संबंध में जिला समाज कल्याण अधिकारी रामदत्त प्रजापति ने बताया कि यह मामला पुराना है और SIT की रिपोर्ट अभी उनके कार्यालय को प्राप्त नहीं हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन मदरसों ने फंड लिया था, उनमें से कई अब बंद हो चुके हैं। SIT रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद जिले में इस बड़े घोटाले पर प्रशासनिक कार्रवाई को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं।
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