गाजीपुर में खरीफ सीजन की बुवाई के बीच किसानों को बीज, खाद और दवाइयों से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसी को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) गाज़ीपुर एक जागरूकता अभियान चला रहा है। मृदा वैज्ञानिक डॉ. डी.के. सिंह ने किसानों को मिट्टी परीक्षण और संतुलित पोषण के महत्व पर जोर दिया, ताकि घटती उर्वरता से उत्पन्न चुनौतियों का सामना किया जा सके। डॉ. सिंह ने बताया कि देश में बढ़ती जनसंख्या और लगातार घटती मिट्टी की उर्वरा शक्ति भविष्य में खाद्यान्न उत्पादन के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। उन्होंने कहा कि खेती की लागत कम करते हुए उत्पादन बढ़ाने का सबसे प्रभावी तरीका मिट्टी का वैज्ञानिक परीक्षण और उसके आधार पर संतुलित खाद प्रबंधन करना है। डॉ. डी.के. सिंह ने किसानों को समझाया कि जिस प्रकार मनुष्य को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवण की आवश्यकता होती है, उसी तरह पौधों को भी संतुलित मात्रा में पोषक तत्व चाहिए होते हैं। उन्होंने आगाह किया कि अधिकतर किसान केवल रासायनिक खाद डालने से उत्पादन बढ़ने की धारणा रखते हैं, जो कि सही नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि खेत में किस तत्व की कमी या अधिकता है, यह जानना अनिवार्य है। इसके लिए मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, पीएच वैल्यू और ऑर्गेनिक मैटर का परीक्षण बेहद जरूरी है। डॉ. सिंह ने बताया कि यदि मिट्टी की पीएच वैल्यू असंतुलित है, तो फसल का चयन उसी हिसाब से करना होगा। वहीं, यदि ऑर्गेनिक मैटर कम पाया जाता है, तो खेत में जैविक पदार्थ बढ़ाने के लिए हरी खाद, गोबर की खाद, फसल अवशेष प्रबंधन और वर्मी कम्पोस्ट जैसे उपाय अपनाने होंगे। इन उपायों से न केवल मिट्टी की संरचना में सुधार होगा, बल्कि रासायनिक खादों पर निर्भरता भी कम होगी। इससे खेती की लागत घटेगी और उत्पादन में निरंतरता बनी रहेगी, जिससे किसानों को दीर्घकालिक लाभ मिलेगा।
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