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माफिया ने कफ सिरफ का कारोबार पूर्वांचल शिफ्ट कराया:​​​​​​​यूपी के 40 जिलों में 125 केस, 70 गिरफ्तारियां; किंगपिन पकड़ से दूर

यूपी में कोडीन युक्त कफ सिरप की अवैध तस्करी की जांच का दायरा बढ़ता जा रहा है। अब तक की जांच में सामने आया कि यह कारोबार पश्चिम से पूर्वांचल के जिलों में शिफ्ट हुआ है। माफिया की शह पर तेजी से फैला। अब तक 40 जिलों में 128 FIR दर्ज की गईं, करीब 70 गिरफ्तारियां हुईं। FSDA ने 229 लोगों को नोटिस जारी किया और 400 लाइसेंस रद्द किए। यूपी के जिलों के अलावा हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, झारखंड, त्रिपुरा, असम जैसे राज्यों में जांच शुरू हो चुकी है। इसके अलावा बांग्लादेश, नेपाल और दुबई तक फैले इस रैकेट की भी जांच हो रही है। ED की भी इंट्री हो चुकी है। STF और विभिन्न जिलों की पुलिस अपने स्तर से जांच कर रहे। खास बात है कि नशे के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इस सिरप को लेकर एक भी मामला एनडीपीएस एक्ट में नहीं दर्ज किया गया। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि अब तक STF ने क्या किया? FSDA और ED ने क्या किया? जिला पुलिस किस स्तर पर कार्रवाई कर रही? किन-किन लोगों की सीधी संलिप्तता सामने आ चुकी है? एजेंसियों को किन-किन लोगों की तलाश है? पढ़िए इन सारे सवालों के जवाब… STF ने अब तक क्या कार्रवाई की?
यूपी STF इस रैकेट की मुख्य जांच एजेंसी है। फरवरी- 2024 में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FSDA) और STF की जॉइंट जांच कमेटी बनाई गई थी। ये कमेटी लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी थाने में दर्ज पहली FIR के बाद बनी थी। FIR में धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक साजिश और सबूत नष्ट करने जैसी धाराओं का जिक्र था। यूपी STF ने जांच के दौरान बड़ी संख्या में कोडीन कफ सीरप (फेंसिड्रिल सिरप) जब्त किया था। इसके बाद सिरप बनाने वाली कंपनी एबॉट ने इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी। साथ ही मार्केट से सिरप वापस मंगा लिए थे। एबॉट का सबसे बड़ा स्टॉकिस्ट विभोर राणा था। विभोर ने करीब 30 करोड़ रुपए का सिरप सरेंडर कर दिया। लेकिन एबॉट ने इस सिरप को वाराणसी के शुभम जायसवाल को दे दिया। इसकी सप्लाई फर्जी तरीके से करते हुए इसे नेपाल और बांग्लादेश पहुंचाया गया। वहां ऊंचे दामों पर इस सिरप को बेचा गया। इसी दौरान सोनभद्र पुलिस ने चिप्स और नमकीन लदे एक ट्रक को पकड़ा, जिसमें ये कफ सिरप तस्करी के लिए ले जाया जा रहा था। इसी के बाद इस मामले ने न सिर्फ तूल पकड़ना शुरू कर दिया, बल्कि एजेंसियों की जांच में भी तेजी आ गई। पिछले महीने STF ने किंगपिन शुभम जायसवाल के करीबी अमित सिंह टाटा (उर्फ अमित टाटा) को लखनऊ से गिरफ्तार किया। टाटा पर झारखंड की एक मेडिसिन फर्म के जरिए सिरप डायवर्ट करने का आरोप है। 12 नवंबर को विभोर राणा और विशाल सिंह को सहारनपुर से गिरफ्तार किया गया। 2 दिसंबर को बर्खास्त कॉन्स्टेबल आलोक प्रताप सिंह को यूपी STF ने उस समय गिरफ्तार किया, जब वह कोर्ट में सरेंडर करने की फिराक में था। इन लोगों के पास से STF और पुलिस ने जौनपुर, वाराणसी, बस्ती और रायबरेली में छापे मारकर करीब 89 लाख बोतलें जब्त कीं। इनकी कीमत 100 करोड़ से ज्यादा है। STF इस मामले में अंतरराष्ट्रीय लिंक तलाश रही है। कई बैंकों के अकाउंट फ्रीज किए गए हैं। फाइनेंशियल रिकार्ड चेक किए जा रहे हैं। FSDA ने क्या किया?
FSDA ने मैन्युफैक्चरिंग और डिस्ट्रीब्यूशन लेवल पर सख्ती बरती। शेल फर्म्स को निशाना बनाया, जो कोडीन सिरप को ‘मेडिकल सप्लाई’ के नाम पर नशे के बाजार में पहुंचा रही थीं। ये नेटवर्क पूर्वी यूपी के वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, आजमगढ़, भदोही, मिर्जापुर और सोनभद्र जैसे जिले में सक्रिय था। अकेले वाराणसी में 26 फर्म्स के खिलाफ 15 नवंबर को FIR दर्ज की गई। इसके बाद 12 और फर्म्स पर केस दर्ज किया गया। जौनपुर में दिल्ली बेस्ड वन्या ट्रेडर्स और 3 लोकल फर्म्स पर 2.6 करोड़ के अनियमित ट्रांजैक्शन के लिए कार्रवाई की गई। यहां कुल 18 फर्म्स पर केस दर्ज किया गया। बाकी जिलों में मिलाकर करीब 128 केस अब तक दर्ज हो चुके हैं। FSDA लगातार ड्रग्स सप्लायर्स को नोटिस दे रहा और लाइसेंस निरस्त कर रहा है। ED ने क्या कदम उठाए?
ED ने नवंबर, 2025 के अंत में प्रिवेंशन ऑफ मनी लान्ड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज किया। क्योंकि, रैकेट का आर्थिक पहलू 500 करोड़ से ऊपर का बताया जा रहा है। ED का फोकस हवाला, शेल कंपनियों के जरिए मनी लान्ड्रिंग और भ्रष्टाचार पर है। ED यूपी के अलावा मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और झारखंड तक की जांच कर रही है। अकेले वाराणसी में 15 सदस्यीय ED टीम सक्रिय है। जिला पुलिस किस स्तर पर कार्रवाई कर रही?
सोनभद्र के एसपी अभिषेक वर्मा बताते हैं- इस मामले में 18 अक्टूबर को पकड़े गए कोडीन सिरप के मामले की तफ्तीश आगे बढ़ी, तो परत-दर-परत खुलती चली गई। मामला पहले गाजियाबाद से जुड़ा, फिर रांची तक इसके तार जुड़े। अब तक यूपी के 40 जिलों के अलावा कई राज्यों और 3 देशों की संलिप्तता सामने आ चुकी है। इस मामले का मुख्य आरोपी शुभम जायसवाल दुबई में छिपा है। बांग्लादेश में दवाओं की अवैध तस्करी में शामिल आसिफ के भी दुबई में होने के सबूत मिले हैं। शुभम का पिता कोलकाता के रास्ते देश छोड़ने की फिराक में था। लेकिन, उसे कोलकाता एयरपोर्ट पर बोर्डिंग गेट से गिरफ्तार कर लिया गया। जिला स्तर पर हो रही कार्रवाई में लोकल डिस्ट्रीब्यूटर्स पकड़े जा रहे, जो बड़े नेटवर्क से जुड़े हैं। किन लोगों की संलिप्तता सामने आई
इस मामले में अब तक शुभम जायसवाल को किंगपिन माना जा रहा है। वह मौजूदा समय में दुबई में बताया जा रहा है। शुभम विभोर का पार्टनर है। उसके अलावा अमित सिंह टाटा, आलोक प्रताप सिंह, जो यूपी पुलिस का बर्खास्त सिपाही है, शुभम का पिता भोला जायसवाल, विभोर राणा, विशाल सिंह, अशोक सिंह, विकास नरवे का नाम सामने आया है। विकास नरवे शुभम के बाद की मुख्य कड़ी माना जा रहा है। उसे पूर्वांचल के ही कुछ माफिया का संरक्षण मिला है। कुछ जगहों पर FSDA के अधिकारियों की भी संलिप्तता सामने आई है। इसकी जांच विभाग और पुलिस दोनों कर रही हैं। एनडीपीएस में क्यों दर्ज नहीं हो रहे मुकदमे
पुलिस और जांच एजेंसियां इसे नशे का कारोबार तो मान रहीं, लेकिन इसे फिलहाल लिखा-पढ़ी में नहीं ला पा रहीं। इसकी वजह जानने के लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। यूपी STF के एक अधिकारी बताते हैं- साल, 2020 में कफ सीरप को नशे के तौर पर बेचने का मामला सामने आया था। इस मामले में सहारनपुर पुलिस और यूपी STF ने विभोर राणा को गिरफ्तार किया था। विभोर राणा एबॉट कंपनी का स्टॉकिस्ट था। पुलिस ने विभोर के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत FIR दर्ज दी। मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो हाईकोर्ट ने इन दवाओं को प्रतिबंधित नहीं माना। साथ ही विभोर के खिलाफ दर्ज FIR को क्वैश कर दिया। इस मामले की जांच कर रही एजेंसियां और पुलिस हाथ मलती रह गईं। अब ताजा मामले में पुलिस एनडीपीएस एक्ट का इस्तेमाल करने से परहेज इसीलिए कर रही है कि कहीं ऐसा न हो कि पिछले केस को नजीर मानते हुए इस केस में भी आरोपियों को राहत मिल जाए। कोर्ट से मिली राहत के बाद बढ़ा कारोबार
इसके बाद से ही इस गैंग काे इस बिजनेस के लूपहोल और खामियों का पता चल गया। फिर इसका जमकर फायदा उठाना शुरू किया। शुरुआत में विभोर राणा और वाराणसी के शुभम का रिश्ता एक स्टॉकिस्ट और ग्राहक का था। लेकिन जब शुभम को ये खेल समझ में आया, तो वह विभोर से बड़ा खिलाड़ी बन गया। उसने वाराणसी में ही अकूत संपत्ति इकट्‌ठा की। अपना साम्राज्य बचाने और कारोबार में किसी तरह की दिक्कत न आए इसके लिए शुभम ने लोकल माफिया की शरण ली। इसके लिए आजमगढ़ के विकास नरवे ने अहम भूमिका निभाई। विकास नरवे के भी ख्वाब बड़े थे। वह बड़ी गाड़ी, बंगला और ऐशोआराम की जिंदगी का शौकीन बताया जा रहा है। नारकोटिक्स ब्यूरो से लिया ब्योरा तो खुलने लगी परतें
FSDA के एक अधिकारी ने बताया कि कोडीन कफ सीरप को नशे के रूप में इस्तेमाल को लेकर शिकायतें मिल रही थीं। इस पर कार्रवाई को लेकर योजना बनाई। शिकायत थी कि यूपी से दिल्ली और पंजाब को नशीले पदार्थ के रूप में इसकी सप्लाई हो रही है। दिल्ली और पंजाब की ही तरह बांग्लादेश और नेपाल में भी इसे भेजा जा रहा। 2020 में जो मामला सामने आया था, उसमें सहारनपुर के विभोर राणा को यूपी STF ने गिरफ्तार किया था। विभोर को हाल ही में यूपी STF ने फिर से गिरफ्तार किया। विभोर राणा से ही सौरभ त्यागी जुड़ा है। गाजियाबाद पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया है। नारकोटिक्स से ली डिटेल और फिर जांच आगे बढ़ी
इस मामले में यूपी FSDA ने ग्वालियर स्थित नारकोटिक्स ब्यूरो से जानकारी मांगी कि कोडीन का कोटा किस कंपनी को कितना जारी होता है। जवाब आया कि यूपी में कोडीन कफ सिरप बनता ही नहीं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कोडीन कफ सिरप बनता है। जहां तक कोडीन का सवाल है, तो वह पूरे देश में सिर्फ दो जगहों पर बनता है- नीमच और गाजीपुर में। कोडीन डालकर जो दवा बनाई जाती है, वह काम यूपी में नहीं होता। नारकोटिक्स ब्यूरो के कोटे में लेबोरेटरी, एबॉट जैसे कंपनियों के बड़े-बड़े कोटे हैं। इसके बाद एक टीम हिमाचल और उत्तराखंड में टीम भेजकर पता किया गया कि ये दवाइयां यूपी में किन कंपनियों को सप्लाई के लिए दी जाती हैं। इस तरह से होता है सिरप की बिक्री का चैनल
सबसे पहले दवा मैन्युफेक्चर होती है। उसके बाद वो मार्केटिंग में जाती है। यहां से डिस्ट्रीब्यूटर के पास जाती है, फिर बड़े होल सेलर और छोटे होल सेलर से होते हुए दवा मेडिकल स्टोर तक पहुंचती है। इसी क्रम में FSDA ने इन दवाओं के गाजियाबाद और लखनऊ गोदाम पर चेकिंग कराई। वहां से पता किया गया कि सिरप की सप्लाई कहां-कहां हुई है? इसमें सीतापुर, बहराइच, लखीमपुर जैसे जिलों में सप्लाई होने की बात सामने आई। इस पर वहां ड्रग इंस्पेक्टर भेजकर जिलों के होल सेलर की जांच कराई गई। परचेज और सेल बिल मांगा गया, तो कई होल सेलर नहीं दे सके। इससे पूरी चेन ब्रेक हो गई। जहां लाखों बोतलें बेची गईं और उनकी आगे की सेल पकड़ में नहीं आई। उनके खिलाफ FIR कराई गई। इसकी जब बारीकी से जांच की गई तो पता चला कि ये दवाएं लखीमपुर खीरी और बहराइच होते हुए नेपाल जा रही थीं। इसके बाद कानपुर में अग्रवाल ब्रदर्स के गोडाउन में काफी मात्रा में एक्सपायरी दवाइयां और दवाओं का बड़ा कलेक्शन था। उस पर भी FIR हुई। कानपुर में कार्रवाई के बाद पता चला कि इसका सबसे बड़ा कारोबार वाराणसी में हो रहा है। जो काम पहले पश्चिमी यूपी में हो रहा था, अब वाराणसी से हो रहा है। यहां ED की टीम शुभम जायसवाल की दुकान पर पहुंची। फौरी तौर पर वहां कोई अनियमितता नहीं मिली। लेकिन, जब दस्तावेजों की जांच की गई तो शुभम के पिता भोला प्रसाद का नाम सामने आया। भोला प्रसाद पहले से FSDA के रडार पर था। क्योंकि, जब 2020 के बाद STF और FSDA ने कार्रवाई की थी, उस समय एबॉट से रांची की फर्म ने पूरा माल खरीद लिया था। इसको भोला प्रसाद लीड कर रहा था। भोला ने इन दवाओं को अपने ही बेटे शुभम की कंपनी को बेच दिया था। आपस में ही एक-दूसरे को दिया अनुभव प्रमाणपत्र
FSDA के अधिकारी बताते हैं कि दुकान का लाइसेंस देने के लिए फार्मा सर्टिफिकेट के साथ अनुभव सर्टिफिकेट की भी जरूरत होती है। शुभम जायसवाल के नेटवर्क में जिन लोगों ने दुकानें खोली थीं, उन्होंने ही एक-दूसरे को अनुभव प्रमाणपत्र बांट रखे थे। इसके बाद रांची टीम भेजकर भोला प्रसाद की कंपनी से पूरी डिटेल निकलवाई कि उन्होंने यूपी में कितना कोडीन सिरप बेचा है? इसमें वाराणसी की 104 फर्मों का नाम सामने आया। इनका जब वेरिफिकेशन किया गया, तो उसमें 70 फर्मों में गड़बड़ी मिली। 70 में से 41 के खिलाफ FIR दर्ज की गई और बाकी के लाइसेंस निरस्त किए गए। सहारनपुर, गाजियाबाद और वाराणसी के ड्रग्स माफियाओं का नेक्सस
FSDA के अधिकारी ने बताया कि गाजियाबाद के सौरभ त्यागी, सहारनपुर के विभोर राणा और वाराणसी के शुभम जायसवाल बतौर ड्रग्स माफिया काम कर रहे थे। सौरभ त्यागी जाे गाजियाबाद से गिरफ्तार किया गया है उसके तीन गोडाउन हैं। हालांकि तीनों गोडाउन दिल्ली में हैं। इसमें विभोर राणा की भी हिस्सेदारी है। इसके बाद गाजियाबाद पुलिस और FSDA की संयुक्त टीम ने उसे भी वेरिफाई किया। वहां भी काफी गड़बड़ियां मिलीं। जिसके आधार पर पश्चिमी यूपी में कार्रवाई की जा रही है। FSDA की सचिव रौशन जैकब का कहना है कि विभाग ने मुख्यमंत्री के निर्देश पर एक बड़ा नेक्सस तोड़ा है। लाइसेंस देने को लेकर कुछ एसओपी जारी की गई है। सभी लाइसेंसों को जांच के लिए भेजा गया है। ————————— ये खबर भी पढ़ें… रिश्तेदार की लाश लेकर आया, मेरे गाल छूने लगा, लाशें जलाने के कारण शादी नहीं हुई मैं टुम्पा दास- पश्चिम बंगाल में डोम समुदाय की पहली महिला हूं, जो पिछले कई सालों से कोलकाता के बड़िपुर गांव के श्मशान में लाशें जला रही हूं। पता नहीं भारत में कोई और महिला यह काम करती है या नहीं, पर मैंने यही रास्ता चुना… और यह रास्ता आसान नहीं था। यहां पढ़ें पूरी खबर


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