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महिंद्रा सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल का 17वें संस्करण का आयोजन:लखनऊ और कोलकाता की साझा सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत किया

महिंद्रा सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल के 17वें संस्करण ‘राब्ता लखनऊ-कलकत्ता’ का कर्टन रेज़र कोलकाता में आयोजित किया। स्टूडियो बाड़ी में हुए इस कार्यक्रम में लखनऊ बाइस्कोप और महिंद्रा सनतकदा लखनऊ फेस्टिवल ने मिलकर किया। जिसमें प्रदर्शनी, संवाद और शास्त्रीय संगीत के माध्यम से लखनऊ और कोलकाता की साझा सांस्कृतिक विरासत को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत कलाकार सौम्यदीप रॉय की क्यूरेट की गई प्रदर्शनी ‘शहर-आशोब’ के वॉकथ्रू से हुई। यह प्रदर्शनी शहर को एक ‘जीवित अभिलेखागार’ के रूप में प्रस्तुत करती है, जहां इतिहास, स्मृति और समकालीन अनुभव आपस में जुड़ते हैं। तकी मीर से जोगिंदर पाल तक की शहर-आशोब की काव्य परंपरा के संदर्भों के साथ, इस प्रदर्शनी ने लखनऊ और कोलकाता की सांस्कृतिक को दिखाया। यह कहानी कला, भाषा और अनुभवों की प्रतीक बनी मिडिया कॉआर्डिनेटर सन्दली सिन्हा ने बताया कि प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण कवि तहसीन की कहानी थी, जिनका जन्म कोलकाता में हुआ, उन्हें रचनात्मक पहचान लखनऊ में मिली और उनकी कृतियां फोर्ट विलियम से मुद्रित होकर वापस कोलकाता पहुंचीं। यह कहानी कला, भाषा और अनुभवों के निरंतर आदान-प्रदान का प्रतीक बनी। दोनों शहरों में पलाश के फूल जैसे स्थापत्य संकेतों ने उनकी साझा सांस्कृतिक गहराई को दर्शाया। इसके बाद ‘टाइमलेस. बाउंडलेस. लखनऊ.’ विषय पर एक संवाद सत्र आयोजित किया गया। डॉ. नीता दास ने बताया कि लखनऊ उनके लिए सिर्फ एक शहर नहीं, बल्कि एक जीवंत स्मृति है। उन्होंने नवाब वाजिद अली शाह के निर्वासन और इमामबाड़ों व राजबाड़ियों की स्थापत्य समानताओं के बारे में बताया। लखनऊ-शाहजहांपुर घराना के गायक और तबला वादकों ने प्रस्तुति दी वही, जी.एम कपूर ने लखनऊ को ‘कोलकाता का छोटा रूप’ बताया। उन्होंने कहा कि ज़रदोज़ी कला लखनऊ से कोलकाता तक के सफर और यहां के कारीगरों की परंपरा रही हैं। शाम का समापन सरोद वादन से हुआ। लखनऊ-शाहजहांपुर घराना के संगीतकार उस्ताद इरफान मोहम्मद ख़ान ने पंडित संजीव कुमार पाल (तबला) के साथ मिलकर श्रोताओं का दिल जीत लिया। इस अवसर पर सुदीप्ता मित्रा, अनिंद्य बनर्जी, शहंशाह मिर्ज़ा और प्रो. पार्थ दत्त सहित कई कला-प्रेमी उपस्थित थे। यह आयोजन दोनों शहरों के सांस्कृतिक संबंधों की एक यादगार मिसाल बना।


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