महराजगंज में इंडो-नेपाल बॉर्डर रोड पर पौधारोपण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद धरातल पर एक भी पौधा नहीं मिला है। इस मामले ने अब एक गंभीर घोटाले का रूप ले लिया है, जिससे परियोजना की पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं। दस्तावेजों के अनुसार, दो वित्तीय वर्षों में इस मार्ग पर 30 हजार पौधे और इतने ही ट्रीगार्ड लगाने का दावा किया गया था। हालांकि, जब जमीनी हकीकत की पड़ताल की गई तो सीमा मार्ग पर न तो पौधे मिले और न ही एक भी ट्रीगार्ड नजर आया। इस पौधारोपण कार्य के लिए कुल चार फर्मों को भुगतान किया गया था। इनमें बस्ती जिले की एक फर्म को लगभग 16 लाख रुपये का काम आवंटित हुआ, जबकि शेष भुगतान महराजगंज जिले की तीन फर्मों को किया गया। सभी चारों फर्मों ने कागजों में कार्य पूर्ण होने की रिपोर्ट दाखिल कर दी थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि बॉर्डर रोड पर कभी बड़े पैमाने पर पौधारोपण हुआ ही नहीं। उनका तर्क है कि यदि पौधे सूख भी गए होते, तो कम से कम 30 हजार ट्रीगार्ड तो कहीं न कहीं दिखाई देते। पूरे मार्ग पर न तो गड्ढों के निशान हैं और न ही किसी प्रकार की संरचना, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कार्य केवल फाइलों तक सीमित रहा। मामले पर इंडो-नेपाल बॉर्डर खंड के अधिशासी अभियंता सैयद अख्तर अब्बास ने बताया कि 30 हजार नहीं, बल्कि 19 हजार पौधे लगाए गए थे और उनकी सुरक्षा के लिए ट्रीगार्ड भी लगाए गए थे। हालांकि, सवाल यह उठता है कि यदि पौधे और ट्रीगार्ड लगाए गए थे, तो वर्तमान समय में उनका कोई भी अवशेष क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। सूत्रों का दावा है कि अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से केवल लगभग 500 पौधे लगाए गए थे। इसका उद्देश्य फाइलों में फोटो लगाकर कोरमपूर्ति करना और पूरे कार्य का भुगतान निकालना था। यदि ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह वित्तीय अनियमितता और हरित परियोजनाओं के नाम पर जनता के धन की खुली लूट मानी जाएगी। स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों ने इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। बस्ती और महराजगंज की चार फर्मों को हुए भुगतान और धरातल पर शून्य स्थिति के बीच यह मामला जिले में चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
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