बलिया। सलेमपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद रमाशंकर राजभर विद्यार्थी ने मनरेगा कानून को लेकर केंद्र की मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने मनरेगा से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम हटाने को ‘गांधी की दूसरी हत्या’ करार देते हुए इसे गरीबों, मजदूरों और ग्रामीण भारत के खिलाफ सुनियोजित साजिश बताया। एक प्रेस वीडियो बयान में सांसद राजभर ने कहा कि मनरेगा कोई साधारण योजना नहीं, बल्कि करोड़ों गरीब मजदूरों को मिला कानूनी रोजगार का अधिकार था। आरोप लगाया कि भाजपा ने इस अधिकार को कमजोर कर मजदूरों की रीढ़ तोड़ दी है। उन्होंने कहा कि ‘गांधी का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान’ का नारा भाजपा की गरीब-विरोधी नीतियों के खिलाफ जनआक्रोश का प्रतीक बन चुका है। गांधी की आत्मा पर बीजेपी का दूसरा हमला सांसद ने कहा, “जब गांधी जी जीवित थे, तब उन्हें गोलियों से मारा गया और आज उनके नाम को कानून से हटाकर उनकी आत्मा पर हमला किया जा रहा है।” उनके मुताबिक यह केवल गांधी का नहीं, बल्कि गांव, गरीब और मजदूर का अपमान है। उन्होंने भाजपा की विचारधारा को शुरू से ही गांधी और गांधीवाद विरोधी बताया। मनरेगा की फंडिंग पर सवाल उठाते हुए सांसद ने कहा कि पहले केंद्र सरकार 90 से 100 प्रतिशत तक धन देती थी, जबकि अब 60:40 के अनुपात में बोझ राज्यों और पंचायतों पर डाल दिया गया है। इससे पंचायतें आर्थिक संकट में फंसेंगी, विकास कार्य ठप होंगे और मजदूरों को काम मिलना मुश्किल होगा। लाखों मनरेगा कर्मियों के बेरोजगार होने के खतरा उन्होंने आशंका जताई कि पुराने जॉब कार्ड बेकार कर नए कार्ड बनवाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। सवाल किया कि जब मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है, तब वह नया जॉब कार्ड बनवाने का खर्च कैसे उठाएगा। साथ ही लाखों मनरेगा कर्मियों के बेरोजगार होने का खतरा भी बताया। भाजपा पर तंज कसते हुए सांसद ने कहा कि पहले बहुमत के घमंड में फैसले लिए जाते थे और अब 240 सीटों पर सिमटने के बाद भी नीतियां नहीं बदलीं। उन्होंने इसे ‘तुगलकी फरमान’ बताते हुए लोकतंत्र के लिए घातक करार दिया। सांसद ने चेताया कि पंचायत चुनाव नजदीक हैं और देशभर के प्रधानों ने सरकार के भरोसे स्वीकृत विकास कार्य पूरे करा दिए हैं। यदि भुगतान नहीं हुआ तो प्रधानों पर मुकदमे, जेल और आर्थिक संकट का खतरा होगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी। अंत में रमाशंकर राजभर विद्यार्थी ने देशभर के प्रधानों, मनरेगा कर्मियों और मजदूरों से एकजुट होकर आंदोलन के लिए तैयार रहने का आह्वान किया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि मनरेगा कानून और गांधी का नाम वापस नहीं लाया गया, तो यह लड़ाई गांव से सड़क और संसद से दिल्ली तक लड़ी जाएगी।
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