मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस बीपी स्वामीनाथन की ओर से हाल ही में एक बंद पड़े मंदिर में दीपोत्सव पुनः प्रारंभ करने संबंधी दिए गए आदेश ने राष्ट्रीय राजनीति में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस आदेश के विरोध में इंडिया (I.N.D.I.A.) गठबंधन के कुछ सांसदों ने न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया शुरू की। इसके बाद विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों ने इस कदम को न्यायपालिका पर दबाव बनाने का प्रयास बताया है। इसी क्रम में अखिल भारतीय संघ समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि विपक्षी दलों द्वारा जज के खिलाफ इस तरह महाभियोग लाना “निंदनीय, असंवैधानिक और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करने वाला कदम” है। हिंदू परंपराओं का पालन करने पर जजों को डराने की कोशिश”-स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि, यदि किसी जज ने मंदिर परंपरा या हिंदू संस्कृति के अनुरूप कोई निर्णय दिया, तो विपक्ष उनके खिलाफ महाभियोग लाएगा यह न्यायपालिका के लिए एक खतरे का संकेत है। उन्होंने कहा कि विपक्ष द्वारा लिया गया यह कदम संदेश देता है कि हिंदू आस्था के पक्ष में यदि न्यायालय कोई निर्णय देगा, तो उसे राजनीतिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि 75 वर्षों में कई मौकों पर हिंदू समाज को उपेक्षित किया गया और न्यायपालिका की भूमिका पर भी कभी-कभी सवाल उठाए गए। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी निर्णय से यदि असहमति हो, तो उसका संवैधानिक मार्ग उच्चतम न्यायालय में अपील है, न कि राजनीतिक महाभियोग की धमकी। महाभियोग का दुरुपयोग लोकतंत्र के लिए खतरा अखिल भारतीय संघ समिति ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों द्वारा महाभियोग का इस्तेमाल एक तरह से न्यायपालिका पर दबाव बनाने की रणनीति है। समिति का कहना है कि यह परंपरा लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगी। यदि हाई कोर्ट के किसी भी निर्णय पर राजनीतिक दल महाभियोग ला सकते हैं, तो न्यायिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी। समिति ने यह भी कहा कि जो लोग संविधान की रक्षा के नाम पर राजनीति करते हैं, उन्हीं के द्वारा ऐसा कदम उठाया जाना “गैर-संवैधानिक आचरण” है। संसद में प्रस्ताव के विफल होने की मांग स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने भारत सरकार और सत्तारूढ़ दलों से मांग की कि ऐसे निराधार महाभियोग प्रस्ताव को संसद में किसी भी स्थिति में पास न होने दिया जाए। उन्होंने इसे पूरे हिंदू समाज पर आक्रमण बताते हुए कहा कि देश की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को राजनीतिक प्रतिशोध का साधन नहीं बनाया जाना चाहिए।
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