10 जून 2011, गोरखपुर दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज की स्टूडेंट शिखा दुबे देर रात तक घर नहीं लौटी। घरवालों की बेचैनी बढ़ी तो थाने जाकर रिपोर्ट लिखाई। कुछ दिन बाद एक लाश मिली। परिवारवालों ने अंतिम संस्कार कर दिया। जांच आगे बढ़ी तो जो सामने आया वो किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था। शिखा जिंदा थी… ‘कातिले इश्क’ के तीसरे एपिसोड आज एक प्रेम कहानी, जिसने बॉयफ्रेंड के साथ खुद की मौत का नाटक रचा। एक लड़की को जाल में फंसाकर मार दिया और घर से भाग गई। आखिर कैसे हुआ इस साजिश से पर्दाफाश… 20-22 साल की शिखा के लिए कॉलेज की दुनिया नई दुनिया थी। बड़े-बड़े क्लासरूम, लाइब्रेरी से झांकतीं मोटी किताबें और कैंटीन में दोस्तों के साथ गप्पबाजी। दिन बीते, महीने गुजरे… एक दिन शिखा अपनी सहेली नेहा के साथ कैंटीन में बैठी थी। थोड़ी देर बाद एक लड़का वहां से गुजरा। नेहा ने शिखा को कोहनी मारी और फुसफुसाई- “देख ना, वो लड़का तुम्हें ही देख रहा है। रोज का हो गया है ये उसका।” शिखा ने चाय की चुस्की ली और बिना मुड़े बोली- “देख तो हम भी रहे हैं कई दिन से। खैर, क्या फर्क पड़ता है?” नेहा हंस पड़ी- “तुम भी कम नहीं हो। लेकिन जो भी हो। लड़का है काफी स्मार्ट… नाम जानती हो उसका?” शिखा ने न में सिर हिला दिया। नेहा बोली- “दीपू यादव नाम है आपके आशिक का।” शिखा ने पलटकर पूछा- “तुम्हें कैसे पता, तुम जानती हो उसे?” नेहा- “मुझे सब पता रहता है। बड़े घर का है, कई लड़कियां लट्टू हैं उस पर।” कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा। शिखा जहां जाती दीपू वहीं नजर आता, लेकिन बोलता कुछ नहीं। एक दोपहर नेहा ने फिर कहा- “तुम्हारी तरफ से हम बात करें” शिखा ने किताब से नजरें उठाईं और मुस्कुराकर बोली- “हैंडसम तो वो है, लेकिन हम पहल क्यों करें? देखते हैं बोलने की हिम्मत भी है या फिर…” नेहा ने आंखें मटकाकर कहा- “मैडम जी के जलवे… ठीक है, ठीक है।” और फिर एक दिन शिखा लाइब्रेरी से निकल रही थी। अचानक तेज बारिश शुरू हो गई। शिखा रुक गई। तभी दीपू आया, उसके हाथ में छाता था। वो रुका, शिखा की तरफ देखा और मुस्कुराया, बोला- “आप चाहें तो हम छाता शेयर कर सकते हैं।” शिखा ने एक पल हिचकिचाई, फिर हामी भर दी। दोनों साथ चलने लगे। दोनों की धड़कने तेज थीं। तभी दीपू हिचकते हुए बोला- “मैं दीपू हूं। कई बार देखा है आपको कैंटीन में।” शिखा ने सिर झुकाकर मुस्कुराई, बोली- “हम भी कई दिन से नोटिस कर रहे हैं आपको।” दीपू हंसा- “अच्छा… तो हम अकेले नहीं थे जो नोटिस कर रहे थे।” शिखा ने झिड़ककर कहा- “हम अंधे थोड़े ही हैं।” दीपू झेंप गया, शिखा मुस्कुरा दी। दोनों कॉलेज गेट तक आ चुके थे। दीपू ने पूछा- “कहां रहती हैं आप?” शिखा- “कमलेशपुरम…” दीपू चौंककर बोला- “अरे हम भी उसी तरफ रहते हैं… साथ चलें?” शिखा ऑटो में बैठी लेकिन कुछ बोली नहीं, बस खिसकते हुए दीप के बैठने की जगह बना दी। दीपू ने देखा, लेकिन बैठा नहीं। शिखा हंसते हुए बोली- “आ जाओ अंदर, बाहर भीग जाओगे।” अगले दिन दीपू कैंटीन में शिखा का इंतजार कर रहा था। शिखा आती दिखी तो दीपू ने नजर चुकाकर बाल सही किए और कपड़ों पर हाथ फेरा। शिखा को देखते ही दीपू ने पूछा- “चाय…?” शिखा मुस्कुराकर बोली- “लेकिन तुम तो रोज कॉफी पीते हो?” दीपू ने शरारत भरी नजरों से कहा- “हम भी नोटिस हो रहे थे।” शिखा शर्माकर बैठ गई। उसने चाय ली और दीपू ने कॉफी, दोनों घंटों बतियाते रहे। धीरे-धीरे मिलना-जुलना बढ़ा गया। अब कॉरिडोर और लाइब्रेरी में भी दोनों साथ नजर आने लगे। एक दिन दीपू ने कहा- “कल क्लास बंक करें। पार्क में चलें… घूमने” शिखा ने पहले मना किया- “पापा ने कहा है, पढ़ाई पर फोकस करना है।” दीपू उदास हो गया, लेकिन हिम्मत जुटाकर फिर बोला- “बस एक बार न।” फिर वो पहला क्लास बंक… दोनों पार्क में गए। आइसक्रीम खाई और खूब बतियाए। दीपू ने बैग से एक गुलाब निकाला और शिखा के हाथों में थमा दिया। उस दिन से दोनों का रूटीन बदल गया। लेक्चर के बजाय कैंटीन और पार्क में वक्त गुजरने लगा। अब क्लास बंक आम हो गया। लेकिन, प्यार इतनी आसानी से हासिल हो जाए तो बात ही क्या है। दोनों की कास्ट अलग थी। शिखा के घरवालों को उसका रवैया देखकर शक हो गया था। उसके पहनावे और घर आने के वक्त को लेकर रोक-टोक शुरू हो गई। एक दिन शिखा के पिता रामप्रकाश दुबे ने पूछा- “बेटा पढ़ाई कैसी चल रही है?” शिखा ने झूठ बोला- “अच्छी चल रही है पापा।” उसके चेहरे पर घबराहट दिख रही थी। पिता ने आगे पूछा- “कॉलेज में पढ़ाई ही कर रही हो ना…?” शिखा पिता के टेढ़े सवाल को समझ गई थी। उसका कलेजा धक से कर गया। उसने हिम्मत बांधकर कहा- “हां पापा, कॉलेज में पढ़ाई ही करते हैं ना।” किचन से शिखा की मां ने जवाब दिया- “पहिले होती थी सिरफ पढ़ाई, आज तो गलबहियां भी होती हैं। तुम्हें छूट दिए हैं, इसका मतलब ये नहीं कि कुछ और करो।” शिखा अनजान बनते हुए बोली- “क्या कहना चाह रही हो मम्मी।” मां ने पूछा- “वो लड़का कौन है जिसके साथ तुम कॉलेज जाती हो? तुम्हें क्या लगता है, हमें कुछ मालूम नहीं?” ये सुनते ही शिखा चौंक गई। कुछ न बोली, बस वहां से उठी और कमरे में चली गई। अगले दिन शिखा बिना साज-सिंगार के ही कॉलेज चली गई। पहुंचते ही दीपू से मिली और रोने लगी। फिर बोली- “घरवालों को शक हो गया है। पता वह कब मेरा कालेज आना बंद कर देंगे।” दीपू तुनककर बोला- “कॉलेज आना बंद कर करवा देंगे तो क्या प्यार भी खतम हो जाएगा।” शिखा आंसू पोंछते हुए बोली- “तुम्हारे लिए ये छोटी बात होगी, वो जबरदस्ती मेरी शादी करा देंगे।” फिर बोली- “देखो हम स्कूल में नहीं पढ़ते, कॉलेज में हैं। लड़कियों का कॉलेज खत्म मतलब सीधे शादी। तुम ये बताओ हमसे शादी करोगे या बस मजे कर रहे हो।” दीपू नाराज हो गया- “चुप करो। मजे करने को सिर्फ तुम ही बची हो। कई लड़कियां हैं इसके लिए।” फिर शिखा का चेहरा दोनों हाथों में लेकर बड़े प्यार से बोला- “तुम जिस दिन कहोगी उस दिन, उस वक्त, उसी जगह तुमसे शादी कर लेंगे।” उधर, शिखा के घर में कलह बढ़ती जा रहा थी। मां की तरफ से कॉलेज बंद करवाने की धमकियां मिल रही थीं। शिखा सब कुछ सुनती रही। कुछ महीने बीते, फिर 18 अप्रैल, 2011 को दोनों ने गोरखपुर के बुढ़िया माता मंदिर में शादी कर ली। शादी के बाद दीपू बोला- “अभी कुछ दिन तुम अपने घर पर ही रहो। हम कुछ प्लान करके बताते हैं।” शादी के बाद भी शिखा अपने ही घर में रही, सिंदूर भी नहीं लगाती। बस ख्वाब देखती, एक दिन वो और दीपू साथ रहेंगे। लेकिन, शिखा की मां ने उसका कॉलेज जाना भी बंद करा दिया। अब वो कभी-कभार ही कॉलेज जाती। उसका घर से निकलना भी मुश्किल था। वो घर में कैद थी। दिन गुजरते जा रहे थे, दीपू का मैसेज आता- “थोड़ा और इंतजार करो, कुछ बड़ा प्लान कर रहे हैं।” शिखा प्लान के बारे में पूछती, लेकिन दीपू कहता जल्द बताऊंगा। 6 जून 2011 की सुबह दीपू का फोन आया- “शिखा, कल सुबह 10 बजे, कॉलेज के पास वाले पार्क में मिलो।” अगले दिन कॉलेज में जरूरी काम के बहाने से शिखा पार्क पहुंची। लेकिन, दिल में एक अनजाना डर था। आखिर दीपू ने क्या ‘बड़ा प्लान’ किया है? पार्क में दीपू इंतजार कर रहा था। साथ में उसका दोस्त सुग्रीव भी था। सुग्रीव, दीपू के पिता के ट्रांसपोर्ट बिजनेस में काम करता था। शिखा को देखते ही दीपू ने झट से उसे गले लगा लिया और पूछा- “कैसी हो?” शिखा- “ठीक नहीं हैं।” दीपू ने देखा शिखा सिंदूर लगाकर आई थी। ये देखते ही उसने एक बार फिर शिखा को गले लगा लिया, फिर बोला- “अब तुम्हें छुपकर सिंदूर नहीं लगाना होगा।” कुछ देर दोनों ने बातें की फिर इशारा करते हुए बोला- “ये सुग्रीव है, मेरा दोस्त। सोनभद्र में मेरे पापा का बिजनेस देखता है। हम जल्द ही सोनभद्र जाएंगे।” शिखा- “हम…?” दीपू- “हां, हम दोनों।” शिखा चुपचाप दीपू की बात सुन रही थी। वो बोला- “लेकिन भागने से पहले एक प्लान है।” शिखा- “क्या…” दीपू ने इधर-उधर देखकर गंभीरता से कहा- “तुम्हारी मौत का नाटक करना होगा।” शिखा को कुछ समझ नहीं आया, वो बोली- “क्या कहना चाह रहे हो? मरने का नाटक?” दीपू- “हां… अगर तुम मर गईं, तो घरवाले कभी हमें ढूंढेंगे नहीं। हम आजाद हो जाएंगे।” शिखा चौंक गई, बोली- “लेकिन ये सब होगा कैसे?” दीपू ने समझाया- “सुग्रीव एक लड़की लाएगा, तुम्हारी कद-काठी की। हम उसे… खतम कर देंगे। फिर तुम्हारे कपड़े उसे पहनाकर, चेहरा बिगाड़कर जंगल में फेंक देंगे। घरवालों को लगेगा कि वो तुम हो और हम सोनभद्र भाग जाएंगे।” दीपू का प्लान सुनते ही शिखा के चेहरे पर डर की लकीरें उभर आईं। शिखा हिचकते हुए बोली- “ये… ये मर्डर…? नहीं, नहीं दीपू, ये गलत है। किसी निर्दोष की जान… कैसे?” दीपू ने शिखा को दोनों कंधों से पकड़ा- “शिखा, ये हमारे प्यार के लिए एक कुर्बानी है। हमारे घरवाले कभी नहीं मानेंगे। ये एक बार की बात है। फिर हम हमेशा साथ रहेंगे।” शिखा इसके लिए तैयार न थी। वो बार-बार दीपू की तरफ देखकर कहती- “ये पाप है, हमसे नहीं होगा” दीपू कहता- “प्यार में सब जायज होता है, कुछ भी पाप नहीं होता।” वो आगे कहता- “मान लो अगर हम साथ नहीं रहते हैं तो तुम क्या…” दीपू का सवाल खत्म भी नहीं हुआ था कि शिखा बोल पड़ी- “जान दे दूंगी।” अब गुस्से में शिखा ने सवाल किया- “क्या तुम जान दोगे?” दीपू ने उसे कसकर पकड़ा, शिखा चौक उठी। नजरें मिलाकर बोला- “कोई शक है तुम्हें…” शिखा चुप रही, फिर दीपू बोला- “दो जिंदगियां खत्म होने से बेहतर है, एक जान जाए।” शिखा रो पड़ी, दीप ने उसे गले लगा लिया फिर सुग्रीव की तरफ देखकर बोला- “काम हो जाएगा न…?” सुग्रीव मुस्कुरा दिया। इसके बाद दीपू ने शिखा से कहा- “तुम कल बाजार जाकर कपड़े खरीद लो। कल ही तुम्हें बता देंगे, कहां और कब मिलना है। नए कपड़े साथ लेकर आना।” दो दिन बाद, 8 जून सुग्रीव, पूजा से मिलने गया। वो पति से अलग होकर अपने मायके में रह रही थी। कई बार सुग्रीव से कहीं नौकरी दिलाने के लिए कह चुकी थी। सुग्रीव बोला- “तुम्हारे लिए एक नौकरी है, करोगी?” पूजा- “काहे नहीं करेंगे… आखिर कब तक घर में बैठेगे।” सुग्रीव बोला- “गोरखपुर में एक फैमिली है, घर की साफ-सफाई, बर्तन-चौका करना होगा। तीन-चार हजार मिल जाएंगे, रहना-खाना अलग से…” पूजा के लिए ये नौकरी जरूरी थी। वो राजी हो गई। सुग्रीव के कहे मुताबिक दो दिन बाद उससे मिली। सुग्रीव ट्रक लेकर सोनभद्र से गोरखपुर जा रहा था। दीपू भी उसके साथ था। पूजा ट्रक में बैठी और सुग्रीव चल दिया। गोरखपुर पहुंचने से पहले सुग्रीव ने ट्रक हाईवे से घुमाकर खोराबार कस्बे की तरफ मोड़ दिया। पूजा ने चौंककर पूछा- “तुम तो कह रहे थे गोरखपुर जाना है, ये किधर जा रहे हो?” सुग्रीव बोला- “गाड़ी के कागज अधूरे हैं, उधर से जाएंगे तो पुलिस रोक लेगी।” पूजा ने विश्वास कर लिया। रात हो ही चुकी थी। तभी साथ बैठे दीपू ने पूजा का गला दबोच लिया। पूजा को लगा दीपू उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा है। पूजा खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। तभी सुग्रीव गाड़ी रोकी और पूजा के हाथ-पैर पकड़ लिए। दीपू ने जोर से पूजा की गर्दन दबा दी। कुछ देर बाद पूजा ने छटपटाना बंद कर दिया। ट्रक फिर चल दिया। काफी आगे जाकर ट्रक रुका। पूजा वहीं नए कपड़े लेकर खड़ी थी। शिखा ट्रक में चढ़ी और पूजा की लाश देखकर सहम गई- “मार डाला, कैसे मारा।” दीपू हंसते हुए बोला- “अरे सो रही है।” शिखा की सांस में सांस आई। तभी दीपू और सुग्रीव एक-दूसरे को देखकर जोर से हंस पड़े। शिखा समझ गई कि दोनों ने उसे मार दिया है। ट्रक एक बार फिर रुका। गोरखपुर शहर से करीब 10 किमी पहले, मदन मोहन मालवीय टेक्निकल यूनिवर्सिटी के पास सिंघाड़िया का जंगल। सुग्रीव और दीपू ट्रक से नीचे उतरे। शिखा ने ट्रक में ही कपड़े बदले, उसने अपने साथ लाए नए कपड़े पहने और खुद के कपड़े पूजा को पहनाने लगी। लाश भारी थी, दीपू और सुग्रीव ने उसकी मदद की। शिखा ने गले का काला धागा और चूड़ियां भी पूजा को पहना दीं। फिर पूजा की लाश उठाकर जंगल में ले गए। सुग्रीव ने लोहे की एक रॉड से पूजा के चेहरे पर कई वार किए। चेहरा पहचानने लायक नहीं था। शिखा की पर्स और चप्पल भी वहीं छोड़ दी, ताकि लाश की शिनाख्त शिखा के रूप में हो। प्लान पूरा हो चुका था। इसके बाद तीनों उसी ट्रक में बैठे सोनभद्र चले गए। अब शिखा और दीपू आजाद थे। कोई उन्हें रोकने वाला नहीं था। दोनों एक साथ रहने लगे, जैसे पति और पत्नी रहते हैं। उधर शिखा के घर का माहौल भारी था। शाम ढल चुकी थी, रात होने वाली थी, लेकिन इकलौती बेटी अभी तक घर नहीं लौटी थी। फोन भी बंद आ रहा था। मां-बाप की छाती धक-धक कर रही थी- “कहीं भाग तो नहीं गई?” आखिर में हार मानकर पिता रामप्रसाद ने कैंट थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज करा दी। अगले दिन यानी 11 जून को सिंघाड़िया के जंगल में एक लाश बरामद हुई। चेहरा पूरी तरह उधड़ चुका था। जगह-जगह से मांस फट चुका था। साथ मिले सामान से शिनाख्त हुई कि लाश कमलेशपुरम में रहने वाली शिखा दुबे की है। पुलिस ने रामप्रसाद को खबर दी। खबर मिलते ही उनका दिल बैठ गया। ऐसा तो उन्होंने सोचा भी नहीं था। दौड़ते हुए वहां पहुंचे। लाश पर वही कपड़े जो शिखा घर से पहनकर निकली थी, गले में काला धागा, पास पड़ी चप्पल और पर्स भी शिखा का था। लाश की हालत देखी तो गश खाकर गिरने लगे। पुलिसवालों ने जैसे-तैसे संभाला। बड़े नाज से पाली गई इकलौती लड़की अर्थी पर विदा हुई। पूरे मोहल्ले में सन्नाटा छा था। गुमशुदगी का केस मर्डर में बदल गया। अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने रामप्रसाद को थाने बुलाया। इंस्पेक्टर अश्विनी सिन्हा ने धीरे से कहा- “देखिए हम आपकी लड़की वापस नहीं ला सकते। हमें दुख है लेकिन वादा करता हैं, मारने वाला बचेगा नहीं।” रामप्रसाद चुप रहे। सिन्हा ने पूछा- “किसी पर शक है?” रामप्रसाद- “दीपू यादव…” इंस्पेक्टर के बगल में खड़े सिपाही ने डायरी में नाम नोट कर लिया। इंस्पेक्टर ने आगे पूछा- “कौन है ये, कुछ बताइए इसके बारे में…” रामप्रसाद ने बताना शुरू किया- “हमारे मोहल्ले में ही रहता है। घर भी आता-जाता था। ट्रक का बिजनेस है उसके बाप का…। मेरी बेटी के साथ ही पढ़ता था।” इंस्पेक्टर की नजरें कुछ टेढ़ी हो गईं। उनके कान कुछ और सुनना चाह रहे थे। रामप्रसाद सिर झुकाकर बोले- “लेकिन मुझे शक था… इसलिए दोनों का मिलना-जुलना बंद करा दिया था।” पुलिस दीपू के घर पहुंची, वो घर से गायब था। नंबर ट्रेस किया गया, सिम इनएक्टिव था। काफी दिन बीत गए, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। एक दिन इंस्पेक्टर सिन्हा फाइलें खंगाल रहे थे। तभी एक सिपाही बोला- “साब एक बात कहें…” इंस्पेक्टर सिन्हा ने घूरकर देखा। सिपाही ने कहा- “साब, आप कन्फर्म हैं जिस लड़की का लास मिला था, ऊ सिखा थी?” इंस्पेक्टर ये सुनते ही झन्ना गए। गुस्से भरे लहजे में बोले- “पहेली न बुझाई, साफ-साफ कहिए।” सिपाही बोला- “लड़की के पेट पर निशान थे। जैसे बाल-बच्चे वाली औरत के पेट पर डिलिवरी के बाद आता है। हो सकता है लाश किसी और की हो।” ये सुनते ही सिन्हा चौंक गए। दूसरे एंगल से भी केस की जांच शुरू हुई। फिर भी पुलिस सर्विलांस, छापे सब नाकाम हो रहे थे। पुलिस ने अब दीपू के सभी रिश्तेदारों के नंबर सर्विलांस पर डाल दिए। अगस्त, 2011 की एक शाम दीपू ने बहन को फोन किया। कॉल ट्रेस हो चुकी थी, लोकेशन सोनभद्र का माइनिंग (खनन) एरिया। पुलिस की एक टीम फौरन रवाना हुई। सोनभद्र पहुंचकर एक मकान के सामने जीप रुकी। इंस्पेक्टर सिन्हा ने दरवाजा खटखटाया। एक लड़की ने दरवाजा खोला, तो पुलिसवालों के होश उड़ गए। “ये… शिखा, लेकिन लास तो… ये उसकी हमशक्ल है या कुछ और” सिपाही अंदर घुसे, दीपू वहीं था। कमरे की दीवार पर दोनों की फोटो टंगी थी। पुलिस दोनों को लेकर गोरखपुर पहुंची। पूछताछ में दीपू टूट गया। उसने सब कुछ साफ-साफ बता दिया। सुग्रीव, पूजा, मर्डर की प्लानिंग… परत-दर-परत पूरी सच्चाई बाहर आ चुकी थी। पुलिस ने शिखा और दीपू को जेल भेज दिया। 7 साल जेल में गुजारने के बाद दोनों फिलहाल जमानत पर बाहर हैं। हैरत की बाद ये है कि वो प्यार जो कभी एक-दूसरे के लिए जान देने और लेने को तैयार था, अब एक-दूसरे का चेहरा तक नहीं देखता। दोनों ने अलग-अलग शादियां भी कर ली हैं। मामला अभी भी कोर्ट में है। उम्मीद है, दोनों को जल्द ही उनके किए की सजा मिलेगी। *** स्टोरी एडिट- कृष्ण गोपाल *** रेफरेंस जर्नलिस्ट- उमेश पाठक, एसपी सिंह, अरुण त्रिपाठी, अजीत यादव भास्कर टीम ने सीनियर जर्नलिस्ट्स, पुलिस, पीड़ितों और जानकारों से बात करने के बाद सभी कड़ियों को जोड़कर ये स्टोरी लिखी है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है। ———————————————————– सीरीज की ये स्टोरीज भी पढ़ें… ‘मिस मेरठ’ का लेस्बियन इश्क; साथ रहने के लिए पार्टनर के भाई से शादी की, मां-बाप ने गाली दी तो दोनों को मार दिया दिल्ली के हॉस्टल में शुरू दोस्ती एक ऐसे रिश्ते में बदली जिसे समाज ने ‘पाप’ कहा और दुनिया ने ‘नामंजूर’ कर दिया। फिर सामने आई इश्क की सबसे खतरनाक शक्ल, जिसने साथ ‘जीने’ के लिए मां-बाप को मार दिया। पूरी स्टोरी पढ़ें… मुस्लिम बॉयफ्रेंड के लिए मां-बाप समेत 5 को मारा; 2 बच्चों के पिता शानू से लव मैरिज की, एक गलती से पकड़ी गई 26 अगस्त 2016, वेस्ट यूपी में बुलंदशहर का नरौरा कस्बा। सुबह करीब 7 बजे नहर के पास से गुजर रहे आदमी की नजर अचानक ठिठक गई। नेवी ब्लू रंग की ईको कार पानी में तैरती दिखी। पुलिस आई, कार पानी से निकाली गई। पिछली सीट पर तीन लाशें थीं। पूरी स्टोरी पढ़ें…
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