इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीवी को जलाकर मार डालने के आरोपी शाहनवाज उर्फ शानू की जमानत अर्जी मंजूर कर ली। यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने शानू के अधिवक्ता संदीप शुक्ल और शिकायतकर्ता के अधिवक्ता व सरकारी वकील को सुनकर दिया है। शानू के खिलाफ मेरठ के लिसाड़ी गेट थाने में बीवी को जलाकर मार डालने का मुकदमा दर्ज है। आरोप है कि शानू ने अनीसा और फहरीन के साथ मिलकर 27 नवंबर 2024 की रात बीवी की हत्या करने के इरादे से उसे आग लगा दी। याची के अधिवक्ता ने कहा कि घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है लेकिन बाद में मृतका का बयान जांच अधिकारी ने दर्ज किया और अभियोजन पक्ष ने उसे मृत्युपूर्व बयान माना है लेकिन उक्त बयान मृत्युपूर्व बयान की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि वह वीडियो जांच अधिकारी ने रिकॉर्ड किया था और कहा गया कि उन्होंने ऐसा इलाज कर रहे डॉक्टर की उपस्थिति में किया था लेकिन उक्त डॉक्टर ने इसकी पुष्टि नहीं की है कि कोई वीडियो उनकी उपस्थिति में रिकॉर्ड किया गया था। यह तथ्य इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर डॉ यशवीर सिंह के बयान से भी पुष्ट होता है। डॉक्टर ने मृतका के किसी भी बयान को रिकॉर्ड करने के बारे में एक भी शब्द का उल्लेख नहीं किया है। एडवोकेट शुक्ल ने कहा कि मृतका का इलाज कर रहे डॉक्टर का कोई प्रमाण पत्र नहीं है इसलिए मृतका के उक्त बयान को संज्ञान में नहीं लिया जा सकता है। मृतका का लगभग सात दिन तक इलाज चला और बीएसए की धारा 26 के प्रावधान के अनुसार कोई मृत्युपूर्व बयान दर्ज नहीं किया गया। यह तथ्य उप-निरीक्षक रजत कुमार द्वारा संबंधित मजिस्ट्रेट को दिए गए प्रार्थना पत्र से भी पुष्ट होता है, जो मृतका का मृत्युपूर्व बयान दर्ज कराने के लिए प्रस्तुत किया गया था। इस प्रकार बीएसए की धारा 26 के प्रावधान के अनुसार रिकॉर्ड पर कोई मृत्युपूर्व बयान नहीं है। संदीप शुक्ल ने यह भी कहा है कि यह सच है कि एक बेटी ने याची पर गंभीर आरोप लगाए हैं लेकिन उसकी अन्य दो संतानों अदनान व अरहान ने उक्त आरोपों का खंडन किया है। स्वतंत्र गवाह मोहम्मद वसीम, आदिल, शाहिद, राशिद, नगमा और सहाना ने भी स्पष्ट रूप से कहा है कि याची ने मृतका को लगी आग बुझाने की कोशिश की थी इसलिए याची जमानत का हकदार है। शिकायतकर्ता के अधिवक्ता व सरकारी वकील ने ज़मानत याचिका का पुरजोर विरोध इस आधार पर किया है कि मृतका का मृत्युपूर्व बयान है और पेन ड्राइव रिकॉर्ड पर है, हालांकि पहले यह अभियोजन पक्ष के पास उपलब्ध नहीं था, और मृतका की बेटी इकरा का बयान है जिसने कहा है कि याची ने मृतका को आग लगाई थी। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष कोई ऐसी असाधारण परिस्थिति सामने नहीं ला पाया, जो याची को ज़मानत देने से मना करने के लिए आवश्यक हो। कानून का स्थापित सिद्धांत है कि जमानत का उद्देश्य मुकदमे में आरोपी की उपस्थिति को सुरक्षित करना है। अभियोजन पक्ष द्वारा याची के न्याय से भागने या न्याय के रास्ते में बाधा डालने या अपराधों को दोहराने या गवाहों को डराने जैसी अन्य परेशानियां पैदा करने वाली कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी या परिस्थिति नहीं बताई गई है। ऐसे में मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और याची के अधिवक्ता के तर्कों, रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों पर विचार तथा विरोधी तर्कों और मृतका के मृत्युपूर्व बयान को रिकॉर्ड करने में उक्त विसंगति को ध्यान में रखते हुए व मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना शाहनवाज उर्फ शानू की जमानत याचिका स्वीकार की जाती है।
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