बुलंदशहर के किशोर न्याय बोर्ड ने वर्ष 2004 के एक हत्या मामले में 21 साल बाद फैसला सुनाया है। बोर्ड ने हत्या के दोषी पाए गए बाल अपचारी को तीन वर्ष की सुधारात्मक अभिरक्षा में रखने का आदेश दिया। न्यायाधीश देवेंद्र कुमार प्रधान ने यह फैसला मामले की गंभीरता, अपराध के समय आरोपी की आयु और किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए दिया। यह मामला 2 जून 2004 का है, जब थाना रामघाट क्षेत्र के ग्राम ऊँचा गाँव निवासी हरपाल सिंह पुत्र बाबूराम ने अपने भाई की गोली मारकर हत्या किए जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इस घटना ने उस समय क्षेत्र में काफी चर्चा बटोरी थी। पुलिस जांच में सामने आया कि हत्या का आरोप एक किशोर पर था, जिसने वारदात में अवैध हथियार का इस्तेमाल किया था। घटना के कुछ दिनों बाद पुलिस ने आरोपी किशोर को अवैध हथियार और कारतूस के साथ गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने 12 जून 2004 को न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल किया। इसके बाद मुकदमे की लंबी न्यायिक प्रक्रिया चली। किशोर न्याय बोर्ड ने सभी साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर आरोपी को हत्या का दोषी पाया। बोर्ड ने कहा कि किशोर की उम्र को देखते हुए दंडात्मक के बजाय सुधारात्मक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जो किशोर न्याय अधिनियम का मूल उद्देश्य है। इसी आधार पर तीन वर्ष की सुधारात्मक अभिरक्षा का आदेश दिया गया। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से अभियोजक शिवम मिश्रा ने प्रभावी पैरवी की। उन्होंने अदालत में साक्ष्यों और केस डायरी के आधार पर घटना की गंभीरता को विस्तार से प्रस्तुत किया, जिसके परिणामस्वरूप अदालत ने आरोपी को दोषी पाया।
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