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बरेली हिंसा के आरोपी रिहान की जमानत खारिज:कोर्ट ने कहा-गैरकानूनी सभा का हिस्सा था, जिसने आपत्तिजनक नारे लगाए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीते मई माह में हुई बरेली हिंसा के आरोपी रिहान की जमानत अर्जी खारिज कर दी। इस मामले में इत्तेफाक मिन्नत काउंसिल (आईएनसी) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा के आह्वान पर बिहारिपुर में 500 लोगों की भीड़ जमा हुई और उन्होंने सरकार के खिलाफ नारे लगाए और “गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा” जैसे स्लोगन लगाए। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने पुलिसकर्मियों की लाठियां छीन लीं।
उनकी यूनिफॉर्म फाड़ दी और पुलिस पर पथराव, पेट्रोल बम और फायरिंग शुरू कर दी, जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हुए और कई पुलिस और निजी वाहन क्षतिग्रस्त हुए। मौके से सात लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें याची भी शामिल था। न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि केस डायरी में पर्याप्त सामग्री है, जो दर्शाती है कि याची गैरकानूनी सभा का हिस्सा था, जिसने न केवल आपत्तिजनक नारे लगाए जो भारतीय कानूनी व्यवस्था की प्राधिकार को चुनौती देते हैं, बल्कि पुलिसकर्मियों को चोट पहुंचाई और सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, जो राज्य के खिलाफ अपराध है। उसे मौके से गिरफ्तार किया गया था। इसलिए, इस अदालत को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं मिलता है। जमानत खारिज करते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि आमतौर पर हर धर्म में नारे या घोषणाएं होती हैं लेकिन ये नारे उनके संबंधित भगवान या गुरु के प्रति सम्मान दिखाने के लिए होते हैं, जैसे मुसलमानों में ‘नारा-ए-तकबीर’ के बाद ‘अल्लाहु अकबर’ आता है, जिसका अर्थ है कि भगवान सबसे महान हैं और इसमें कोई विवाद या आपत्ति नहीं है। इसी तरह, सिख धर्म में ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का नारा भी भगवान को अंतिम, शाश्वत सत्य के रूप में स्वीकार करना है और इस आह्वान को गुरु गोबिंद सिंह जी ने लोकप्रिय बनाया था।
इसी तरह, हिंदुओं द्वारा खुशी और आनंद के क्षणों में ‘जय श्री राम’ या ‘हर हर महादेव’ जैसे नारे लगाना भी एक धार्मिक आह्वान है। इसलिए किसी व्यक्ति या भीड़ द्वारा इन नारों को लगाना अपराध नहीं है, जब तक कि उनका उपयोग दूसरे धर्मों से संबंधित लोगों को धमकाने के लिए नहीं किया जाता है। हालांकि ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’ का कोई उल्लेख कुरान या किसी अन्य मुस्लिम धार्मिक ग्रंथ में नहीं है, फिर भी कई मुस्लिम लोग इसका अर्थ और प्रभाव जाने बिना इसका उपयोग करते हैं। उदाहरण देते हुए और पैगंबर मोहम्मद की दयालुता के उदाहरण देते हुए न्यायालय ने कहा कि उक्त विश्लेषण के दृष्टिगत, यह स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति या भीड़ द्वारा लगाया गया नारा ‘गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा, सर तन से जुदा’ कानून के प्राधिकार और भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए चुनौती है क्योंकि यह लोगों को सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाता है। इसलिए यह कार्य न केवल धारा 152 बीएनएस के तहत दंडनीय होगा, बल्कि इस्लाम के मूल सिद्धांतों के खिलाफ भी है। धारा 152 बीएनएस भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले अपराध से संबंधित है।


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