उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर स्थित ऐतिहासिक सेंट मैरी चर्च में प्रभु यीशु के जन्मोत्सव क्रिसमस पर विशेष आयोजन हुए। इस अवसर पर चर्च के फादर डेमियन गोम्स ने मसीही समाज और सुल्तानपुर के लोगों को शांति व प्रेम का संदेश दिया। फादर गोम्स ने बताया कि क्रिसमस केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि मानवता के लिए ईश्वर के प्रेम का प्रतीक है। उन्होंने जोर दिया कि प्रभु यीशु शांति के दूत बनकर धरती पर आए थे, और वर्तमान समय में आपसी भाईचारे की सबसे अधिक आवश्यकता है। उन्होंने सुल्तानपुर की गंगा-जमुनी तहजीब को बनाए रखने और एक-दूसरे के प्रति प्रेम-भाव रखने की अपील की। फादर ने कहा कि सच्चा क्रिसमस तभी है जब हम किसी जरूरतमंद के चेहरे पर मुस्कान ला सकें, क्योंकि सेवा ही सच्ची इबादत है। फादर ने विशेष रूप से सुल्तानपुर की सुख-शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना की। उन्होंने यह भी कहा कि त्योहार धर्मों की सीमाओं से परे होते हैं और क्रिसमस का यह प्रकाश हर घर के अंधेरे को दूर करे। उन्होंने बताया कि यह चर्च अब केवल मसीही समुदाय के लिए ही नहीं, बल्कि शांति में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। इस अवसर पर फादर डेमियन गोम्स ने प्रभु यीशु के संदेशों और संस्कारों के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों के पैर धोने के बाद ही संस्कार की स्थापना की थी।फादर के अनुसार, प्रभु यीशु ने रोटी तोड़ी और कहा, “लो और खाओ, यह मेरा शरीर है।” इसके बाद उन्होंने अंगूर का रस (दाखरस) लिया और कहा, “लो और पियो, और मेरी याद में ऐसा किया करो।” फादर ने संस्कार ग्रहण करने के नियमों को भी स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि यह प्रभु का दिया हुआ एक वरदान है, लेकिन इसे प्राप्त करने के कुछ नियम हैं। केवल ईसाई परिवार में जन्म लेने से ही यह संस्कार नहीं मिलता। यह संस्कार केवल उन्हीं लोगों को दिया जाता है जिन्होंने दीक्षा (होली कम्युनियन/कन्फर्मेशन) प्राप्त की है। ईसाई परिवार के बच्चों को भी तब तक यह नहीं मिलता, जब तक वे विधिवत दीक्षा न ले लें। देखें फोटो…
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