फर्रुखाबाद में एससी-एसटी विशेष न्यायालय ने अनुपम दुबे की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि जाली दस्तावेज तैयार कर जमीन हड़पने, धमकी देने और जातिसूचक गालियां देने जैसे आरोप अत्यंत गंभीर हैं। सह-आरोपियों के खिलाफ जांच भी अभी जारी है, इसलिए इस स्तर पर जमानत देना उचित नहीं होगा। न्यायाधीश अभिनीतम उपाध्याय ने आदेश पारित किया। अनुपम दुबे की पत्नी मीनाक्षी दुबे ने अधिवक्ता के माध्यम से जमानत याचिका दाखिल की थी। बचाव पक्ष ने दावा किया कि सह-आरोपी रामश्याम ने 12 मई 2014 को सिर्फ इकरारनामा किया था, वास्तविक कब्जा नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड में न तो हेराफेरी की गई और न जालसाजी। बचाव पक्ष के मुताबिक आरोप अतिरंजित हैं और अभियुक्त को फंसाया गया है। ठगी और जातिगत अपमान के गंभीर आरोप अभियोजन पक्ष ने जमानत का कड़ा विरोध करते हुए बताया कि मामला बेहद गंभीर है। आरोपों में धोखा देना, ठगी, सरकारी रिकॉर्ड में जालसाजी, जमीन हड़पने की कोशिश, जातिसूचक शब्दों का प्रयोग और सार्वजनिक स्थान पर जातिगत मानहानि जैसी धाराएं शामिल हैं।यह मामला 17 मार्च 2023 को सामने आया था, जब वादी एकलव्य कुमार जाटव ने थाना मऊदरवाजा में रिपोर्ट दर्ज कराई। आरोप है कि 2003 से 2005 के बीच राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से जाली आदेश तैयार कर विवादित भूमि अपने नाम दर्ज कराई गई। 2014 के कथित इकरारनामे के आधार पर कब्जे का प्रयास भी किया गया। विरोध करने पर धमकी और अभद्रता की गई। वादी की विस्तृत आपत्ति से आरोप पुख्ता 29 नवंबर 2025 को वादी ने विस्तृत आपत्ति दाखिल कर आरोपों की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि अभियुक्तों ने मूल्यवान दस्तावेजों में हेराफेरी करने और जमीन अपने नाम कराने के लिए संगठित प्रयास किया था। पीड़ित ने जान से मारने की धमकी तक मिलने की बात दोहराई। कोर्ट ने कहा- दो मामलों में हत्या का दोषी अदालत ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि अनुपम दुबे पहले से ही हत्या के दो मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है और उम्रकैद की सजा काट रहा है। ऐसे में गंभीर आरोपों वाले इस मामले में उसे जमानत देना न्यायसंगत नहीं माना गया।
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