बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद दिल्ली गए प्रशांत किशोर बिहार लौट आए हैं। लौटने से पहले उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी से बंद कमरे में मुलाकात की। यह करीब 2 घंटे चली। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशांत किशोर की प्रियंका गांधी से बिहार और देश में विपक्ष की राजनीति पर बातें हुईं है। मुद्दों पर भी बातें हुईं है। हालांकि, यह अभी प्रारंभिक मुलाकात है। आगे और मुलाकात बढ़ने की संभावना है। बताया जा रहा है कि मुलाकात के एजेंडे में बिहार और UP की राजनीति प्रमुखता से रही। दोनों पार्टी के नेताओं ने इस मुलाकात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी है। सोमवार को मीडिया ने जब संसद के बाहर मुलाकात को लेकर प्रियंका गांधी से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा- यह कोई न्यूज है। हालांकि, इस मुलाकात के बाद हाल के दिनों दो राज्यों UP-बिहार के 3 बड़े नेताओं के बयान आए हैं। जो कांग्रेस के आगे की रणनीति की तरफ इशारा कर रहे हैं। क्या प्रशांत किशोर कांग्रेस के साथ आ सकते हैं? अगर आते हैं तो क्या हो सकता है? पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट में…। 3 पॉइंट में प्रशांत किशोर के कांग्रेस के साथ आने की चर्चा क्यों… 1. कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलना चाहती है अंदरखाने चर्चा है कि बिहार चुनाव की समीक्षा बैठक में राहुल गांधी ने सभी नेताओं को प्रदेश में नए सिरे से मजबूत तैयारी करने का निर्देश दिया। वहीं, 3 दिसंबर को हुई UP कांग्रेस नेताओं की बैठक में उन्होंने कहा कि अब कांग्रेस किसी भी राज्य में बैकफुट पर नहीं फ्रंटफुट पर लड़ेगी। इसके लिए कुछ भी कठोर फैसला करना पड़े तो करेंगे। मतलब कांग्रेस UP-बिहार में नए सिरे से राजनीति करेगी और गठबंधन से अलग भी लड़ सकती है। राहुल गांधी की बैठक के बाद UP-बिहार कांग्रेस नेताओं के 3 बयान… 2. प्रशांत किशोर कांग्रेस को लेकर सॉफ्ट बिहार चुनाव प्रचार के दौरान प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को लेकर ज्यादा तल्ख तेवर नहीं दिखाए। कई इंटरव्यू में जब उनसे उनकी विचारधारा पूछी गई तो उन्होंने कहा, ‘हमारी विचारधारा कांग्रेस के करीब है।’ एक इंटरव्यू में तो प्रशांत किशोर ने कहा था, ‘कांग्रेस को RJD का साथ छोड़ देना चाहिए। उनको अगर बिहार में अच्छा करना है तो अपने दम पर चुनाव लड़े।’ फिलहाल प्रशांत किशोर ने चुनाव में करारी हार के बाद जनसुराज की सभी कमेटियों को भंग कर दिया है। सोशल मीडिया टीम को भी डिजाल्व कर दिया है। जनवरी से नए सिरे से संगठन खड़ा करेंगे। 3. बिहार में RJD से अलग हो सकती है कांग्रेस बिहार की समीक्षा बैठक में कांग्रेस नेताओं ने आलाकमान को RJD से अलग होकर चुनाव लड़ने का सुझाव दिया था। साथ ही अपने पुराने समीकरण (फॉरवर्ड, दलित और मुस्लिम) पर लौटने की बातें कही गई। बैठक के बाद बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा, ‘हमारा गठबंधन सिर्फ चुनाव को लेकर था। अब किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं है।’ इसका मतलब कि कांग्रेस अगले चुनाव में RJD से गठबंधन तोड़कर 2010 की तरह चुनाव लड़ सकती है। अंदरखाने चर्चा है कि प्रशांत किशोर के साथ पार्टी गठबंधन कर सकती है। UP सहित 12 राज्यों में 2 साल में मजबूत होना चाहती है कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस 2026 और 2027 में होने वाले 12 राज्यों की विधानसभा चुनाव में पार्टी को मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। बिहार में अब अगला चुनाव 2029 में लोकसभा का होगा। लेकिन UP जैसे बड़े राज्य में चुनाव को सिर्फ सवा साल बचे हैं। पार्टी के एक गुट का मानना है कि प्रशांत किशोर भले अपने दम पर चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुए हैं लेकिन नेशनल लेवल पर हमें उनका फायदा मिल सकता है। भाजपा को टक्कर क्षेत्रीय पार्टियां नहीं दे सकती है। कांग्रेस को अपने दम पर मजबूत होना होगा। इसलिए बड़े राज्यों में एक मजबूत रणनीतिकार की जरूरत है। प्रशांत किशोर का संबंध प्रियंका गांधी से अच्छा है। 2021-22 में भी उनके थ्रू ही प्रशांत किशोर की बातें होती थी। एक बार फिर पहली मुलाकात भी दोनों के बीच ही हुई है। प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की प्रभारी रह चुकीं हैं, वह चुनाव में फिर से एक्टिव होने वाली हैं। अगर PK कांग्रेस के साथ आते हैं तो क्या भूमिका हो सकती है अक्टूबर 2021 में राहुल-प्रियंका से मुलाकात में प्रशांत किशोर ने पार्टी में अपनी भूमिका का जिक्र किया था। हालांकि, उस वक्त पार्टी के फैसले लेने वाली सबसे बड़ी बॉडी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) के सदस्यों के विरोध की वजह से PK की एंट्री टल गई थी। अब 3 साल बाद जब प्रियंका गांधी से प्रशांत किशोर के मिलने की खबरें हैं तो उनके फिर से साथ आने या रणनीतिकार बनने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि, यह सिर्फ शुरुआती चर्चा है। आगे का कुछ भी साफ नहीं है। अगर प्रशांत के साथ आते हैं तो उनके जिम्मे दो बड़े काम हो सकते हैं… कांग्रेस के लिए कितने फायदेमंद हो सकते हैं प्रशांत किशोर? प्रशांत 2012 से 2021 तक अलग-अलग नेताओं के लिए चुनावी रणनीति बनाने का काम कर चुके हैं। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन, महाराष्ट्र के पूर्व CM उद्धव ठाकरे, बंगाल की CM ममता बनर्जी, बिहार के CM नीतीश कुमार और आंध्र प्रदेश के पूर्व CM जगनमोहन रेड्डी प्रमुख हैं। कांग्रेस को PK की जरूरत क्यों? 140 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी बीते 11 सालों से बड़ी सफलता के लिए तरस रही है। पॉलिटिकल एनालिस्ट और बिहार यूनिवर्सटी के प्रो. प्रमोद कुमार कहते हैं, कहते हैं- पिछले 11 सालों में चुनाव लड़ने का ट्रेडिशनल तरीका बदल चुका है। अब चुनाव प्रोफेशनल तरीके से लड़ा जा रहा है। प्रशांत किशोर भले अपने दम पर बिहार में चुनाव हार गए हैं, लेकिन वह एक मजबूत रणनीतिकार तो हैं ही। उनके पास दूसरे दलों को जिताने का अनुभव है। प्रो. प्रमोद कुमार कहते हैं, ‘अगर कांग्रेस को भाजपा को हराना है तो उसे एक मजबूत रणनीतिकार की जरूरत है। ट्रेडिशनल तरीके से चुनाव लड़कर जीतना कठिन है। अगर प्रशांत किशोर को पार्टी साथ लाती है तो उसमें प्रोफेशनलिज्म का तड़का लगेगा।’ पटेल-बोरा की कमी दूर करने की चुनौती पिछले दो दशक से ज्यादा समय से कांग्रेस में अहमद पटेल पॉलिटिकल क्राइसिस और मोतीलाल बोरा फाइनेंशियल क्राइसिस का निपटारा करते थे। दोनों के निधन के बाद से कांग्रेस में अब तक कोई भी उनका रोल नहीं ले पाया है, जिस वजह से कई राज्यों में कांग्रेस के भीतर अंदरूनी लड़ाई अब भी जारी है। चुनाव के समय कांग्रेस के नेता एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं। प्रो. प्रमोद कुमार कहते हैं- प्रशांत किशोर जानते हैं कि चुनाव में क्या करना चाहिए और क्या नहीं? हम ये बंगाल समेत कई चुनाव में देख चुके हैं। इसलिए मुझे लगता है कि PK के आने से कांग्रेस चुनाव लड़ने के तरीके को सीख पाएगी।
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